1982 में एमजी राजचन्द्रन ने उन्हें राजनीति में आमंत्रित किया और वहा फिल्मी दुनिया को छोड़कर राजनीति में आ गई। उन्हें एमजी आर ने अपना प्रचार सचिव बना लिया। उनके सितारे बुलंद होने लगे, लेकिन 1986 में एमजीआर ने उनसे वह पद छीन लिया और वे एक बार फिर अप्रासंगिक होती दिखाई देने लगी।
उसके बाद एमजीआर की मौत हो गई। उनकी विरासत के लिए उनकी एमजीआर की पत्नी जानकी रामचन्द्रन से ठन गई। अंत में जीत उन्हीं की हुई और पार्टी पर जयललिता का ही कब्जा हुआ। 1991 में वे तमिलनाडु की मुख्यमंत्री भी बन गई। लेकिन 1996 में उनकी किस्मत ने फिर पलटी खाई और वह गिरफ्तार कर ली गई। वह बहुत दिनों तक जेल में भी रहीं और उन पर अनेक मुकदमे चले, जो भ्रष्टाचार और आय से ज्यादा संपत्ति से संबंधित थे।
2001 में जयललिता के अच्छे दिन एक बार फिर आए। चुनाव में उनकी पार्टी की जीत हुई और वे एक बार फिर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गईं। पूरे 5 साल तक उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में वहां काम किया। 2006 में उनकी फिर हार हुई। लेकिन 5 साल के बाद वह भारी बहुमत के साथ एक बार फिर सत्ता में आई। 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को तमिलनाडु की 39 में से 37 सीटों पर जीत हासिल हुई। तमिलनाडु में किसी क्षेत्रीय पार्टी द्वारा लोकसभा चुनाव में अबतक की दर्ज की हुई सबसे बड़ी जीत है।
इन सफलताओं और विफलताओं के बीच जयललिता को मुकदमों के कारण दो बार मुख्यमंत्री का पद छोड़ना भी पड़ा है। पहली बार तो उन्हें 2001 में ही अपना पद छोड़ना पड़ा था। वह तांसी मुकदमे के कारण अपना पद छोड़ने के लिए बाध्य हो गई थीं। लेकिन बाद में अदालत ने उस मुकदमे में उन्हें दोषमुक्त घोषित कर दिया और वे फिर मुख्यमंत्री बन गईं और अपना कार्यकाल पूरा किया।
इस बार फिर एक मुकदमे में जिला अदालत द्वारा दोषी करार दिए जाने के बाद उन्हें अपना मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। इस मुकदमे में भी जयललिता हाई कोर्ट से दोषमुक्त करार दी गई है और एक बार फिर शपथ ग्रहण करने का उनका रास्ता साफ हो गया है।
जया के दोष मुक्त होने के बाद पूरे प्रदेश का राजनैतिक माहौल बदल चुका है। उसके कारण राष्ट्रीय राजनीति का माहौल भी बदल गया है। जो लोग यह उम्मीद कर रहे थे कि ऊंचली अदालतों से भी जया को सजा मिलेगी और उनका राजनैतिक कैरियर हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा, उन्हें अब फिर सोचना पड़ रहा है और अपनी राजनीति को सफल बनाने के लिए फिर से गोटी सेट करनी पड़ रही है।
यदि अतीत की गलतियों को नहीं दुहराएं, तो जयललिता 2016 के चुनाव में एक बार फिर सत्ता में आ सकती हैं। उन्होंने उस चुनाव का अभियान अभी से ही शुरू कर दिया है। सजा मुक्त होते ही उन्होंने एमजीआर की विरासत की चर्चा की।
करुणानिधि को लग रहा था जयललिता दोष मुक्त नहीं हो पाएंगी। इस उम्मीद में वे अपनी पार्टी का बेहतर भविष्य देख रहे थे। लेकिन अब उनका काम कठिन हो गया है। उनकी बेटी कनिमोरी और उनकी पार्टी के एक नेता ए राजा भ्रष्टाचार के मुकदमों का सामना कर रहे हैं। उनका नाती दयानिधि मारन भी जांच का सामना कर रहा है। उनके परिवार में विरासत की जंग छिड़ी हुई है। तमिलनाडु की अन्य क्षेत्रीय पार्टियों की स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं है। भाजपा वहां कभी भी कोई ताकत नहीं थी। कांग्रेस का तो वहां खात्मा ही हो गया है।
अब जयललिता राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित करने की कोशिश करेगी। उनकी पार्टी के लोकसभा में 37 और विधानसभा में 11 सांसद हैं। उसके कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जयललिता को नजरअंदाज नहीं कर सकते। मोदी की श्रीलंका नीति को जयललिता की परवार अब करनी होगी।
जीएसटी के मसले पर भी जयललिता का सुर अलग है। इस मसले पर भी मोदी को अब उन्हें विश्वास में लेना होगा। राज्यसभा में भाजपा अल्पमत में है, इसलिए उन्हें जयललिता का समर्थन लेने के लिए उनकी बातें माननी होंगी।
तमिलनाडु विधानसभा का चुनाव 2016 के मई महीने में होने हैं। लेकिन बदली परिस्थितियों का लाभ उठाने के लिए जयललिता समय से पहले भी चुनाव करा सकती हैं। (संवाद)
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जयललिता की सक्रिय राजनीति में वापसी
तमिलनाडु में जल्द ही हो सकते हैं चुनाव
कल्याणी शंकर - 2015-05-15 16:00
जयललिता जयराम ने एक बार फिर साबित किया है कि वह खाक में मिलकर फिर खड़ी हो सकती है। ऐसा वह कई बार कर चुकी है। उनके राजनैतिक कैरियर में लगातार उत्थान और पतन हो रहा है। 1970 के दशक में उनकी स्थिति खराब थी और उन्होंने फिल्मी दुनिया छोड़कर हैदराबाद में निवास करना शुरू कर दिया था।