यह बात जलवायु परिवर्तन संंबंधी चिंताओं से निपटने के लिए बनाये गये बड़े कार्यक्रमों में दिखाई देती है। जलवायु परिवर्तन पर मौजूदा सरकार का व्यय जीडीपी के 2.6 प्रतिशत को पार कर गया है। कृषि, जल संसाधन, स्वास्थ्य एवं स्वच्छता, वन तथा तटीय क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा इत्यादि चिंता के विशेष क्षेत्र है।
यूएनएफसीसीसी के तहत अपनी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के भाग के रूप में भारत आवधिक राष्ट्रीय सूचना तंत्र (एनएटीसीओएम) तैयार कर रहा है जो भारत में उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाऊस गैंसों की जानकारी प्रदान करता है और इनकी संवेदनशीलता तथा प्रभाव का मूल्यांकन करता है। इसके साथ ही यह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सामाजिक, आर्थिक तथा तकनीकी उपायों की उचित सिफारिशें तैयार करता है। पहला एनएटीसीओएम वर्ष 2004 में प्रस्तुत किया गया था। सरकार एनएटीसीओएम-2 तैयार करने में लगी हुई है और इसे वर्ष 2011 मेें यूएफसीसीसी को पेश किया जाएगा। एनएटीसीओएम-2 भारत में अनुसंधान तथा वैज्ञानिक कार्यों के सघन नेटवर्क पर आधारित है और इसमें विभिन्न संस्थानों के विशेषज्ञों तथा सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं की सहायता ली गई है।
भारत सरकार द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति ने मानवीय जलवायु परिवर्तन के भारत पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन (2008) किया था। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट तैयार की और एक एजेन्डा बनाया जिसे भारत में मंत्रालयों को मानवीय जलवायु परिवर्तन के भारत पर पड़ने वाले प्रभावों से निपटने के लिए लागू करने की आवश्यकता थी।
भारत ने जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में लाभ को देखते हुए सतत् विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (एनएपीसीसी) तैयार की। सौर ऊर्जा, ऊर्जा कुशलता बढ़ाने, सतत् कृषि, स्थायी आवास, जल, हिमालयी पारिस्थितिकी, देश के वन क्षेत्र में वृद्धि करने और जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना के मुख्य बिन्दुओं की रणनीतिक जानकारी देने से संबंधित आठ राष्ट्रीय मिशन चल रहे हैं। इसके अलावा ऊर्जा उत्पादन, परिवहन, नवीकरण, आपदा प्रबंधन तथा क्षमता विकास से संबंधित क्षेत्रों पर ध्यान देने के लिए अनेक कदम उठाये गये हैं जो मंत्रालयों की विकास योजनाओं के साथ एकीकृत हैं। जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की परिषद् जून 2007 में गठित की गई थी। यह परिषद् राष्ट्रीय मिशनों की निगरानी करती है और भारत में जलवायु परिवर्तन से संबंधित कार्य-योजनाओं को लागू करने और उनके बीच समन्वय स्थापित करने का कार्य करती है।
भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में सतत विकास के लिए एक स्थायी रणनीति शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप हम ऐसे सतत् विकास को प्राप्त करने में सफल रहे हैं जिसमें कार्बन उत्सर्जन बहुत कम होता है। 11वीं पंचवर्षीय योजना में वर्ष 2016-17 तक ऊर्जा कुशलता को बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विद्युत मंत्रालय ने ऊर्जा कुशलता ब्यूरो के ज़रिए ऊर्जा कुशलता में वृद्धि करने के लिए राष्ट्रीय मिशन आरंभ किया है। योजना आयोग ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 1990 से 2005 के दौरान भारत द्वारा किये जा रहे उत्सर्जन में 17.6 प्रतिशत की कमी आई है और वर्ष 2005 से वर्ष 2020 के दौरान उत्सर्जन में 20-25 प्रतिशत की कमी करना संभव है। इसके लिए आवश्यक वित्ताीय प्रावधानों तथा तकनीकी संसाधनों के साथ उत्सर्जन को कम करने के लिए विशेषीकृत क्षेत्रों में आवश्यक कार्रवाइयांे की जरूरत है। इसमें ऐसे सतत् विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, जिसमें कम कार्बन उत्सर्जन होता हो, आंतरिक तथा अंतर्राष्ट्रीय सहायता भी शामिल है।#
जलवायु परिवर्तन पर भारत की कार्यनीतियां
कल्पना पाल्खीवाला - 2010-01-27 17:23
जलवायु परिवर्तन पर भारत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर रचनात्मक कार्यों में संलग्न रहने के साथ-साथ घरेलू स्तर पर भी इस दिशा में एक मज़बूत एजेन्डे पर काम कर रहा है। भारत इस बात को मानता है कि जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए रणनीतियों का निर्माण सतत् विकास के लिए बनाई गई रणनीतियों के आधार पर होना चाहिए।