केजरीवाल ऐसे नेता हैं, जिन्होंने मोदी की जीत के रथ को रोक दिया। उन्होंने वैलेंटाइन डे के दिन मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लिया। उम्मीद की जा रही थी कि हनीमून की अवधि कम से कम 6 महीनों की होगी, लेकिन वैसा हुआ नहीं। केजरीवाल सरकार का पहला कार्यकाल धरना कार्यकाल के रूप में जाना जाता है। अपने दूसरे कार्यकाल के पहले दिन से ही केजरीवाल के साथ एक के बाद एक विवाद जुड़ते जा रहे हैं। कभी उनके सामने स्वास्थ्य की समस्या आई, तो कभी पार्टी की अंदरूनी कलह के दौर से उन्हें गुजरना पड़ा। फिर उपराज्यपाल से उनकी टक्कर हुई और अब केन्द्र सरकार के साथ वे टकरा रहे हैं। लोगों ने उनको सरकार चलाने के लिए चुना था, लेकिन वे ड्रामा और टकराव की राजनीति कर रहे हैं।

आम आदमी पार्टी की 100 दिनों की उपलब्धियां क्या रही हैं? कुछ चुनावी वायदों को पूरा करने का उन्होंने प्रयास किया। उन्होने एक दिल्ली संवाद आयोग का गठन किया है। उन्होंने फोन नंबर 1013 को फिर से सक्रिय कर दिया है। उसके द्वारा वे भ्रष्टाचार की समस्या को हल करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होेंने बिजली को सस्ता कर दिया है और एक सीमा तक इस्तेमाल किए गए पानी को भी शुल्क मुक्त कर दिया है। दिल्ली बजट बनाने के लिए उन्होंने 11 विधानसभा क्षेत्रों का चयन किया है, जिनके लोगों की राय बजट बनाने के पहले ली जानी है। आॅटो रिक्शा चालकों को भ्रष्टाचार और प्रशानिक मनमानी से बचाने के लिए भी उन्होंने कदम उठाए हैं। ई रिक्शा चालकों को भी उन्होंने राहत प्रदान की है। प्रत्येक साल आॅटों रिक्शा चालक के किरायों की समीक्षा करने की नीति भी अपनाई है। इसके लिए 1 अप्रैल का दिन निश्चित किया गया है। उन्होंने व्यापारियों को राहत देने के लिए वैट में भी सुधार किए हैं। बैमौसम बरसात के कारण जिन किसानों की फसलें खराब हुई हैं, उन्हें 50 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा भी दे दिया। देश में मुआवजे की यह अधिकतम दर है। आप सरकार ने अपना शिक्षा बोर्ड बनाने का भी निर्णय किया है। उसने डीटीसी चालकों और डाॅक्टरो की हड़ताल से निबटने के लिए एस्मा का सफलता से इस्तेमाल भी किया।

लेकिन केजरीवाल सरकार की इन उपलब्धियों से ज्यादा उसके विवादों की चर्चा ही हुई है। सरकार पुलिस से लड़ रही है, उपराज्यपाल से लड़ रही है, नौकरशाहों से लड़ रही है, केन्द्र सरकार से लड़ रही है और मीडिया से भी लड़ रही है। इसके अलावा वह दिल्ली नगर निगम से भी लड़ रही है, भारतीय जनता पार्टी से लड़ रही है और कांग्रेस से भी लड़ रही है। साथ ही साथ केजरीवाल अपनी पार्टी के ंअसंतुष्टों से भी लड़ते दिखाई पड़ रहे थे।

केजरीवाल को यह बात समझ में आनी चाहिए कि सरकार चलाना भी एक कला है और यह एक बेहद संवेदनशील मामला है। सबसे ज्यादा संवेदनशील तो दिल्ली सरकार के लिए केन्द्र सरकार का सामना करना है। यदि वह लड़ने लगे, तो इसका कोई अंत ही नहीं होगा। इसलिए उन्हें टकराव से बचने की कोशिश करनी चाएि। जब उन्होंने सत्ता संभाली थी, तो कहा था कि वे केन्द्र के साथ सद्भाव बनाकर चलेंगे। लेकिन पिछले 100 दिनों मंे उपराज्यपाल से उनका झगड़ा उनकी सरकार की सबसे महत्वपूर्ण घटना है। उसके बाद केन्द्र के साथ उनका संघर्ष शुरू हो गया है।

केजरीवाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की है। यह उनका सपना भी है। उनके पहले की सरकारें भी इसकी मांग करती रही हैं। लेकिन केन्द्र सरकार इस मांग को पूरा करने के मूड में नहीं दिखाई पड़ रही है। (संवाद)