इन दोनों उपलब्धियों के अलावा मोदी सरकार की अन्य उपलब्धियों को खोज पाना मुश्किल है। अर्थव्यवस्था की हालत बेहतर होने का नाम नहीं ले रही है। एक पद एक पेंशन का मामला हल नहीं हो पा रहा है। संघ का व्यक्ति गजेंद्र चैहान अभी भी फिल्म और टेलिवीजन संस्थान का प्रमुख बना हुआ है, हालांकि उसके अंदर उस पद पर बैठने की योग्यता नहीं है। गंगा की अभी तक सफाई नहीं हो पाई है। फ्रिज की कमी के कारण आंगनवाड़ी भोजन से अंडे हटा दिए गए हैं।
योजना आयोग को समाप्त करने के पीछे उस व्यक्ति का संकल्प झलकता है और इससे यह पता चलता है कि उस व्यक्ति को पता है कि उसे क्या करना है। आयोग को इसलिए समाप्त कर दिया गया, क्योंकि यह माना जा रहा था कि यह केन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था के दिनों की विरासत है। इसलिए इसे इतिहास बना दिया गया और इस पर रोने वाला भी केाई नहीं था। इसकी स्थापना जवाहरलाल नेहरू ने की थी। इसकी स्थापना करते समय उनके दिमाग में सोवियत संघ का माॅडल था।
मोदी सरकार के उस निर्णय के पहले ही यह विचार चल रहा था कि उसे रखा जाय या समाप्त कर दिया जाय। इसका कारण था कि भारत में उदारवाद का दौर चल रहा था और केन्द्रीयकृत अर्थव्यवस्था के दिन गुजर गए थे। यही कारण है कि जब योजना आयोग को समाप्त करने की घोषणा की गई, तो उस घोषणा पर रोने वाला कोई नहीं था।
योजना आयोग की जगह नीति आयोग बना दिया गया, लेकिन सच पूछा जाय, तो यह नाम बदलने से ज्यादा कुछ भी नहीं था। यही कारण है कि नीति आयोग को योजना आयोग ही माना जाता है, हालांकि इसका नाम बदल दिया गया है।
आने वाला समय बताया गया है कि नीति आयोग क्या बदलाव लेकर आता है। इसमें भारत को बदलने की क्षमता है भी या नहीं, इसका भी पता तब चलेगा। लेकिन हमारे शासकों के दक्षिणपंथी रुझान का पता एक और निर्णय से लगता है। वह निर्णय औरंगजेब रोड के नाम बदलने का निर्णय है।
औरंगजेब हिन्दुस्तान का अंतिम महान बादशाह था। इसके कारण दिल्ली की लुटियन जोन में उसके नाम से एक सड़क थी, लेकिन अब वह नाम हटा दिया गया है और उसकी जगह एपीजे अब्दुल कलाम का नाम उस रोड को दे दिया गया है।
भगवा बिगेड के लिए औरंगजेब हमेशा से नफरत का पात्र रहा है। इसका कारण यह है कि उसने अनेक मंदिरों को गिरा दिया था और उसकी जगह मस्जिदें बनवा दी थी। खासकर मथुरा में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने के कारण भगवा ब्रिगेड के लिए वह हमेशा से घृणा का पात्र रहा है।
हिंदुत्व लाॅबी समय का इंतजार कर रहा था। उसे औरंगजेब का नाम सड़क से हटाना ही था। अब्दुल कलाम की मौत ने उसे वह अवसर दे दिया। कलाम बहुत ही प्रतिष्ठित हैं। उनके प्रशंसकों की संख्या करोड़ों में है। वे मुस्लिम भी थे। इसलिए भगवा ब्रिगेड के नेताओ को लगा कि एक मुस्लिम के द्वारा दूसरे मुस्लिम का नाम हटाने से उसके ऊपर सांप्रदायिकता का आरोप भी नहीं लगेगा। उसके पहले भाजपा के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा था कि औरंगजेब रोड का नाम बदलकर दारा शिकोह रोड कर दिया जाना चाहिए। गौरतलब हो कि दारा शिकोह औरंगजेब का ही बड़ा भाई था और उत्तराधिकार की लड़ाई मे उसे हराकर ही औरंगजेब दिल्ली की गद्दी पर बैठ सका था। (संवाद)
मोदी सरकार की विफलता अब स्पष्ट है
सड़कों को नया नाम देना उपलब्धि नहीं
अमूल्य गांगुली - 2015-09-02 11:30
मोदी सरकार के पहले 15 महीने की दो प्रमुख उपलब्धियां क्या रहीं? व्यंग्य करने वाले कहेंगे कि सरकार की दो प्रमुख उपलब्धियों में एक योजना आयोग को समाप्त करना और दूसरा औरंगजेब रोड का नाम बदलकर अब्दुल कलाम रोड कर देना रहा।