निजीकरण की लाॅबी मेट्रो प्रोजेक्ट को हासिल करने के लिए बहुत ही हाथ पैर मार रही थी, लेकिन अंत में केरल सरकार ने फैसला किया कि इन परियोजनाओं में निजी उद्यमियों को प्रवेश की इजाजत नहीं मिलेगी।

केन्द्र सरकार ने फैसला किया है कि इन दोनों परियोजनाओं को पूरा करने का काम दिल्ली मेट्रो रेल काॅर्पोरेशन को ही दिया जाएगा। दिल्ली मेट्रो काॅर्पोरेशन के मुख्य सलाहकार ई श्रीधरन ही अब इन परियोजनाओं का नेतृत्व करेंगे। इसकी घोषणा खुद मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने की। उन्होंने कहा कि परियोजना के कुल खर्च का 20 फीसदी केरल सरकार उठाएगी, जबकि 20 फीसदी खर्च केन्द्र सरकार करेगी। शेष 60 फीसदी खर्च के लिए जापान की एक एजेंसी से कर्ज लिया जाएगा। कर्ज पर ब्याज आधा फीसदी ही होगा।

केरल मोनो रेल काॅर्पोरेशन ने डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिर्पोर्ट का पास भी कर दिया है। उसके बाद अब परियोजना की सलाह का जिम्मा सीधे दिल्ली मेट्रो रेल प्रोजेक्ट को दे दिया जाएगा और इसके लिए किसी प्रकार के टेंडर की जरूरत नहीं पड़ेगी।

श्रीधरन और दिल्ली मेट्रो रेल काॅर्पोरेशन के लिए इन परियोजनाओं का नेतृत्व पाना कोई आसान काम नहीं था। निजी लाॅबी पूरी ताकत के साथ केरल के मुख्यमंत्री के ऊपर दबाव बना रही थी। वे इन परियोजनाओं को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के रूप में देखना चाह रहे थे और उनमें खुद हिस्सेदारी करना चाह रहे थे। राज्य सरकार का मन भी डोल रहा था। तब श्रीधरन ने केरल सरकार को चेतावनी दे डाली। उन्होंने कहा कि यदि इन परियोजनाओं को पीपीपी माॅडल के तहत लाया जाता है, तो वे और दिल्ली मेट्रो रेल काॅर्पोरेशन की दिलचस्पी इसमें पूरी तरह समाप्त हो जाएगी।

केरल सरकार का वित्त मंत्रालय निजी लाॅबी के दबाव में आकर उसे भी परियोजना में शामिल करना चाहता था और पीपीपी माॅडल के लिए वह तैयार था। लेकिन जब श्रीधरन ने साफ साफ बता दिया कि पीपीपी माॅडल उन्हें मंजूर नहीं है, तो मुख्यमंत्री की उपस्थिति में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई और उसमें फैसला किया गया कि निजी सेक्टर को इन परियोजनाओं में शामिल नहीं किया जाएगा।

श्रीधरन पीपीपी माॅडल के पूरी तरह खिलाफ हैं, क्योंकि दिल्ली एअरपोर्ट मेट्रो परियोजना में उन्होंने इस माॅडल की दुर्गति देखी थी। वह परियोजना निजी सेक्टर के कारण मुश्किल में पड़ गई थी। परियोजना के लिए जमीन और सिविल वर्क का खर्च दिल्ली मेट्रो उठा रहा था। अनके प्रकार की सिस्टम का खर्च भी दिल्ली मेट्रो का ही था। इसके बावजूद निजी सेक्टर की कंपनी उस परियोजना से भाग खड़ी हुई।

इसलिए श्रीधरन को लग रहा था कि यदि तिरुअनंतपुरम और कोजिखोड़े परियोजनाओं को भी पीपीपी माॅडल के तहत चलाया गया, तो उनका भी हश्र दिल्ली एअरपोर्ट परियोजना जैसा ही हो सकता है। यही कारण है कि उन्होंने पीपीपी माॅडल का हिस्सा होने से साफ इनकार कर दिया। (संवाद)