सवाल उठता है कि बिना विलय के विलय की घोषणा करने की क्या जरूरत थी? तो इसका जवाब यही हो सकता है कि विलय में विलंब के कारण विलय करने की उन नेताओं की मंशा पर ही सवालिया निशान लगने थे। उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध होने लगी थी। इसलिए आनन फानन में घोषणा कर दी गई कि उनकी पार्टियों का विलय हो चुका है और विलय के बाद अस्तित्व में आई नई या संयुक्त पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव हो चुके हैं। पर उस नई या संयुक्त पार्टी का नाम क्या है, इसके बारे में शायद मुलायम सिंह को भी पता नहीं। यानी मुलायम सिंह सम्राट तो हो गए है, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि उनके साम्राज्य का नाम क्या है?

इन पंक्तियों का लेखक शुरू से ही इस विलय को लेकर संदेह व्यक्त करता रहा है। इसका कारण यह है कि कथित जनता दल परिवार के नेतागण एक दूसरे के कट्टर विरोधी रहे हैं। वे दूसरे का सम्मान करना तो दूर एक दूसरे को घृणा की हद तक नापसंद करते हैं। क्या लालू यादव भूल सकते हैं कि आज उनकी जो हालत हो गई है, जिसके कारण वे चुनाव भी नहीं लड़ सकते, नीतीश कुमार और उनके ललन सिंह जैसे अनुयाइयों के कारण हुई है? क्या मुलायम सिंह यादवइ स बात को भूल सकते हैं कि जब देवेगौड़ा की सरकार गिरने के बाद उनका प्रधानमंत्री बनना तय हो गया था, तो लालू यादव ने अपना वीटो पावर लगाकर उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया था। तब लालू ने कहा था कि यदि मुलायम सिंह को प्रधानमंत्री बनाया जाता है तो 46 लोकसभा सदस्यों वाला उनका जनता दल संयुक्त मोर्चे से ही बाहर हो जाएगा। चूंकि उनका जनता दल संयुक्त मोर्चा का सबसे बड़ा घटक दल था और मुलायम की समाजवादी पार्टी के मात्र 17 लोकसभा सांसद थे। इस बिना पर लालू ने कहा था कि प्रधानमंत्री चाहे जो भी बने, उसे उनके जनता दल का ही होना चाहिए और फिर इन्द्र कुमार गुजराल देश के प्रधानमंत्री बन गए थे और मुलायम सिंह यादव के हाथ के तोते उड़ गए थे।

नफरत का यह संबंध लालू और मुलायम के बीच में ही नहीं है, बल्कि देवेगौडा को भी इस बात का मलाल है कि जब सीताराम केसरी द्वारा उनकी सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई थी, तो सबसे पहले लालू यादव ने ही उनका साथ छोड़ा था। उस समय देवेगौड़ा शायद लोकसभा का चुनाव करवाना चाह रहे थे, लेकिन लालू यादव ने सबसे पहले उनका साथ छोड़ते हुए किसी और के नेतृत्व में सरकार गठन का पांसा फेंक दिया था। लालू यादव और शरद यादव के बीच नफरत का संबंध तो इतना तगड़ा है कि लालू यादव शरद यादव के खिलाफ मधेपुरा में खुद चुनाव लड़ जाते थे। वहां से उन्होंने दो बार शरद यादव को पराजित किया और एक बार खुद पराजित हो गए थे।

एक दूसरे से नफरत करने वाले लोग एक साथ होने का प्रयास इसलिए नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उनमें परस्पर सम्मान का संबंध स्थापित हो गया है, बल्कि वे ऐसा अपने आपको बदल रही राजनीति में प्रासंगिक बनाए रखने के लिए कर रहे हैं। बदली हुई राजनीति में ये सभी नेता अपने भविष्य को असुरक्षित पा रहे हैं। मुलायम सिंह यादव इसके अपवाद हैं, इसलिए उन्हें आज इन लोगों ने नेता मान लिया है, लेकिन इसके पीछे भी उनकी समझ यही है कि अधिक उम्र होने के कारण मुलायम सिंह की राजनैतिक सक्रियता लंबे दिनों तक नहीं खिंच सकती, इसलिए संकट काल में उनकी छत्रछाया स्वीकार करना गलत नहीं हैं।

सब इकट्ठे तो रहे हैं अपने अपने स्वार्थो के कारण, लेकिन विलय के अपने खतरे भी हैं। पहला खतरा तो यह है कि ये सभी छह पार्टियां अपने अपने नेताओं की जेबी पार्टी है। वे नेता पार्टी से संबंधित सारा निर्णय अपने आप करते हैं। जैसे राष्ट्रीय जनता दल में क्या होगा, इसका फैसला लालू यादव करते हैं, तो जनता दल(यू) मे नीतीश कुमार की इच्छा के बिना पत्ता तक नहीं हिलता है। मुलायम सिंह यादव अपनी समाजवादी पार्टी के बारे में निर्णय लेते हैं, जनता दल(एस) में वही होता है, जो देवेगौड़ा चाहते हैं। अब यदि ये पार्टियां एक होती हैं और नये दल का अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव होते हैं, तो फिर सबकुछ मुलायम सिंह के हाथ में आ जाएगा। उसके बाद लालू यादव और नीतीश कुमार अपनी इच्छा के अनुसार निर्णय नहीं कर पाएंगे। समस्या यह आ रही है कि मनमाना निर्णय लेने की आजादी क्या यह नेता त्याग पाएंगे? जनता दल का बिखराव ही इसीलिए हुआ था, क्योंकि ये नेता अपनी अपनी मनमानी चलाना चाहते थे। वीपी सिंह के सामने मुलायम की मनमानी नहीं चली, तो अलग होकर उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली। लालू के सामने नीतीश की मनमानी नहीं चली, तो उन्होंने अलग पार्टी बना ली। शरद यादव से अध्यक्ष चुनाव में लालू हारते दिखाई पड़े, तो उन्होंने अलग पार्टी बना ली थी। भाजपा से संबंध को लेकर देवेगौड़ा की जनता दल में नहीं चली, उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली। उनकी जिस मानसिकता के कारण इतनी पार्टियों का जनता दल से टूट टूटकर निर्माण हुआ, वह मानसिकता बदली नहीं है और इसके बावजूद एक दूसरे के साथ मिलने को तत्पर हैं। इसलिए वे विलय की घोषणा तो कर सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद विलय दूरी की कौड़ी बन कर रह गया है। (संवाद)