राजनैतिक गलियारों में चर्चा होती थी कि भारतीय जनता पार्टी के नेता आक्रामक रूप से कांग्रेसी नेताओं के भ्रष्टाचार के मामले को उठाने से इसलिए डरते थे, क्योंकि उसकी पूर्ववर्ती एनडीए के कार्यकाल मंे भी अनेक घोटाले हुए थे और कांग्रेसी उन्हें उठाने की धमकी देते थे। यही कारण है कि पूरे यूपीए कार्यकाल में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने कभी भी भ्रष्टाचार के मसले पर सरकार के खिलाफ अग्रणी भूमिका नहीं निभाई। उसकी अकर्मण्यता के कारण ही भ्रष्टाचार के मामले पर आदोलन उन लोगांे ने चलाया, जो अपने को गैरराजनैतिक कहा करते थे। अन्ना, बाबा रामदेव और अरविंद केजरीवाल का उदय भाजपा के विपक्ष के रूप में अपना काम करने की विफलता का ही नतीजा था।
पर चूंकि चुनाव भाजपा को लड़ना था, अन्ना को नहीं, इसलिए अन्ना के आंदोलन का फायदा भारतीयज जनता पार्टी को हुआ, जिसके नेता नरेन्द्र मोदी की भ्रष्टाचार के मामले में छवि बिल्कुल साफ सुथरी थी। देश की जनता में अन्ना आंदोलन के कारण जो आक्रोश पैदा हुआ था, उसने नरेन्द्र मोदी को देश का सबसे बड़ा नेता बना दिया और उनके व्यक्तित्व के कारण ही भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। भाजपा को लोकसभा मंे मिला पूर्ण बहुमत लोगों द्वारा भाजपा को दिया गया समर्थन नहीं था, बल्कि वह प्रत्यक्ष रूप में नरेन्द्र मोदी और अप्रत्यक्ष रूप में भ्रष्टाचार के खिलाफ हुए आंदोलन को दिया गया समर्थन था।
पर दुर्भाग्य की बात है कि भाजपा के नेता, जिसमें नरेन्द्र मोदी भी शामिल हैं, लोगों के जनादेश को पढने में गलती कर रहे हैं। उन्हें नहीं लगता कि भ्रष्टाचार विरोधी माहौल ने उन्हें सत्ता में बिठाया। उनमें से कुछ को लगता है कि मोदी के आकर्षक नारे ’’सबका साथ, सबका विकास’’ ने उन्हें गद्दी दिलाई। कुछ को लगता है कि हिन्दुत्व के कारण उन्हें बहुमत मिला तो कुछ को लगता है कि नरेन्द्र मोदी की ओबीसी पृष्ठभूमि ने यह करिश्मा कर दिखाया। इन सबका थोड़ा थोड़ा योगदान रहा होगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन सच्चाई यह है कि भ्रष्टाचार ही असली कारण था, जिसके कारण भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला और एनडीए को 60 फीसदी से भी जयादा सीटें मिलीं।
2014 के जनादेश का सही पाठ करते हुए भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भ्रष्टाचार के मसले का सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए थी, लेकिन वे इसे प्राथमिकता के नीचले पायदान पर भी नहीं रखना चाहते। सरकार का पहला साल पूरा होने पर खुद यह कहकर तालियां पीटीं कि उनकी सरकार के पहले कार्यकाल में कोई भ्रष्टाचार हुआ ही नहीं। किसी मंत्री पर आरोप नहीं लगा और किसी मंत्री के बेटे-बेटी पर भी आरोप नहीं लगे। लेकिन एक साल पूरा होने का जश्न अभी समाप्त ही नहीं हुआ था कि सुषमा स्वराज के भ्रष्टाचार के मामले सामने आ गए। वह भ्रष्टाचार मोदी सरकार के शपथग्रहण के दो- तीन महीने के भीतर ही हुए थे। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अपने पति और बेटी के मुवकित ललित मोदी को यात्रा का विदेशी दस्तावेज पाने में सहायता की थी, जबकि विदेशों में यात्रा का उनका भारतीय पासपोर्ट जब्त किया हुआ था। यानी भारतीय कानून व्यवस्था के अंदर जिस व्यक्ति को भारतीय दस्तावेज विदेशी यात्रा के लिए उपलब्ध नहीं था, उसे उसी काम के लिए विदेशी दस्तावेज उपलब्ध कराने में हमारी विदेश मंत्री ने सहायता कर डाली। यह भ्रष्टाचार का सीधा सीधा मामला है। इसमें किसी को भी कोई शक नहीं कि सुषमा स्वराज ने अपने पति और बेटी को लाभ के बदले में वह सब किया और उसके कारण उन्हें भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मुकदमे का सामना करना चाहिए।
पर सुषमा स्वराज के उस अपराध को मानवीयता का नाम देकर भाजपा के नेता भ्रष्टाचार की एक नई परिभाषा गढ़ने लगे। ललित मोदी की पत्नी के कैंसर का हवाला देकर सुषमा के उस अपराध को भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि शिष्टाचार बताया जा रहा है। यदि विदेश मंत्री को वह शिष्टाचार दिखाना ही था, तो ललित मोदी को लंदन स्थित भारतीय दूतावास से विदेशी यात्रा के दस्तावेज दिलवा देंती, उन्हें ब्रिटेन से उस तरह के दस्तावेज दिलाने की सिफारिश करने की क्या जरूरत थी? और बदले में वह ललित मोदी से भारत आने की प्रतिबद्धता प्राप्त कर लेतीं। लेकिन उन्होंने वैसा नहीं किया, क्योंकि वह चोरी छिपे ललित मोदी को अपने पद का दुरुपयोग कर फायदा पहुंचाना चाहती थी। वह मोदी को फायदा पहुंचाना चाहती थी और इस बात को गुप्त रखना चाहती थीं। यही काम वसुुधरा राजे भी कर रही थीं।
अब जब सुषमा के मामले पर संसद ही नहीं चलने दिया जा रहा है, तो अच्छा तो यही होगा कि उनका इस्तीफा ले लिया जाय। कांग्रेस के भ्रष्टाचार का ढिंढोरा पीट कर सुषमा को बचाने का यह तरीका बेहद ही बेशर्मी भरा है। इसके द्वारा वह कांग्रेस को तो शांत कर सकती है, लेकिन देश की जनता का वह क्या करेगी?
देश की जनता ने नरेन्द्र मोदी को इसलिए प्रधानमंत्री बनाया है, क्योंकि उसे लग रहा था कि वे भ्रष्टाचार के रोग से देश के सार्वजनिक जीवन को कुछ राहत दिलवा पाएंगे। उनका वह बयान लोगों को बहुत पसंद आया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि ’’ न मैं खाऊंगा और न किसी को खाने दूंगा’’, लेकिन अब उस सुषमा स्वराज का वे बचाव करते दिख रहे हैं, जिन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है। बेहतर होगा, नरेन्द्र मोदी सुषमा स्वराज को अपने मंत्रिमंडल से बाहर करें और उसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर अपनी अपनी प्रतिष्ठा को धूमिल नहीं करें। (संवाद)
भारत
सुषमा को मंत्री पद से हटाने का मामला
भाजपा इसे प्रतिष्ठा का सवाल न बनाए
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-07-23 13:20
भारतीय जनता पार्टी अपने मंत्री और मुख्यमंत्री नेताओं के पर भ्रष्टाचार के लग रहे आरोपों के बाद जिस तरह से आक्रामक मुद्रा में आ गई है, उससे तो यही लगता है कि दूसरों को भ्रष्ट साबित कर वह अपने भ्रष्टाचार को न्यायसंगत ठहरा रही है। दूसरों के चेहरे कीचड़ से सने हैं, इसके कारण आपका कीचड़ से सना चेहरा बहुत सुंदर हो जाता, यह कोई नहीं मानता है, लेकिन भाजपा के नेता इसी भ्रम में पड़े हुए हैं। इसके कारण ही वे अपने उन नेताओं के बचाव में बहुत ही आक्रामक तरीके से आ गए हैं। इस तरह की आक्रामकता का क्या हश्र होता है, उसे पिछले लोकसभा चुनाव से सीखना चाहिए। मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान कांग्रेस लगभग इसी तरह की आक्रामकता का सहारा लेती थी। जब यूपीए सरकार के मंत्रियों के भ्रष्टाचार पर चर्चा होती थी तो वह भाजपा के कर्नाटक सरकार के भ्रष्टाचार का गाना गाने लगती थी। जब सोनिया गांधी के दामाद पर अंगुली उठती थी, तो अटल बिहारी वाजपेयी के दामाद की ओर उसकी अंगुली उठने लगती थी।