केरल भूमि एसाइनमेंट नियम, 1964 में संशोधन करने का फैसला कर मुख्यमंत्री चांडी और राजस्व मंत्री अदूर प्रकाश ने कुछ वैसा ही किया और उनके साथ कुछ वैसा ही हुआ। उस संशोधन के तहत 2005 के पहले सभी पहाड़ी इलाकों की सरकारी जमीन पर हुए अतिक्रमण को वैध कर दिया गया था।
लेकिन उस आदेश का जबर्दस्त विरोध हुआ। वह विरोध ऐसा था कि सरकार को अपने आदेश वापस लेने पड़े, क्योंकि उसके पास इसके अलावा और कुछ करने का रास्ता ही नहीं रह गया था।
विधानसभा मंे विपक्ष के नेता वी एस अच्युतानंदन और सीपीम के प्रदेश सचिव के बालकृष्णन ने सरकार के उस फैसले को रियल इस्टेट माफिया को फायदा पहुंचाने वाला फैसला करार दिया था। फैसले को वापस लेकर सरकार ने साबित कर दिया है कि विपक्ष सही कह रहा था।
यह सच है कि विपक्ष की ओर से सरकार के खिलाफ तीखी आलोचना हो रही थी, लेकिन सच यह भी है कि सरकार को वह फैसला इसलिए वापस लेना पड़ा, क्योंकि सत्तापक्ष के अंदर से भी उसकी आलोचना की जा रही थी। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ही नहीं, कुछ कांग्रेसी भी उसका विरोध कर रहे थे। विरोध करने वालो में कांग्रेसी विधायक सतीशन और प्रथपन भी शामिल थे।
लेकिन ताबूत में अंतिम कील ठोकने का काम प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुधीरन ने किया। उन्होंने राजस्व मंत्री को अपने पास बुलाकर उस आदेश पर सफाई मांगी। उन्होंने साफ साफ कहा कि उस फैसले से कांग्रेस को भारी राजनैतिक नुकसान हो सकता है। अदूर प्रकाश ने अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष से बैठक के पहले ही उस आदेश की वापसी की घोषणा कर डाली।
अब मुख्यमंत्री और राजस्व मंत्री कह रहे हैं कि उस फैसले का इरादा गलत नहीं था। उसका इरादा गरीब किसानों को फायदा पहुंचाना था, जो सरकारी जमीन पर बसे हुए हैं। पर वे इस सवाल का जवाब नहीं दे पा रहे हैं कि यदि उस आदेश का इरादा इतना अच्छा था, तो फिर राजनैतिक स्तर पर उसका उतना विरोध क्यों हुआ?
मुख्यमंत्री के पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं है। उनसे पूछा जा रहा है कि वह फैसला किसके इशारे पर किया गया था। लेकिन इसका जवाब भी उनके पास नहीं है।
यदि सरकार अपने मंसूबे में कामयाब हो जाती और वह आदेश वापस लेने के लिए बाध्य नहीं होती, तो इसका फायदा बड़े बड़े रियल इस्टेट के मालिकों को होता, जिन्होंने हजारों एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है। जंगल की जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए सरकार अदालत में हजारों मुकदमे लड़ रही है। वे सारे के सारे मुकदमे सरकार हार जाती।
राज्य सरकार द्वारा एक और गड़बड़झाला किया गया है। कस्तूरीरंजन रिपोर्ट पर अमल करने के लिए केन्द्र को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में उसने कहा है कि वहीं जमीन वन भूमि है, जो सरकार के कब्जे में है। यानी भूमि माफिया द्वारा वन भूमि पर कब्जे की जमीन को सरकार अब वनभूमि नहीं मानती। (संवाद)
भूमि आदेश पर चांडी ने किया गड़बड़झाला
विरोध के बाद आदेश लिया वापस
पी श्रीकुमारन - 2015-08-10 11:10
तिरुअनंतपुरमः स्मार्ट होना राजनीतिज्ञों के लिए अपराध नहीं है। लेकिन जब वे जरूरत से ज्यादा स्मार्ट बनने लगते हैं, तो उनके सामने समस्या आने लगती है।