इतिहासकारों ने रोड का नाम बदलने के नई दिल्ली नगर पालिका के निर्णय की निंदा की है। यह निर्णय एपीजे अब्दुल कलाम को प्रतिष्ठित करने के नाम पर किया गया है, लेकिन इसका असली कारण इतिहास को फिर से लिखे जाने की कोशिश है। बादशाह औरंगजेब की विरासत को मिटाने की कोशिश की जा रही है। भारत के एक इतिहासकार आर वी स्मिथ का कहना है कि साम्राज्यवाद के युग की सड़कों का नाम बदला जाना गलत है। औरंगजेब उतना क्रूर नहीं था, जितना उसे आज माना जा रहा है। वह अत्याचार के युग का एक बादशाह था। इससे भी बड़ी चिंता यह है कि इस तरह सड़क का नाम बदले जाने का क्रत कबतक चलता रहेगा? क्या शाहजहां रोड का नाम भी बदल दिया जाएगा?

स्मिथ के अनुसार औरंगजेब रोड दिल्ली के हेरिटेेज का एक हिस्सा था और नाम बदले जाने से भ्रम बढ़ेगा ही। यह डाॅक्टर कलाम की स्मृति के लिए भी अपमानजनक है। किसी नये सड़क का नाम उनके ऊपर रखा जा सकता था। किसी अजायब घर या विज्ञान केन्द्र का नाम भी उनके नाम पर रखा जा सकता था। औरंगजेब रोड को ही उनके नाम के लिए क्यों चुना गया?

इतिहासकार सुहैल हाशमी का कहना है कि औरंगजेब को हिन्दुओं के दुश्मन के रूप में दिखाने का काम ब्रिटिश इतिहासकारों ने किया। उसका उद्देश्य हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच विभाजन खड़ा करना था। औरंगजेब ने हिन्दु मन्दिरों को दान ही नहीं दिए, उसने एक मस्जिद को भी गिरा दिया था। आप एक साइनबोर्ड को लटकाकर इतिहास नहीं बदल सकते। हाशमी के अनुसार शिवाजी और औरंगजेब के बीच में छिड़ा युद्ध कोई हिन्दु-मुस्लिम युद्ध नहीं था। औरंगजेब के सभी कमांडर हिन्दु थे और शिवाजी का मुख्य तोपची मुसलमान था। यह दो सामंतों के बीच का युद्ध था। लेकिन ब्रिटिश साम्राज्यवादियों ने शिवाजी को हिन्दुओं का रक्षक और औरंगजेब को हिन्दुओं का दुश्मन घोषित कर दिया।

नई दिल्ली नगर पालिका ने रोड का नाम बदलने का प्रस्ताव किया, लेकिन संसद में पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि 1975 का एक प्रस्ताव रोड का नाम बदले जाने के खिलाफ है। प्रस्ताव में कहा गया है कि नाम बदलने से लोगों में भ्रम पैदा होता है और लोगों के इतिहास बोध को भी नुकसान होता है। इसलिए उस प्रस्ताव के अनुसार नये रोडों का नामकरण ही किसी नये आदमी के नाम पर किया जा सकता है। उन्हीें पुराने रोडों को नया नाम दिया जा सकता है, जो पहले से किसी के नाम पर न हों।

1911 से 1931 के बीच नई दिल्ली का निर्माण हुआ और सड़कों के नाम पड़े। उस समय अंग्रेज शासकों पर मुगलों की ओर से कोई दबाव नहीं था कि उनके वंश के शासकों के नाम पर सड़कों के नाम रखे जायं। उसके बाजजूद अंग्रेजों ने मुगलों के नाम पर सड़कों के नाम रखे। कुछ पार्को का नाम करण भी कुछ मुस्लिम शासकों के नाम पर किया गया। आखिर उन्होने वैसा क्यो किया? इसका कारण यह था कि उन्होंने दिल्ली की सड़कों मंे दिल्ली के इतिहास को समाहित करने की कोशिश की। (संवाद)