सत्ता संभालने के साथ ही नरेन्द्र मोदी ने विदेशी मोर्चे पर अपनी पकड़ दिखानी शुरू कर दी थी। अपने शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने पाकिस्तान समेत अपने सभी पड़ोसी देशों के प्रमुखों को भारत आमंत्रित कर लिया था। पिछले एक साल के दौरान उन्होने एक के बाद एक विदेश यात्राएं की और उन यात्राओं में अपनी गहरी छाप भी छोड़ी। इस बीच अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा के साथ भी उन्होने लंबी लंबी मुलाकातें कीं। एक बार तो वे खुद अमेरिकी की आधिकारिक यात्रा पर गए और दूसरी बार खुद ओबामा भारत आए। भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में ओबामा मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए।

अपने पहले साल के कार्यकाल में ही मोदी ने अनेक महत्वपूर्ण देशों की यात्रा कर ली। वे अमेरिका हो आए। आॅस्ट्रेलिया की यात्रा भी कर ली। चीन, जापान और दक्षिण कोरिया की यात्रा को भी अंजाम दे डाला। यूरोप के कुछ देशों की यात्रा भी कर आए। उन यात्राओं के दौरान उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी। सच कहा जाय, तो उनकी यात्राएं बहुत ही सुव्यवस्थित और सुनियोजित हुआ करती हैं।

पड़ोसी देशों की यात्रा करने में भी मोदी पीछे नहीं रहे। पड़ोसी देशों के साथ बेहतर रिश्ते बनाने की दिशा में मोदी सरकार लगातार आगे बढ़ रही है। नेपाल और बांग्लादेश के प्रति भारत ने जो सदाशयता दिखाई है, उसकी बहुत जरूरत महसूस की जा रही थी। श्रीलंका से भी संबंधों को बेहतर करने की सफल कोशिश हुई है। पाकिस्तान के साथ भारत का संबंध पहले की तरह ही अनिश्चित बना हुआ है।

नरेन्द्र मोदी यह संदेश दे रहे हैं कि वे विदेशी नीति के एक्टिविस्ट हैं। अंतरराष्ट्रीय समुदाय में वे भारत को प्रतिष्ठिति कराना चाह रहे हैं और उसमें उन्हें शुरुआती सफलता भी मिल रही है। वे भारत का एक संतुलनकारी ताकत के रूप में ही नहीं देखना चाहते हैं, बल्कि वे इसे एक विश्व का अग्रणी देश भी बनाना चाहते हैं। भारत की आबादी, आकार और बौद्धिक संसाधनों के कारण भारत इसका हकदार भी है।

भारतीय जनता पार्टी को पिछले लोकसभा चुनाव में जबर्दस्त सफलता हासिल हुई थी। उसे 282 सीटें मिली थीं और केन्द्र की सत्ता में बहुमत पाने वाली पहली राजनैतिक पार्टी बनी थी। सच तो यह है कि यह जीत भारतीय जनता पार्टी की नहीं, बल्कि नरेन्द्र मोदी की थी। भाजपा के कारण नरेन्द्र मोदी की जीत नहीं हुई थी, बल्कि नरेन्द्र मोदी के कारण भाजपा जीती थी।

चुनाव अभियान के दौरान नरेन्द्र मोदी ने लोगों की आकांक्षाएं बहुत बढ़ा दी थी। सच यह भी है कि उन आकांक्षाओ को सरकार पूरा नहीं कर पाई है, जिसके कारण अब मोदी का जादू उतर रहा है। पहले सात महीने तक तो मोदी का जादू चला, लेकिन 2015 के फरवरी महीने में हुए दिल्ली विधानसभा के चुनाव ने भाजपा को गहरी निराशा के समुद्र की ओर धकेल दिया है। इसी साल बिहार विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं, उसमें भी भाजपा की अग्नि परीक्षा होगी।

आर्थिक नीतियों के मोर्चे पर मोदी सरकार ने दृढ़ता दिखाई है और अनेक दूरगामी नतीजे लाने वाले फैसले लिए हैं। हालांकि सच यह भी है कि अभी तक उनसे देश का उद्यमी समाज पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। उन्हें संतुष्ट करने के चक्कर में मोदी ने किसानों को भी नाखुश कर दिया है। यूपीए सरकार द्वारा तैयार किए गए भूमि अधिग्रहण कानून को बदलने का प्रयास नरेन्द्र मोदी के लिए महंगा साबित हो रहा है। इसने विपक्ष को एक बड़ा हथियार दे दिया है। (संवाद)