यह दुर्भाग्य की बात है कि सभी अधिकांश राजनैतिक पार्टियां लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए विघ्वंसक राजनीति करती है और वह संसद के सत्र को भी अपनी इस राजनीति का शिकार बना देती हैं। जब कांग्रेस सत्ता में थी, तो भारतीय जनता पार्टी यह काम करती थी और अब जब भारतीय जनता पार्टी सरकार में है, तो कांग्रेस वही काम कर रही है।
जब जब भारतीय जनता पार्टी संसद में हंगामा करती थी और सत्र को बर्बाद करती थी, तो कांग्रेस के नेता उस पर लोकतंत्र विरोधी होने का आरोप लगाते थे और संसद को चलाने देने के लिए तरह तरह के उपदेश भाजपा नेताओं को देते थे, लेकिन आज जब भाजपा की सरकार है, तो कांग्रेसी वे सारी बातें भूल गए हैं और कह रहे हैं कि वे वही करेंगे, जो विपक्ष में रहकर भाजपा कर रही थी।
यूपीए के दूसरे कार्यकाल में अनेक सत्र बिना किसी काम काज के समाप्त हो गए थे। मानसून के वर्तमान सत्र का माजरा भी कुछ वैसा ही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष अपनी अपनी बातों पर अड़े हुए हैं और दोनों में से कोई भी बीच का रास्ता निकालने के लिए तैयार नहीं है। विपक्ष सुषमा स्वराज का इस्तीफा मांग रहा है। इससे कम पर कुछ भी मानने को वह तैयार नहीं है, तो भारतीय जनता पार्टी किसी भी सूरत में सुषमा स्वराज के इस्तीफे के लिए तैयार नहीं है। उसे भी इस बात की परवार नहीं है कि संसद का सत्र चलता है अथवा नहीं।
संसद का सत्र जब चल रहा होता है, तो प्रति मिनट इस पर ढाई लाख रुपये खर्च होत हैं। करतदाताओं की इतनी बड़ी राशि संसद के सत्र के दौरान खर्च होती है और काम न हो पाने की स्थिति में यह पैसा बर्बाद हो जाता है।
सांसदों को पता है कि हल्ला हंगामा करना कोई अच्छा काम नहीं है और इसके कारण उनको ही नुकसाना होता है। संसद सत्र शुरू होने के पहले अनेक सांसद कुछ संसद में कुछ कहने की तैयारी करते हैं। उनकी लालसा रहती है कि वे अपनी बात सदन में रखें ओर रिकार्ड मे शामिल करा लें। लेकिन हंगामे के कारण उनकी वह लालसाी अधूरी रह जाती है। सच तो यह है कि संसद में ऐसे भी सांसद हैं, जो अपने पूरे कार्यकाल में अपनी बात सदन में रख नहीं पाते, क्योंकि उनको इसका मौका ही नहीं मिल पाता।
1977 में जब संसद की रजत जयंती मनाई जा रही थी, तो सांसदों ने संकल्प लिया था कि वे प्रश्न काल की पवित्रता को बरकरार रखकर संसद की प्रतिष्ठा को बचाए रखेंगे और उस दौरान नारेबाजी नहीं करेंगे। राष्ट्रपति के अभिशासन के समय भी वे अशांति पैदा नहीं करेंगे, इस तरह का संकल्प उन्होंने लिया था।
लेकिन अब रोजाना संसद के दोनों सदनों में हंगामा होता है और कोई कामकाज होने ही नहीं दिया जाता। संसद का मुख्य काम कानून बनाना है और इस मुख्य काम को वे इस दौरान तिलांजलि दे देते हैं।
सवाल उठता है कि इससे संसद को छुटकारा कब मिलेगा और कौन दिलाएगा? विपक्ष भ्रष्टाचार के मसले पर भारतीय जनता पार्टी को बख्सने के मूड में नहीं है, तो सत्ता पक्ष को लगता है कि वह किसी तरह काम निकाल लेगा। कांग्रेस मांग कर रही है कि सुषमा स्वराज को मंत्री के पद से हटाया जाय और भाजपा के तीन मुख्यमंत्रियों को भी उनके पदों से हटाया जाय। विपक्ष को इस बात का अहसास होना चाहिए कि वह सदन में भ्रष्टाचार के मसले को उठाकर सत्तापक्ष का ज्यादा नुकसान कर सकती है और उसे कामकाज ठप करवाने की जरूरत ही नहीं है।
संसद के इस सत्र में अनेक कानूनों को पारित कराया जाना है। आर्थिक सुधार कार्यक्रमों पर दुनिया के लोगों की नजर है। लोग यह देखना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कार्यक्रमों को आगे बढ़ा सकते हैं या नहीं, लेकिन उन कार्यक्रमों को बढ़ाने के लिए अनेक कानूनों को पारित कराना होगा और उसके लिए जरूरी है कि संसद में काम सही तरीके से हो। (संवाद)
भारत
संसद ठप होने से लोकतंत्र को नुकसान
बहस रोकने से करदाताओं के पैसे की होती है हानि
कल्याणी शंकर - 2015-07-24 13:42
मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल में एक संसद के सत्र के दौरान एक चुटकुला बहुत ही लोकप्रिय हो चला था। वह चुटकुला यह था कि संसद का सत्र मैगी के दो मिनट में तैयार वाले समय तक ही चलता था। लेकिन अब दो मिनट में तैयार होने वाली मैगी पर संकट आ गया है, तो अब कोई दूसरा चुटकुला ढूंढ़ना पडेगा।