राहुल गांधी अनेक बार मीडिया के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित करते रहे हैं, पर यह पहली बार है कि वे सही कारणों से मीडिया में छाए हुए हैं, अन्यथा वे पहले बराबर गलत कारणों से ही मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा करते थे। लेकिन राहुल की राजनीति किस ओर मुड़ेगी और वे अपने वर्तमान तेवर को कबतक बरकरार रखेंगे, इसके बारे में सही आकलन लगाने के लिए कुछ और समय का इंतजार करना होगा। यह देखना होगा कि राहुल जो कर और कह रहे हैं, वे आगे भी कायम रहता है या नहीं। उनके बारे में अबतक का अनुभव यही है कि एक बार वे जो करते हैं, उसे करके फिर भूल जाते हैं और सबकुछ पहले जैसा ही लगने लगता है।

उनके प्रशंसक कहते हैं कि राहुल गांधी ने लोकसभा में पिछले दिनों दो बार बहुत अच्छे भाषण दिए। एक बार जब वे भूमि अधिग्रहण पर बोल रहे थे, तो उन्होंने सरकार की जमकर खिंचाई की थी और दूसरी बार जब वे नेट निरपेक्षता पर बहस कर रहे थे, तब भी उन्होंने कुछ कांटे की बात कह दी थी। अब राहुल गांधी एक यंग्री यंग मैन की भूमिका में दिखाई पड़ रहे हैं। लोकसभा चुनाव में हार के बाद एक साल गंवाकर अब वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती भरे शब्दों में संबोधित करते दिख रहे हैं। सच तो यह है कि राहुल गांधी की आक्रामकता ने भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों को सकते में डाल दिया है। उन्हें पता नहीं चल पा रहा है कि इस नये राहुल का सामना वे कैसे करें। उन्हें यह पता नहीं चल पा रहा है कि वे अब भी राहुल का मजाक उड़ाएं या उन्हें गंभीरता से लें।

56 दिनों तक देश के राजनैतिक परिदृश्य से गायब रहने के बाद राहुल अब आत्मविश्वास से लवरेज दिखाई पड़ रहे हैं। संसद के बाहर और संसद के अंदर राहुल गांधी 11 महीने तक बरबाद किए गए समय की भरपाई करने में लगे हुए हैं। वे लगातार आक्रामक भाषणों का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे सिर्फ संसद में ही नहीं, बल्कि संसद से बाहर भी आक्रामक लहजे में सरकार पर निशाना साध रहे हैं। उनमें पैदा हुए नये आत्मविश्वास का क्या राज है, यह किसी को पता नहीं है। लेकिन यदि वे ऐसा करते रहे तो उनकी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं मंे नया उत्साह पैदा होगा। उनकी पार्टी के सांसदों का मनोबल भी बढ़ेगा।

राहुल का यह नया अवतार सबसे पहले रामलीला मैदान में दिखाई। रामलीला मैदान में हुई उस किसान रैली को राहुल को फिर से लाॅंच करने के का मौका बताया गया था। उसमें उन्होंने मोदी की सरकार पर हमला करते हुए उस सूटबूट की सरकार कहा था। उस भाषण के दौरान उनकी बाॅडी भाषा भी कुछ अलग थी। उन्होंने किसानों को कहा कि देश के प्रधानमंत्री उनके प्रधानमंत्री नहीं हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री पर काॅर्पोरेट परस्ती का आरोप लगाया। उनका यह आरोप लोगों के गले में अब उतरने भी लगा है। यह वोट खींचू रणनीति है, क्योंकि अभी भी देश की आबादी का 65 फीसदी खेती पर ही आधारित है। कांग्रेस ने अब यह मन बना लिया है कि संसद के बाहर संसद के अंदर अब वह किसानों के मुद्दे को उठाती रहेगी।

रामलीला मैदान के भाषण के बाद राहुल ने संसद के अन्दर भी उसी अंदाज में भाषण दिए। उन्होंने नेट निरपेक्षता के उस मसले को उठाया, जो देश के 25 करोड़ नेट उपभोक्ताओं को परेशान कर रहा है। राहुल का नेट बचाओ अभियान एक स्मार्ट अभियान है, जिसके द्वारा वे देश के युवाओं के साथ अपने को जोड़ रहे हैं। देश में करीब 11 करोड़ 22 लाख फेसबुक यूजर्स हैं। 7 करोड़ लोग व्हाट्सअप पर हैं और 2 करोड़ 20 लाख लोग ट्विटर पर हैं। भारत स्मार्ट फोन के ग्लोबल मार्केट का दूसरा बड़ा ग्राहक देश है। युवाओं को अपनी ओर खींचने का इससे बेहतर तरीका हो ही नहीं सकता था।

राहुल पार्टी अध्यक्ष बनें या न बनें, लेकिन उन्हें अपना यह तेवर बनाए रखना होगा, तभी वे कांग्रेस में फिर से नई जान फूंक पाएंगे। पर सवाल उठता है कि क्या राहुल ऐसा करने में सफल हो पाएंगे। इसका जवाब समय ही देगा। (संवाद)