सीपीआई प्रदेश सचिव कनम राजेन्द्रन ने बयान दिया था कि वामपंथी दलों को सेकुलरिज्म के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण से बाज आना चाहिए। उनका कहना था कि वामपंथियों के इन रवैयों से बहुसंख्यक हिंदू समुदाय में हताशा का दौर शुरू हो गया है और वे वामपंथियो से कटते जा रहे हैं। उन्होंने हिन्दुओं के इझावा समुदाय का विशेष तौर से उल्लेख किया। यह समुदाय खासतौर से वामपंथी समर्थक रहा है, लेकिन वामपंथियों के सेकुलरिज्म के कारण वे अब वामपंथियों से दूर होते जा रहे हैं।

राजेन्द्रन के उस बयान ने सीपीएम की एक कमजोर नस पर अंगुली रख दी है। इसके कारण उसे अंदर बहुत ही तीव्र प्रतिक्रिया हो रही है। सीपीएम के प्रदेश सचिव के बालकृष्णन ने शीघ्र प्रतिक्रिया देते हुए कहा उनकी पार्टी अल्पसंख्यको के तुष्टीकरण की दोषी नहीं है और उसकी प्रतिबद्धता सेकुलरिज्म के साथ ही रही है।

सीपीएम के एक अन्य नेता अनथलावत्तम आनंदन ने ने कहा कि सीपीएम सेकुलरिज्म को मजबूत करने के पक्ष में रही है, लेकिन इसके साथ साथ अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करना भी हमारी प्राथमिकता रही है।

राजेन्द्रन का यह बयान अरूविक्कारा विधानसभा के उपचुनाव के बाद आया है। वह उपचुनाव पिछले विधानसभा स्पीकर के निधन के कारण हुआ था। उसमें सीपीएम की हार हुई और सत्तारूढ़ मोर्चे की शानदार जीत। लेकिन इस हार जीत से भी ज्यादा महत्वपूर्ण नतीजा यह देखने को मिला कि वहां भारतीय जनता पार्टी को 34 हजार मत मिले, जबकि पिछले 2011 में हुए विधानसभा के आमुचुनाव में भाजपा को मात्र 6 हजार मत ही मिले थे। जाहिर है, भाजपा के वोट 5 गुना से भी ज्यादा बढ़े। भाजपा ने वहां अपने वरिष्ठ नेता ओ राजगोपाल को खड़ा किया था।

भारतीय जनता पार्टी के वोटों में हुई वह भारी बढ़त हिन्दुओं और खास कर इझावा समुदाय के लोगों का भाजपा के पक्ष में दिखाए गए रुझान के कारण ही संभव हो सका था। उसके बाद वामपंथी खेमे में खलबली मची हुई है।

सीपीएम इस बात को लेकर संतोष कर रही है कि भाजपा ने न केवला उसका वोट, बल्कि सत्तारूढ़ यूडीएफ के वोट भी काटे।

सीपीएम खुद को समझाने के लिए चाहे जो भी तर्क दे, वामपंथी मतों का भाजपा की ओर रुझान दिखाने से वामपंथी खेमे में खतरे की घंटी बजने लगी है। इसे कोई इनकार नहीं कर सकता है कि यूडीएफ की पिछली सरकार के दौरान अल्पसंख्यकों को सरकार की ओर से अनेक सहूलियतें दी गई थीं। उसंके कारण हिंदू लोग ठगे महसूस कर रहे थे। (संवाद)