उपभोक्ता वस्तुओं की मांग की दर में वृद्धि हो रही है। इसका प्रमाण वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री मंे देखी जा रही बढ़ोतरी है। मानसन के इस साल विफल होने की भविष्यवाणी की गई थी, लेकिन अभी तक तो इसकी स्थिति ठीकठाक ही बनी हुई है। हालांकि कुछ लोग कह रहे हैं कि मानसून अभी भी धोख्ेाा दे सकता है। लेकिन अनाज के उत्पादन में कमी आने की स्थिति का सामना करने के लिए सरकार ने अभी से तैयारी कर ली है। सरकार के पास अनाज का पर्याप्त भंडार है और दुनिया भर में अनाजों की कीमतों में कमी बनी हुई है। इसलिए अनाज की उपज कम होने पर भी देश में इसका संकट पैदा होने की आशंका नहीं हैं। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी लगातार बढ़ता जा रहा है और चालू खाते पर घाटा सकल घरेलू उत्पाद का एक फीसदी से भी कम है। इसलिए किसी सूखे की स्थिति का सामना करने के लिए हमारे पास पर्याप्त अनाज और विदेशी मुद्रा है।
भारत के निर्यातक बहुत अच्छा नहीं कर पा रहे हैं। इसका एक कारण यह है कि दुनिया के अमीर देशों में अभी भी मंदी की स्थिति पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। खासकर यूरोप की हालत अच्छी नहीं है। चीन का विकास निर्यात पर आधारित है। इसलिए वहां भी निवेश के अवसर कम हैं। यही कारण है कि भारत आज दुनिया के दूसरे देशों के लिए निवेश का एक अच्छा स्थान साबित हो सकता है।
निवेश के लिहाज से भारत ने अपना स्थान दुनिया में अव्वल बना लिया है। पिछले साल 2014 में इसका स्थान छठा था। इस साल इसने हांगकांग की जगह छीनकर पहला स्थान हासिल कर लिया है और पांच देश को पीछे छोड़ दिया है। इस लिहाल से चीन का स्थान 65वां है और अमेरिका का 50वां।
मोदी सरकार के अंदर हमारे देश में राजनैतिक स्थिरता का माहौल है और निवेश को बेहतर संरक्षण मिल रहा है। व्यापार का माहौल भी सुधर रहा है। इसके कारण देश में विदेशी निवेश में वृद्धि भी होने लगी है। पिछले वित्तीय साल में भारत ने 35 अरब डाॅलर का विदेशी निवेश आकर्षित किया। चीन जो औसतन प्रति साल 120 अरब डाॅलर विदेशी निवेश आकर्षित कर रहा था, अब अपना वह स्तर खो रहा है और वहां किए जाने वाले विदेशी निवेश में कमी आने लगी है। अब विदेशी निवेशक भारत की ओर देखने लगे हैं। इसका कारण यह है कि भारत में 40 करोड़ आधुनिक उपभोक्ताओं का एक बडा बाजार मौजूद है और यह बाजार आने वाले दिनों में और भी विस्तार पा सकता है।
भारत के विकास को तेज करने की बहुत बड़ी संभावनाएं हमारे यहां माजुद है और इसके लिए औद्योगिक उत्पादन के सेक्टर को बढ़ावा देना होगा। उससे लोगों को रोजगार मिलेगा और रोजगार पाने वाले लोग उपभोक्ता मांगों को और भी बढ़ाएंगे। इससे विकास की दर और भी तेज होगी। चीन की तरह हमें विकास के लिए विदेशी बाजारांे पर निर्भर होने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। हमें बस विदेशी निवेश चाहिए। (संवाद)
भारत में औद्योगिक उत्पादन को बड़ा बढ़ावा मिले
घरेलू मांग बढ़ाकर विकास दर बढ़ाया जा सकता है
के आर सुधामन - 2015-07-15 15:35
केन्द्र सरकार का ’’मेक इन इंडिया‘‘ अभियान भले ही जोर नहीं पकड़ पा रहा हो, लेकिन इसने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। इसका प्रमाण अर्थव्यवस्था की विकास दर में देखी जा रही वृद्धि है। केन्द्र सरकार ने सकल घरेलू उत्पाद विकास की वृद्धि को मापने का तरीका बदल दिया है और कुछ लोग इसके कारण जारी की जा रही विकास दरों के आंकड़ों पर सवाल खड़े कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहतर हो रही है और इसके कारण भविष्य में और भी तेज विकास की उम्मीद की जा सकती है। इस साल विकास की दर का अनुमान साढ़े सात फीसदी लगाया जा रहा है, लेकिन यदि यह दर 8 फीसदी तक पहुंच जाय, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।