ऐसे माहौल में सहज सवाल उठ रहा है कि क्या बदली परिस्थितियों में राजनैतिक शक्तियों के बीच फिर से नये समीकरण बनने जा रहे हैं? पंजाब विधानसभा के चुनाव होने में अभी 15 महीनों का विलंब है। अभी तो बिहार विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे भी इस नये समीकरण को प्रभावित कर सकते हैं। पंजाब की राजनीति में किसी तरह का अनुमान लगाना हमेशा कठिन होता है, लेकिन फिर भी इसकी कुछ कोशिश तो की ही जा सकती है।

कहा जाता है कि पुरानी आदतें जल्दी समाप्त नहीं होतीं। पंजाब में गुटबाजी का पुराना इतिहास रहा है। इस समय पंजाव के पूर्व मुख्यमंत्री अमरीन्दर सिंह और प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा के बीच ठनी हुई है। पंजाब में इस समय अमरीन्दर सिंह से ज्यादा लोकप्रिय नेता कोई मौजूद नहीं है। इसका पता अमरीन्दर सिंह द्वारा आयोजित रैलियों में उमड़ती भीड़ को देखकर लगता है।

2012 में जब विधानसभा का आमचुनाव हो रहा था, तो उस समय लोगों के बीच तत्कालीन सरकार के खिलाफ प्रबल माहौल था। लेकिन उसका लाभ कांग्रेस उठा नहीं सकी और दुबारा बादल सरकार सत्ता में आ गई। कांग्रेस की उस हार का कारण अमरीन्दर सिंह का जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास था। वे अपनी पार्टी के लोगांे के लिए उपलब्ध भी नहीं रहते थे। दूसरी तरफ प्रकाश सिंह बादल की लोगों के बीच लोकप्रियता बनी हुई थी और उन्होंने चुनाव की कमान पूरी तरह से अपने हाथ में ले ली थी। उन्हें हारने का डर भी सता रहा था, क्योंकि उनके भतीजे मनप्रीत सिंह बादल ने भी उनके खिलाफ विद्रोह कर रखा था। इसके कारण प्रकाश सिंह बादल बहुत ही संयत और सावधानी के साथ चुनाव अभियान चला रहे थे। इसके कारण ही उनकी एक और जीत संभव हो गई थी।

इस समय कांग्रेस के अंदर गुटबाजी चरम पर है और कांग्रेस का आलाकमान बार बार दावा कर रहा है कि पंजाब ईकाई के अंदर चल रहे मतभेद को वह शांत कर देगी और सबकुछ ठीकठाक हो जाएगा। लेकिन इस दावे के बावजूद कांग्रेस आलाकमान गुटबाजी समाप्त करने में सफल नहीं हो पा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण राहुल गांधी का रवैया है। वे बार बार अपनी बातों से पलट जाते हैं और इस तरह की समस्या को हल करने में वे सक्षम नहीं हैं। वे दूसरी कतार के नेताओं को आगे तो बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन वरिष्ठ नेताओं द्वारा पैदा की गई चुनौतियों से निपटने की कला उन्हें आती ही नहीं है।

56 दिन की छुट्टी बिताकर वापस आने के बाद राहुल ने कुछ समझदारी दिखाई थी और संगठन के मोर्चे पर कुछ अच्छा काम भी किया था, लेकिन उसके बाद वे फिर पुराने ढर्रे पर चलने लगे और बचकानी हरकतें करने लगे। उनमें लोगों को पहचानने की क्षमता नहीं है और यही कारण है कि पंजाब और हरियाणा सहित अनेक राज्यों मे उन्होने ऐसे लोगों को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है, जिनकी जनता में कोई पैठ ही नहीं है। उन्होंने घोषणा की है कि जिन लोगों को पार्टी में बड़े पद लेना है, उनका वे एक आधे घंटे का इंटरव्यू लेंगे। उस इंटरव्यू में सफल लोगों को वे पद देंगे। उन्होंने युवा कांग्रेस में भी इसी तरह के परीक्षण किए थे, जो विफल हो गए। उनके इसी रवैये के कारण पार्टी में गुटबाजी बढ़ती जा रही है।

गुटबाजी भारतीय जनता पार्टी में भी है और भाजपा का अकाली दल के साथ भी टकराव हो रहा है। हालांकि चुनावी विवशता के कारण दोनों को आपस में मिलकर ही अगला चुनाव लड़ना है।

आम आदमी पार्टी के पंजाब से 4 लोकसभा सांसद हैं। सच यह है कि उसके सभी सांसद पंजाब से ही जीतकर आए हैं, लेकिन उनमें से दो सांसदों ने बगावत कर दी है। यदि केजरीवाल से समय रहते जरूरी कदम नहीं उठाए, तो आम आदमी पार्टी का पंजाब मंे बिखराव हो जाएगा और यह लोकतंत्र के लिए सही नहीं होगा। (संवाद)