दिल्ली विधानसभा के आम चुनाव के बाद बिहार में ही आम चुनाव होने हैं। उसमें भारतीय जनता पार्टी की करारी हार हुई और उस हार से नरेन्द्र मोदी की जिताऊ छवि को काफी झटका लगा। यदि बिहार में भी भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार जाती है, तो यह साफ संदेश जाएगा कि मोदी का जादू बहुत तेजी से उतर रहा है और वे पार्टी को चुनाव जिताने की अपनी ताकत खो चुके हैं

लोकसभा आम चुनाव के बाद बिहार में हुए उपचुनावों में भाजपा पहले ही हार चुकी है। 10 विधानसभाओं के उपचुनाव थे, जिनमें से 8 तो भाजपा विधायकों के इस्तीफे के कारण ही खाली हुए थे। उन 10 सीटों में भाजपा को मात्र 4 सीटों पर ही जीत हासिल हुई, जबकि प्रतिद्वंद्वी राजद-जद(यू)-कांग्रेस गठबंधन को 6 सीटें मिलीं। भाजपा अपनी अनेक सीटें भी गंवा बैठीं।

यदि उपचुनाव की प्रवृति बनी रही, तो यह नरेन्द्र मोदी के लिए बहुत घातक साबित हो सकता है। मोदी की सरकार पर राहुल गांधी की ओर से लगातार हमले हो रहे हैं, जिनका सामना सही तरीके से मोदी की सरकार और उनकी पार्टी नहीं कर पा रही है। देश के अनेक वर्ग सरकार के खिलाफ अपना असंतोष व्यक्त कर रहे हैं। किसान आंदोलन कर रहे हैं। भूतपूर्व सैनिक भी अपनी मांगों को लेकर अपना स्वर मुखर कर रहे हैं। मध्य वर्ग में भी बचैनी है और केरल के मछुआरे भी सरकार के खिलाफ आ खड़े हुए हैं। बिहार में यदि भाजपा की हार हो जाती है, तो राहुल गांधी का केन्द्र सरकार पर हमला और भी तेज हो जाएगा।

भाजपा की बिहार में हार से पार्टी के विरोधी ही उत्साहित नहीं होंगे, बल्कि भाजपा और संघ के अंदर के मोदी विरोधी भी इससे उत्साहित होंगे। भगवा राजनीति के पैरोकार कहंेगे कि मोदी सरकार हिन्दुत्व के मुद्दे की उपेक्षा कर रही है और इसके कारण ही उसकी हार हो रही है। राम मन्दिर के मुद्दे पर विनय कटियार जैसे भाजपा सांसदों की संख्या बढ़ती जाएगी और साक्षी महाराज जैसे लोगों की जुबान बंद करना कठिन हो जाएगा। विश्व हिंदू परिषद और शिवसेना को बोलने से मोदी पहले ही अपने आपको असमर्थ पा रहे हैं।

यही कारण ही मोदी के लिए इस चुनाव को जीतने के अलावा कोई और विकल्प नहीं हैं। यदि भाजपा बिहार का चुनाव जीत जाती है, तो वह नरेन्द्र मोदी की सरकार अपने अनुसार अपनी सरकार के एजेंडे को तय करती रहेगी और पार्टी के अंदर के अपने विरोधियों पर भी लगाम लगाने में सफल हो सकेगी।

बिहार में राजद और जनता दल(यू) के बीच एकता के प्रयास हो रहे हैं। पहले तो उनके विलय की ही बात थी। फिलहाल विलय का मामला टल गया है और गठबंधन पर भी बातचीत हो रही है। बातचीत कभी सफल तो कभी विफल होती दिखाई दे रही है। नेत्त्व और सीट बंटवारे को लेकर भारी मतभेद रहे हैं। नेतृत्व का मुद्दा तो हल हो गया है और अब सीट बंटवारे को लेकर दोनों दलों में तनाव हो सकता है और गठबंधन खटाई में भी पड़ सकता है। नरेन्द्र मोदी यही चाहेंगे कि दोनों दलों के बीच गटबंधन आखिरकार टूट जाय। (संवाद)