दूसरी ओर केन्द्र का गृह मंत्रालय भी आपत्ति जाहिर है। वह कह रहा है कि उसे भी इसके बारे में जानकारी नहीं दी गई कि दिल्ली प्रदेश की सरकार अपने एक ब्यूरो के लिए दूसरे प्रदेशों से स्टाॅफ मंगा रही है। केन्द्र यह संकेत दे रहा है कि यदि ऐसा किया गया और दूसरे प्रदेश के स्टाॅफ दिल्ली की एसीबी में आए, तो उन्हें केन्द्र सरकार की ओर से तनख्वाह नहीं दी जाएगी।
इस तरह एक बार फिर तनाव का माहौल केन्द्र और दिल्ली की प्रदेश सरकारों के बीच बन गया है। और इस तनाव के बीच अरविंद केजरीवाल का राजनैतिक कद बढ़ता जा रहा है। इसका कारण यह है कि अरविंद केजरीवाल लगातार यह संदेश देने में सफल हो रहे हैं कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए बहुत ही सचेष्ट हैं, लेकिन उनकी कोशिशों के खिलाफ केन्द्र सरकार लगातार रोड़े डाल रही है।
अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आंदोलन का नेतृत्व करते हुए राजनीति में आए और मुख्यमंत्री भी बन गए। वे एक लोकपाल बनाने की लड़ाई लड़ रहे थे, जिसके द्वारा सरकारी भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके। वे प्रदेशों के लिए भी लोकपाल की वकालत कर रहे थे। पर दूसरी बार सत्ता में आने के बाद वे दिल्ली प्रदेश के लिए किसी लोकपाल का कानून बनाए जाने के पक्ष में नहीं दिखते। लोकपाल की कमी वे एसीबी के द्वारा ही पूरी करना चाहते हैं। एसीबी की व्यवस्था दिल्ली में पहले से ही है और इसे दिल्ली में सरकारी भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार प्राप्त है।
दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश है और कानून व्यवस्था स्थापित करना केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है। इसके कारण दिल्ली पुलिस भी केन्द्र सरकार के पास ही है। जब केन्द्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों के बंटवारे के लिए संविधान संशोधन हो रहा था, तो भ्रष्टाचार निरोधी ब्यूरो यानी एसीबी को दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में ही रखा गया।
केजरीवाल सरकार के बनने के पहले एसीबी का नाम कुछ इने गिने लोग ही जानते थे और वह लगभग निष्क्रिय था। कई बार तो उसके पास पूर्णकालिक प्रमुख भी नहीं हुआ करता था और उसके दफ्तर की मेजों की धूल झाड़ने वाले लोग भी प्रायः वहां नहीं होते थे।
लेकिन केजरीवाल सरकार ने उस एसीबी में जान डाल दी है। दिल्ली में भ्रष्टाचार को समाप्त करने का एक बड़ा उपकरण अब वह ब्यूरो हो गया है। केन्द्र और प्रदेश सरकार के बीच चल रहे टकराव का सबसे बड़ा कारण एसीबी ही है। केजरीवाल ने अपने पहले कार्यकाल में एसीबी के द्वारा ही केन्द्र के पेट्रोलियम मंत्री और मुकेश अंबानी के खिलाफ गैस की कीमतें बढ़ाने की साजिश करने का मुकदमा ठोंक दिया था।
दिल्ली पुलिस, डीडीए और एमसीडी के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए केजरीवाल एसीबी का इस्तेमाल करना चाह रहे हैं। इन संस्थानों के अधिकारी और कर्मचारी दिल्ली सरकार के अधीन नहीं हैं। और केन्द्र सरकार कह रही है कि केजरीवाल सरकार के अधीन पड़ी एसीबी केन्द्र सरकार के कर्मचारियों को गिरफ्तार नहीं कर सकती है और उन पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इसी बात को लेकर मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहा है।
इस क्रम में संदश यह जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हैं और केन्द्र सरकार उन्हें वैसा करने नहीं दे रही है। यदि यह धारणा लंबे समय तक बनी रही, तो इससे अरविंद केजरीवाल का राजनैतिक कद और भी बढ़ेगा और केन्द्र सरकार के भ्रष्टाचार रोकने के दावों को लोग संदेह की दृष्टि से देखेंगे।
एसीबी के पास इस समय स्टाॅफ की कमी है और उसके लिए वे दिल्ली पुलिस के स्टाॅफ पर भरोसा नहीं करना चाहते। इसके कारण ही उन्होंने दूसरे राज्यों से स्टाॅफ की मांग की है। ऐसा करके वे गैर भाजपा राज्यो की सरकारो के साथ अपना संबंध बेहतर बना रहे हैं। भ्रष्टाचार विरोधी केजरीवाल के कदमों का विरोध कर केन्द्र सरकार अरविंद के जाल में फंसती जा रही है। (संवाद)
भारत: दिल्ली
केजरीवाल भ्रष्टाचार के मसले पर आरपार के मूड में
अरविंद के जाल में फंस रही है केन्द्र सरकार
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-06-05 01:11
नई दिल्लीः अरविंद केजरीवाल सरकार ने भ्रष्टाचार निरोधी ब्यूरो के लिए दूसरे राज्यों से सुरक्षा बल मंगाने का एक ऐसा फैसला किया है, जिससे केन्द्र सरकार एक बार फिर तिलमिला गई है। केन्द्र सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले उपराज्यपाल नजीब जंग ने घोषणा कर डाली कि दिल्ली सरकार के भ्रष्टाचार निरोधी ब्यूरो यानी एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के मुखिया वे हैं और उनसे दिल्ली से बाहर से सुरक्षा बल मंगाने की इजाजत केन्द्र सरकार ने नहीं मांगी है।