लेकिन बिहार में मुजफ्फरपुर की सभा का संबोधित करते हुए मोदी अपने पुराने लय में दिखे। उन्होंने लालू और नीतीश पर एक के बाद एक हमले किए और उस हमले में धार भी थी। उस भाषण ने स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में भारतीय जनता पार्टी का चुनाव प्रचार दिल्ली का हश्र प्राप्त नहीं करेगा। अरविंद केजरीवाल राजनीति में नये नये हैं। और जो नया नया होता है, उसके बारे में जानकारी कम होती है। चुनाव जीतने का फार्मूला यही है कि यदि आप सबको जानते हैं और आपको कोई नहीं जानता, तो आपका काम आसान हो जाता है। नरेन्द्र मोदी दिल्ली को इसलिए नहीं जीत सके, क्योंकि अरविंद केजरीवाल उनसे ज्यादा तरोताजा नेता दिखाई पड़े और 49 दिनों की उनकी पहली सरकार की उपलब्धियां ऐसी थीे, जिन्हें दिल्ली की जनता ने पसंद किया।

बिहार में नरेन्द्र मोदी के दोनों प्रतिद्वंद्वी बहुत पुराने हैं। दोनांे लंबे अर्से से सत्ता में रह चुके हैं और दोनों का नरेन्द्र मोदी के साथ 36 का आंकड़ा रहा है। दोनों पिछले 12 सालों से मोदी के खिलाफ आग उगलते रहे हैं और सत्ताजनित खामियों के दोनों शिकार रहे हैं। यही कारण है कि मोदी के निशाने पर उनका आना आसान था। और मुजफ्फरपुर की सभा में मोदी ने बहुत आसानी से दोनों को निशाने पर लिया और उनपर हमला करते हुए बिहार की जनता के साथ जुड़ने की मोदी ने कोशिश की।

लालू यादव और नीतीश कुमार 1994 से ही एक दूसरे के राजनैतिक विरोधी हुआ करते थे। इसके कारण दोनों के बीच अच्छे खासे अंतर्विरोध पैदा हो गए हैं। उन अंतर्विरोंधों को कुरेदने में श्री मोदी ने कोई कोर कसर नहीं उठाई। नीतीश को अपने गठबंधन का मुख्यमंत्री उम्मीदवार स्वीकार करने के बाद लालू यादव ने कहा था कि वे भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए यह जहर पी रहे हैं। जाहिर है, वे जहर नीतीश कुमार को ही कह रहे थे। इसमें खुद नीतीश कुमार को भी संदेह नहीं हो सकता। दूसरी तरफ जिस लालू के राज को जंगल राज कहते थे, उस लालू से हाथ मिलाने के सवाल पर नीतीश ने रहीम का एक दोहा दुहरा दिया जिसमें कहा गया है कि जो उत्तम प्रवृति का होता है, वह कुसंगति में भी खराब नहीं होता। जाहिर है कि नीतीश कुमार लालू के साथ अपनी संगति को कुसंगति बता रहे थे। रहीम के उस उदाहरण को भी उन्होंने दुहरा दिया, जिसमें उन्होंने कहा है कि यदि सांप चंदन के पेड़ से भी आकर लटक जाय, तो उसका विष चंदन की लकड़ी में नहीं समाता है। जाहिर है कि नीतीश अपने को चंदन और लालू को सांप कह रहे थे। इसमें खुद लालू को भी कोई संदेह नहीं है। नरेन्द्र मोदी ने अपने अंदाज में दोनो के अंतर्विरोध को इस तरह बिहार की जनता के सामने पेश किया कि दोनो नेता निश्चय ही तिलमिला गए होंगे। नीतीश कुमार ने तो उसी शाम एक प्रेस कान्फ्रेंस कर मोदी के भाषण का जवाब भी दे डाला और उसके प्रभाव को कम करने की कोशिश की। लालू ने भी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि मोदी दोनो को आपस मे लड़ाने की कोशिश कर रहे हैं।

सभा के पहले एक समारोह में नीतीश कुमार ने एक रेल लाइन, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री ने किया, का श्रेय खुद लेने के लिए कह डाला कि 2004 में यदि लोकसभा का चुनाव अपने समय से 6 महीना पहले नहीं कराया जाता, तो उसका उद्घाटन उसी साल हो जाता। वह उस समय की केन्द्र सरकार में रेलमंत्री थे और वह रेल लाइन उनके दिमाग की ही उपज थी। नरेन्द्र मोदी ने नीतीश द्वारा श्रेय लेने के लिए दिए गए उस बयान को लालू यादव के खिलाफ मोड़ दिया, क्योंकि नीतीश के बाद लालू मनमोहन सिंह सरकार मे 5 साल तक रेलमंत्री थे। उन्होंने रेल लाइन के निर्माण में हुए विलंब के लिए लालू को जिम्मेदार बताकर नीतीश की उनके साथ नई दोस्ती का मजाक बना दिया।

नीतीश कुमार ने 2010 में भाजपा नेताओं का अपने मुख्यमंत्री आवास पर भोज दिया था, लेकिन शर्त रख दी थी कि उसमे नरेन्द्र मोदी शामिल नहीं होंगे। भाजपा ने उस शर्त को मानने से इनकार कर दिया था और उसके बाद नीतीश ने वह भोज ही रद्द कर दिया था। उस मामले को उठाते हुए नरेन्द्र मोदी ने नीतीश पर छुआछूत प्रैक्टिस करने का आरोप लगा दिया। इस तरह से मोदी ने समाज के उन लोगों के साथ जुडने की कोशिश की, जो छुआछूत का शिकार होते रहते हैं। खुद मोदी ओबीसी जाति से हैं, जिसका स्टैटस समाज मे बहुत नीचे है। इस तरह से उन्होंने कमजोर ओबीसी के साथ अपने को जोड़ा और नीतीश द्वारा मांझी के साथ किए व्यवहार का हवाला देते हुए दलितो के साथ भी अपने को जोड़ लिया। इस तरह बिहार की जातिवादी राजनीति के एक बड़े हिस्से के साथ अपनी पहचान कर मोदी ने लालू और नीतीश के सामने जबर्दस्त चुनौती पेश कर दी है। बिहार के ये दोनो नेता सामाजिक अंतर्विरोधो की ही राजनीति करते हैं। अब नरेन्द्र मोदी भी उस राजनीति मे हस्तक्षेप कर रहे हैं। जाहिर है, बिहार का चुनाव बहुत ही दिलचस्प हो गया लें। (संवाद)