भूमि अधिग्रहण कानून के मामले में भी कांग्रेस अपनी समझ की कमी का पर्दाफाश कर रही है। उसके द्वारा बनाया गया भूमि अधिग्रहण कानून उद्योग और विकास विरोधी था। अब जब उसमें सुधार किया जा रहा है, तो वह इसका विरोध कर रही है। इसके कारण उसकी छवि भी उद्योग और विकास विरोधी की बन रही है।

कांग्रेस को ममता बनर्जी की दुर्दशा से सीख लेनी चाहिए। नंदीग्राम और सिंगूर का विरोध करके ममता ने अपनी छवि विकास विरोधी बना लिया है। उसके कारण पश्चिम बंगाल में औद्योगिक निवेश नहीं हो पा रहा है और ममता परेशान हैं। उनकी परेशानी का आलम यह है कि वह मुंबई में एक उद्योगपति से दूसरे उद्योगपति के घर का चक्कर लगा रही है और उनसे अनुरोध कर रही है कि वे पश्चिम बंगाल में निवेश करें।

मुंबई ही नहीं, ममता बनर्जी निवेश आमंत्रित करने के लिए सिंगापुर भी गईं। कुछ दिनों बाद वह इंग्लैंड भी जाने वाली हैं और उनके साथ 100 उद्यमियों और नौकरशाहों का एक काफिला भी जाने वाला है। इतने प्रयासों के बावजूद उन्हें कुछ हाथ नहीं लग रहा है और आने वाले दिनों के उनके प्रयास भी विफल होने के लिए अभिशप्त हैं।

सिंगूर से टाटा परियोजना को खदेड़ने के बाद ममता बनर्जी की छवि निवेश विरोधी राजनेता की बन गई है। नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन की कोशिशों का भी वह विरोध कर रही हैं। इसके कारण उनकी निवेश विरोधी छवि और भी मजबूत हो रही है।

हो सकता है कि कांग्रेस उन राज्यों में निवेश आकर्षित करने के लिए बहुत उत्सुक नहीं है, जहां उसकी आज सरकारें हैं, लेकिन वह इस तरह का संदेश नहीं दे सकती कि वह उद्योग विरोधी है। इसका कारण यह है कि वह एक राष्ट्रीय पार्टी है और उसे एक राष्ट्रीय पार्टी की तरह की आचरण करना चाहिए, न कि किसी क्षेत्रीय पार्टी की तरह।

लेकिन कांग्रेस और खासकर इसके नेता राहुल गांधी बढ़चढ़ कर अपने को किसान हितैषी दिखाने के लिए मोदी सरकार और खुद नरेन्द्र मोदी पर बढ़चढ़ कर हमला कर रहे हैं। वे नरेन्द्र मोदी की सरकार को सूट बूट की सरकार कहते हैं और उस पर व्यापारियों के हितैषी होने का आरोप लगा रहे हैं। इससे राहुल खुद विकास विरोधी होने की अपनी छवि बना रहे हैं।

सच तो यह है कि राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी के ’मेक इन इंडिया’ अभियान में पलीता लगाना चाह रहे हैं। उनका यह अभियान भारत को उद्योगों का देश बनाने का है, ताकि भारत न सिर्फ अपने लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए उत्पादन कर सके। राहुल गांधी इसे सफल होते नहीं देखना चाहते।

’मेक इन इंडिया’ अभियान को सफल बनाने के लिए जमीन चाहिए, क्योंकि जमीन पर ही तो औद्योगिक परिसर बनते हैं और इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए भी जमीन की ही ज्ररूरत पड़ती है। लेकिन कांग्रेसियो को यह सब मंजूर नहीं है। उसके नेता अब तृणमूल कांग्रेस की नेता की तरह सोचने लगे हैं, जो चाहते हैं कि भारत पिछड़ा बना रहे। (संवाद)