विलंब से परेशान लालू यादव ने एक बार कह दिया कि नीतीश जल्द से जल्द बातचीत शुरू करें और गठबंधन को अंतिम रूप दिया जाय। उन्होंने यह भी कह दिया कि यदि गठबंधन हो गया, तब भी ठीक और नहीं हुआ, तब भी ठीक। जवाब मंे बिहार प्रदेश जनता दल(यू) के अध्यक्ष वशिष्ठ सिंह ने कह डाला कि गठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तो नीतीश कुमार ही होंगे। इसे स्वीकार करने के बाद ही गठबंधन हो सकता है। इसके साथ साथ उन्होंने यह भी कह दिया कि गठबंधन हुआ, तब भी ठीक और नहीं हुआ तब भी ठीक।
इस तरह की बयानबाजियों से साफ लग रहा था कि गठबंधन होने ही वाला नहीं है। लालू यादव तब जीतनराम मांझी से बात करने लगे और नीतीश कुमार कांग्रेसी नेताओं से। लग रहा था कि दोनों दलों के बीच संवाद भी टूट रहा है, लेकिन गठबंधन के लिए सबसे ज्यादा चिंतित नेताओं ने फिर एक बार लालू और नीतीश के बीच बैठक करा दी मुलायम सिंह के आवास में। इस प्रकार गठबंधन पर बातचीत की गाड़ी पटरी से जो उतर गई थी, एक बार फिर पटरी पर आ गई।
लेकिन इसमें कुछ भी नया नहीं था। पिछले साल 6 दलों ने आपस में विलय कर एक दल मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में बनाने का फैसला किया था। उस फैसले के बाद बात आगे नहीं बढ़ रही थी। विलय को लेकर तरह तरह के बयान दिए जा रहे थे। जो विलय के लिए सबसे ज्यादा बेचैन थे, वे विलय की तारीख तक बता रहे थे और जो नेता विलय नहीं चाहते थे, वे अलग तरह के बयान दे रहे थे। लगने लगा कि विलय होगा ही नहीं। तब सभी नेताओं ने एक बैठक बुला ली और विलय की घोषणा कर डाली। उन्होंने कह दिया कि सभी छह पार्टियों को आपस में विलय हो गया है और विलय के बाद बनी नई पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव हैं। हालांकि घोषणा करने वाले नेताओं को भी यह नहीं पता था कि जो नई पार्टी बनी है, उसका नाम क्या है और निशान क्या है। इसे तय करने के लिए 6 सदस्यों की एक कमिटी बना दी गई।
विलय की घोषणा का क्या हश्र हुआ, यह सबको पता है। विलय होना नहीं था और वह हुआ नहीं। सच कहा जाय, तो उसकी कोई संभावना थी ही नहीं, क्योंकि पार्टियों को अपनी जेबी पार्टी बनाकर राजनीति करने वाले नेता अपनी अपनी जेबों को खाली करने के लिए तैयार ही नहीं थे। विलय कराने में विफल नेतागण अब गठबंधन के लिए आतुर हो रहे हैं। लेकिन जब विलय संभव नहीं हो पाया, तो गठबंधन कैसे होगा?
विलय नहीं हुआ, क्योंकि लालू यादव अपने राजद का अस्तित्व समाप्त करने को तैयार नहीं थे। एक कारण समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव के अपने हित का मारा जाना था। वे राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के सांसदों के नेता हैं। विलय के बाद उन्हें वह पद छोड़ना पड़ता और वे यह त्याग करने को तैयार नहीं थे। इसलिए समाजवादी पार्टी के अंदर उन्होंने विलय के खिलाफ माहौल तैयार किया और उसमें वे सफल भी रहे। अखिलेश यादव तक विलय के खिलाफ थे। रामगोपाल यादव ने विलय को अव्यावहारिक करार देते हुए बयान जारी कर दिया। लालू यादव ने उनके बयान की पुष्टि कर दी कि विलय चुनाव के बाद ही होगा और उसके पहले गठबंधन होगा।
लेकिन यदि विलय नहीं हुआ, तो फिर गठबंधन कैसे होगा? सच तो यह है कि विलय होने की स्थिति में सीटों के बारे में ज्यादा खींचतान नहीं होती। राजद और जद(यू) के सभी विधायक एक ही दल के विधायक होते और सभी वर्तमान विधायकों को एक बार फिर टिकट देने में विवाद नहीं होता। पर गठबंधन में तो समस्या यह है कि लालू यादव का समर्थक वर्ग नीतीश के समर्थक वर्ग से ज्यादा बड़ा है, जो पिछले लोकसभा चुनाव में साबित हो चुका है। पर विधानसभा में जद(यू) के विधायक राजद के विधायकों से 5 गुना ज्यादा हैं। लालू का चाहना स्वाभाविक है कि मतदाताओं के बीच उनकी ताकत के अनुपात में उनकी पार्टी को सीटें मिले, पर नीतीश कुमार का यह दावा भी स्वाभाविक है कि उनके दल के सारे विधायकों को भी टिकट मिले। इस तरह सीटों का बंटवारा आसान नहीं है।
मुख्यमंत्री की उम्मीदवारी को लेकर भी लालू और नीतीश की चिंताएं अपनी अपनी जगह सही है। यदि नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित किया जाता है, तो लालू यादव का यादव समर्थक वर्ग दो टुकड़ों में बंट सकता है, क्योंकि नीतीश राज में यादवों के साथ अच्छे सलूक नहीं हुए और वे नीतीश विरोधी हो गए हैं। दूसरी तरफ यदि नीतीश को मुख्यमंत्री नहीं घोषित किया जाता है तो नीतीश के वे समर्थक जो कट्टर लालू विरोधी हैं, उनका साथ छोड़ देंगे। उसके कारण गठबंधन को तो लाभ नहीं ही होगा, नीतीश को भी भारी राजनैतिक नुकसान हो सकता है। जाहिर है, नीतीश इस तरह का समझौता नहीं करना चाहेंगे, जिसके कारण उनके समर्थक उनका साथ छोड़ दें और लालू भी वैसा गठबंधन नहीं करना चाहेंगे, जिसके कारण उनका समर्थक उनका साथ छोड़ दें।
पर समस्या यह भी है कि लालू का समर्थक वर्ग अकेले लालू को और नीतीश का समर्थक वर्ग अकेले नीतीश को चुनाव जिताने में सक्षम नहीं है। इसलिए दोनों को लगता है कि गठबंधन हो ही जाए, पर दोनों अपने अपने समर्थक वर्गों की भावनाओं का सम्मान करते हुए ही गठबंधन करना चाहते हैं। लेकिन क्या यह सभव है? (संवाद)
लालू नीतीश में गठबंधन का खेल
बिहार की जमीनी हकीकत बाधा बन रही है
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-06-08 17:29
एक बार फिर लालू और नीतीश की तरफ से गठबंधन का संकल्प व्यक्त किया गया है और इस संकल्प के इजहार का जिम्मा समाजवादी पार्टी के नेता रामगोपाल यादव को दिया गया। बीच बीच में ऐसा करते रहना पड़ता है, क्योंकि नीतीश और लालू के समर्थक और खुद दोनों नेता भी कभी कभी ऐसे ऐसे बयान दे डालते हैं जिससे लगता है कि गठबंधन शुरू होने के पहले ही समाप्त हो गया। जैसे लालू यादव के दल के दूसरे नंबर के नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपने दल के लिए 145 सीटों पर दावा ठोंक दिया, तो नीतीश कुमार ने कह दिया कि चुनाव लड़ने के लिए आपके पास 243 सीटें उपलब्ध हैं। यानी उन्होंने राजद को सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की सलाह या चुनौती दे डाली।