दरअसर मई महीने की शुरुआत में ही दिल्ली सरकार के अंटी करप्शन ब्यूरो ने एक पुलिस हवलदार को भ्रष्टाचार में लिप्त होते हुए गिरफ्तार किया था। उस हवलदार ने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि दिल्ली पुलिस केन्द्र सरकार के अधीन है और वह केन्द्र सरकार का कर्मचारी है, इसलिए दिल्ली की प्रदेश सरकार उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती। अदालत ने उसकी बात को खारिज करते हुए कहा कि दिल्ली सरकार का अंटी करप्शन ब्यूरो उसके खिलाफ कार्रवाई करने में पूरी तरह सक्षमह ै। यह कहते हुए उसने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी और यह भी कह दिया कि केन्द्र सरकार के गृहमंत्रालय द्वारा जारी की गई वह अधिसूचना संदिग्ध है। इसके साथ यह भी जोड़ दिया कि दिल्ली के उपराज्यपाल दिल्ली की प्रदेश सरकार की सलाह से काम करने के लिए बाध्य है।

दूसरी तरफ राजनाथ सिंह द्वारा जारी की गई अधिसूचना में कहा गया था कि यदि उपराज्यपाल की मर्जी है कि वे अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए मुख्यमंत्री से राय लें या न लें और यदि राय लें भी तो उसे माने या न माने, यह भी उपराज्यपाल क इच्छा पर ही निर्भर करता है। उस अधिसूचना को जारी करते हुए इस तथ्य का आधार लिया था कि दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है, बल्कि यह एक केन्द्र शासित प्रदेश है और यहां केन्द्र उपराज्यपाल की सहायता से शासन करता है।

लेकिन अधिसूचना जारी करते हुए केन्द्र सरकार यह भूल गई कि दिल्ली की अपनी एक विधानसभा भी है और विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है। जिस सांवैधानिक प्रावधान के तहत दिल्ली को विधानसभा मिली है, उसने दिल्ली विधानसभा के अधिकार भी तय कर दिए हैं। अब सवाल उठता है कि क्या उपराज्यपाल विधानसभा से ऊपर हैं? यदि राजनाथ सिंह की अधिसूचना को पढ़ा जाय, तो इसी तरह का संदेश दिया गया है। संविधान में ऐसा कुछ नहीं लिखा गया है कि उपराज्यपाल को मुख्यमंत्री के ऊपर बड़े अधिकार दिए गए हैं और वह जब कभी भी समझेंगे, मुख्यमंत्री और उनकी परिषद से उलटा निर्णय भी कर सकते हैं।

यह सच है कि दिल्ली की सरकार अन्य राज्यों की तरह ताकतवर नहीं है। अन्य राज्यों की तरह कानून व्यवस्था दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है। जमीन के मामले में दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है। इन मामलों के केन्द्र ने अपने पास रखा है। लेकिन यह भी सच है कि उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच इन मसलों पर विवाद नहीं उठ रहा था। अरविंद केजरीवाल किसी एसीपी या डीसीपी की नियुक्ति नहीं कर रहे थे और न ही डीडीए के अधिकारियों का तबादला कर रहे थे। वे उन्हीं क्षेत्रों में अधिकारियों को नियुक्ति अथवा स्थानांतरण का काम कर रहे थे, जो उनके अपने अधिकार क्षेत्र में आता है। वे अपने दायित्वों के लिए विधानसभा और दिल्ली की जनता के प्रति जवाबदेह हैं, न कि दिल्ली के उपराज्यपाल अथवा केन्द्र सरकार के प्रति। उनके अधिकार क्षेत्र क्या हैं, यह संविधान में साफ साफ लिखा गया है, पर उनके अधिकार क्षेत्रों में भी केन्द्र सरकार उपराज्यपाल के मार्फत यह कहते हुए हस्तक्षेप कर रही है कि दिल्ली एक केन्द्र शासित प्रदेश है।

सवाल उठता है कि यदि केन्द्र शासित प्रदेश होने के कारण केन्द्र सरकार को ही उपराज्यपाल की सहायता से दिल्ली का शासन करना था, तो फिर यहां विधानसभा की जरूरत ही क्यों पड़ी? देश में और भी केन्द्र शासित प्रदेश हैं और वहां विधानसभा नहीं है। इसलिए वहां के लिए यह बात यदि कही जाय, तब तो सही है, लेकिन यह कहना कि अपनी विधानसभा होने के बावजूद दिल्ली की चुनी सरकार के पास कोई ताकत ही नहीं है, सच को झुठलाना है। सच तो यह है कि संविधान में स्पष्ट कर दिया गया है कि दिल्ली सरकार के अधिकार क्या हैं और केन्द्र सरकार के अधिकार क्या हैं। उपराज्यपाल एक तरफ तो केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि हैं और केन्द्र सरकार के लिए आरक्षित क्षेत्रों के प्रशासक हैं और दूसरी तरफ वह दिल्ली की प्रदेश सरकार के संवैधानिक प्रमुख हैं, ठीक उसी तरह जिस तरह केन्द्र सरकार के संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति हैं।

इसका मतलब यह हुआ के दिल्ली सरकार के मुखिया के रूप में उनकी भूमिका अन्य राज्यों के राज्यपाल की तरह ही है, जबकि केन्द्र के प्रतिनिधि के रूप में केन्द्र सरकार के लिए आरक्षित क्षेत्रों में वे काम करने के लिए दिल्ली सरकार की सलाह पर निर्भर नहीं हैं। संविधान में उनके अधिकार के बारे में जहां लिखा गया है कि केन्द्र सरकार उपराज्यपाल की सहायता से दिल्ली मे शासन करेगी और वे अपनी इच्छा के अनुसार प्रदेश सरकार की सलाह ले भी सकते हैं और नहीं भी ले सकते हैं, वह केन्द्र के लिए आरक्षित पुलिस और भूमि के मामलों तक ही सीमित है। विधानसभा और दिल्ली के लोगों के प्रति अपने कामों के लिए जवाबदेह दिल्ली सरकार की सलाह को मानने से वह मना नहीं कर सकते अथवा उसके लिए आरक्षित कामों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।

राजनाथ सिंह की अधिसूचना में जो कहा गया है, यदि उसे ही सच मान लिया जाय, तो दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री की हैसियत उपराज्यपाल क आदेशपाल की हो जाती है। क्या विधानसभा का चुनाव मुख्यमंत्री को चुनने के लिए होती है या दिल्ली के उपराज्यपाल के लिए एक आदेशपाल की नियुक्ति के लिए? भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इसमें वही ज्यादा ताकतवर होगा, जो जनता से चुनकर आ रहा है और जो जनता के प्रति अपने काम के लिए जवाबदेह है। अच्छा होगा कि इस मामले को तूल दिए बिना राजनाथ सिंह उस अधिसूचना को वापस ले लें, जो दिल्ली के मुख्यमंत्री को एक आदेशपाल के रूप में तब्दील कर रही है। (संवाद)