जयललिता ने चुनावी बिगुल फूंक भी डाला है। उन्होने 8 जुलाई को चुनावी शंखनाद कर डाला। प्रदेश में बिजली की हालत बेहतर हुई है और विपक्षी पार्टियां बिखरी हुई हैं और उनके अंदर भी गुटबाजी चल रही है। इस माहौल में उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यकत्र्ताओं को कहा कि वे सभी जिलों में फैल जाएं और सरकार की उपलब्ध्यिो से लोगों को अवगत कराएं। चेन्नई की मेट्रो सर्विस का हाल ही में उदघाटन हुआ है। इसके बारे में लोगों को खासतौर पर शिक्षित करने के लिए कहा जा रहा है।

पर एक बात ने जयललिता और उनके समर्थकों को परेशान कर रखा है और वह है जयललिता के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई अपील। आय से अधिक संपत्ति के मामले में सेसन अदालत ने जयललिता को दोषी करार दिया था और उसके कारण उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त हो गई थी और उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। सजा सुनाए जाने के बाद कुछ समय तक वे जेल मे भी थी। लेकिन हाई कोर्ट ने उन्हें निर्दोष घाषित कर दिया। उसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री का पद संभाल लिया और विधानसभा का एक उपचुनाव जीतकर विधायक भी बन गईं।
अब हाई कोर्ट के उस मामले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी गई है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या होगा, यह किसी को नहीं पता। उसके लिए जहां जयललिता बहुत चिंतित हैं तो उनके विरोधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के फैसले को पलट देगी। कर्नाटक सरकार ने यह कहते हुए हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की है कि कोर्ट ने जयललिता की संपत्ति के आकलन मे गलती कर डाली है।

जयललिता की ताकत का अहसास डीएमके के नेता करुणानिधि को भी है। 2011 के विधानसभा उपचुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी करारी हार हुई थी और उसके कारण उनका अपना आत्मविश्वास लड़खड़ाया हुआ है। इसके कारण वे विपक्षी पार्टियों के बीच एकता का राग अलाप रहे हैं।

लेकिन अधिकांश विपक्षी पार्टियां करुणानिधि के साथ गठबंधन करने के पक्ष मंे नहीं हैं। उन्हे चुनाव के बाद करुणानिधि के रवैये को लेकर चिंता है और वे चाहते हैं कि करुणानिधि पहले ही सत्ता के बंटवारे के लिए प्रतिबद्धता जारी कर दें। करुणानिधि चुनाव तो गठबंधन करके लड़ना चाहते हैं, पर जब उनकी पार्टी को अपनी संख्या के आधार पर ही बहुमत मिल जाता है, तो फिर वे अपने चुनाव पूर्व सहयोगियों को सत्ता में हिस्सेदारी नहीं देना चाहते हैं। पिछली विधानसभा में तो उनकी डीएमके अल्पमत में थी और कांग्रेस के समर्थन से वह सरकार चल रही थी। इसके बावजूद कांग्रेस के किसी विधायक को मंत्री नहीं बनाया गया था।

जयललिता के खिलाफ कोई विश्वसनीय गठबंधन इस समय नहीं दिखाई पड़ रहा है। यहां बहुकोणीय मुकाबले की संभावना है, जिसमें अनेक गठबंधन चुनाव लड़ रहे होंगे। एक गठबंधन भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में बनाया जा सकता है। गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ने एक गठबंधन बनाया था और खुद भाजपा को एक सीट पर जीत हासिल हुई थी। (संवाद)