गृह मंत्रालय को कवर करने वाले पत्रकारों द्वारा इस आदेश का विरोध सर्वथा उचित है। इससे उन पत्रकारों को भी सरकार के होने वाले हलचलों से दूर रखने की चाल है क्योंकि गृह मंत्रालय की कार्य प्रणाली से सरकार की नीतियों का पता चलता है और ऐसे में जब गृह मंत्रालय की खबरों से ही पत्रकारों को दूर कर दिया गया हो तो आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि इसका प्रभाव आम जनता पर जरूर पड़ेगा, वह सरकार की नीतियों से पड़ने वाले प्रभाव की जानकारी से अंधेरे में रहेगी। इस तरह के फैसले फासीवाद में ही लिए जाते हैं यह भारतीय लोकतांत्रिक पद्धति के लिए उल्टा है। हालांकि इसकी आहट प्रधानमंत्री कार्यालय में 2014 के शुरूआत में ही हो गई थी जब मान्यता प्राप्त पत्रकारों को वरिष्ठ अधिकारियों और मंत्रियों से दूर कर दिया गया था।

यह सच है कि भारतीय संविधान में गृह मंत्रालय को असीमित शक्तियां प्राप्त है और गृह मंत्रालय भारत सरकार में सभ मंत्रालयों-विभागों का मूल तत्व है जहां से सभ विभाग जुड़े हैं। इसे अवशिष्ठ शक्तियां प्राप्त है। गृह मंत्रालय के फैसले संविधान और संविधान से इतर भी हो सकते हैं, कानून से परे जाकर कार्रवाई कर सकता है यह मंत्रालय। यही शक्ति इसे स•ाी मंत्रालयों से ज्यादा ताकतवर बनाता है। यदि इसी मंत्रालय की खबरें जनता तक नहीं पहुंचेगी तो जनता अंधेरे में रहने को विवश होगी, वृहत्तर जनहित में इस तरह के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए।

यह आदेश पीआईबी के गृह प्रचार विभाग से जुड़े अधिकारी एडीजी, मीडिया केएस धतवालिया की विफलता को सामने लाता है जो अपने आका अधिकारियों को समझाने में विफल रहे हैं। गृह सचिव द्वारा जारी किया गया यह आदेश दरअसल अपने आकाओं को खुश करने की व्यवस्था है। पीआईबी का मुख्य कार्य मीडिया का सहयोगी बनकर कार्य करने का है। यह आदेश धतवालिया के कार्यों पर प्रश्न चिन्ह लगाता है और उनके प्रदर्शन को औसत से कम दर्शाता है, जो चिंतनीय है।

यह आदेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वैयक्तिक शासन का नमूना है, जहां मंत्री हिस्सा हैं और अधिकारियों को बंधित और घुटन भरे माहौल में काम करना पड़ रहा है। बायो मीट्रिक उपस्थिति पंजीयक की अनिवार्यता ने सरकारी दफ्तरों में भले ही काम हो या न हो अधिकारियों-कर्मचारियों की भीड़ को बढ़ाया है। इस प्रकार के आदेश सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से आने के कारण संबंधित चैनलों की उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह भी खड़े हो रहे हैं। गृह मंत्रालय का यह आदेश वह नुकीला ताबूत का कील है जो वैश्वीकृत होते भारत की पारदर्शिता पर प्रश्न चिन्ह खड़े करता है।

लोकतंत्र में मीडिया की स्वच्छंदता से सरकार की जनता के प्रति जवाबदेही निर्धारित होती है। इसके अभाव में सरकार के अंदर चल रहे गुप्त कदाचार पर ढक्कन लग जाता है। लोकपाल की अनुपस्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस तरह के कदाचार को ढककर रखने की नीति को अमल में लाना चाहते हैं जो शायद सरकार के बेहतर ढंग से चलने की पुष्टि करते हों लेकिन वैश्विक व्यापार का एक मानक मानदंड बन चुके कट-कमीशन जो भिन्न प्रकार के डील हथियारों, पौधों, रक्षा उपकरणों आदि की खरीद फरोख्त में लिए जाते हैं, पर ढक्कन डाले रखने के लिए ऐसे आदेश लाना कहां तक कारगर साबित होगा?

अंग्रेजी से अनुवाद: शशिकान्त सुशांत