शशि थरूर के भ्रष्टाचार को लेकर मनमोहन सिंह बहुत चिंतित नहीं थे। शुरुआती झिझक के बाद उन्होंने थरूर का इस्तीफा लिया और बाद में उन्हें फिर अपनी मंत्रिपरिषद में शामिल कर लिया। थरूर के आइपीएल भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने के बाद भ्रष्टाचार के जितने मामले सामने आए, उन सब पर मनमोहन सिंह ने मौन धारण कर लिया और पानी सिर से बहुत ऊपर जाने के बाद ही भ्रष्ट मंत्रियों पर कार्रवाई हुआ करती थी। अनेक मंत्रियों के खिलाफ तो कार्रवाई हुई ही नहीं। इसका असर यह हुआ कि जिस मनमोहन सिंह की ईमानदारी छवि के बूते कांग्रेस ने बहुत चुनावों के बाद लोकसभा मंे 200 का आंकड़ा पार किया है, उस मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि ऐसी तार तार हुई कि अगले चुनाव में न केवल कांग्रेस को अपनी सबसे अधिक शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा, बल्कि जिस किसी का नाम कांग्रेस से उस बीच जुड़ा, वही डूब गया। यदि प्रधानमंत्री के रूप में आप किसी भ्रष्ट मंत्री को अपने मंत्रिमंडल के बनाए रखते हैं, तो आपकी ईमानदारी मजाज एक मजाक बन कर जाती है। मनमोहन सिंह तो गठबंधन की मजबूरी बताकर राजा और दयानिधि जैसे मंत्रियों को अपनी सरकार में रखने की बाध्यता का रोना रोया करते थे, लेकिन जनता ने उस तर्क को स्वीकार नहीं किया और चुनाव में ऐसा दंड कांग्रेस को मिला, जिसकी उम्मीद उसके विरोधी भी नहीं कर रहे थे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी ईमानदारी के मामले में वही छवि है, जो मनमोहन सिंह की थी। मनमोहन सिंह को भी सबसे पहले ललित मोदी के कारण शशि थरूर के भ्रष्टाचार का मामला सार्वजनिक होते देखना पड़ा था, लेकिन उन्होंने एक भ्रष्ट व्यक्ति को संरक्षण प्रदान किया और लोगों के बीच मंे अपनी छवि खराब कर डाली। संयोग देखिए कि उसी ललित मोदी के कारण आज मोदी मंत्रिमंडल की एक वरिष्ठ मंत्री विवादों में आ गई हैं, हालांकि ललित मोदी का नाम कुछ अलग तरह से आ रहा है। 2010 में ललित मोदी का झगड़ा शशि थरूर से हुआ था, इसलि थरूर का भ्रष्टाचार खबरों में आया। इस बार ललित मोदी की सुषमा स्वराज से दोस्ती सामने आई है। इस दोस्ती के कारण सुषमा स्वराज का भ्रष्टाचार सामने आया है। इस भ्रष्टाचार में रूपये की लेनदेन की बात सामने नहीं आई है, लेकिन यदि आचरण भ्रष्ट हो तो उसमें कैश का लेना देना अनिवार्य नहीं होता। एक विदेश मंत्री के रूप में सुषमा स्वराज ने ललित मोदी के लिए जो कुछ किया, उसे भ्रष्टाचार की श्रेणी में ही रखा जा सकता है, क्योंकि वेसा करती हुई, वे अपने पद का दुरुपयोग कर रही थी और जिस व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए भारत के प्रवत्र्तन निदेशालय ने ब्लू काॅर्नर नोटिस जारी कर रखा हो और जिसकी गिरफ्तारी के लिए इंटरपोल भी प्रयास रत था, उस भगोड़े मुजरिम की सुश्री स्वराज सहायता पहुंचा रही थी। वैसे सहायता मानवता के आधार पर पहुंचाई जा रही थी। विदेश मंत्री का कहना है कि ललित मोदी की कैंसर पीड़ित पत्नी का आपरेशन पुर्तगाल में होना था और आपरेशन के पहले पति ललित मोदी का दस्तखत अस्पताल के सहमति फाॅर्म में जरूरी था, इसलिए ललित मोदी की सहायता की गई।

यह सहायता निश्चय ही मानवीयता के आधार पर दी गई, लेकिन क्या सुषमा स्वराज का पद उन्हें इस मामले में मानवीय होने की इजाजत दे रहा था? क्या मानवीयता के आधार पर अनधिकृत कालोनियों में रहने वाले लोगों के घर बुलडोजर चलने से कोई अधिकारी रोक सकता है,? यदि कुछ वैसी ही स्थिति दाउद इब्राहिम और उसकी पत्नी के साथ पैदा हो, तो क्या हमारी विदेश मंत्री और उनका विदेश मंत्रालय उस मामले में भी वही मानवीयता दिखाएगा? और यदि दिखाएगा, तो क्या भारतीय जनता पार्टी और उसकी केन्द्र सरकार उस मामले में भी वैसा ही रुख अपनाएगी, जैसा ललित मोदी और उनकी पत्नी के प्रति दिखाई गई सुषमा स्वराज की मानवीयता के बारे में अपना रही है?

सुषमा स्वराज द्वारा दिखाई गई वह मानवीयता भी स्वीकार्य हो जाती, यदि वह एक शर्त के साथ दिखाई जाती। बस एक शर्त हमारी विदेश मंत्री रखती कि यदि ललित मोदी भारतीय कानून के सामने सरंेडर कर देते हैं, तो वह उनकी पुर्तगाल यात्रा को सुगम कर देगी। जाहिर है, इस तरह की कोई शर्त ललित मोदी के सामने नहीं रखा गया। अपने पद का इस्तेमाल कर यदि सुषमा ललित मोदी की पुर्तगाल यात्रा के दस्तावेज मानवीयत के आधार पर तैयार करवा सकती थीं, तो ललित मोदी को वह भारत के प्रर्वत्र्तन निदेशालय के सामने समर्पण करने के लिए भी तैयार कर सकती थी। लेकिन उन्होंने वैसा नहीं किया। अपने मानव होने का दायित्व तो सुश्री स्वराज ने निभा दिया, लेकिन देश की एक मंत्री होने का दायित्व नहीं निभाया।

बात सिर्फ मानवता या मानवीयता तक सीमित नहीं है। यह मामला भी सामने आया है कि सुषमा की बेटी दिल्ली हाई कोर्ट में लगभग उसी समय ललित मोदी का मुकदमा लड़ रही थी। यानी बेटी अदालत में ललित मोदी की पैरवी कर रही थीं और मां ब्रिटिश हुकूमत के सामने मोदी की पैरवी कर रही थी। कहीं मां के दिल में मोदी के प्रति वह मानवीयता बेटी ने तो पैदा नहीं कर दी- यह संदेह सहज ही पैदा हो जाता है। इसलिए नरेन्द्र मोदी को चाहिए कि सुषमा स्वराज को अविलंब मंत्री पद से हटा दें और भ्रष्ट लोगों के संरक्षक के रूप में अपने आपको दिखाने की वह गलती कतई नहीं करें, जिसके कारण मनमोहन सिंह ने देश के ईमानदार प्रधानमंत्री के रूप में सबसे भ्रष्ट सरकार के नेतृत्व का खिताब हासिल कर लिया था। (संवाद)