दादरी में एक मंदिर में कीर्तन भजन हो रहे थे। उनमें से किसी ने यह घोषणा कर दी कि अखलाक और उसके परिवार के लोग गाय का मांस खा रहे हैं। दस बजे रात को कुछ लोग वहीं एकत्र हो गए। उन लोगों ने अखलाक के घर पर हमला कर दिया। अखलाक की वहीं मौत हो गई, जबकि उसका एक जवान बेटा अस्पताल में भर्ती है और उसका इलाज चल रहा है। साफ है कि वह भीड़ सभ्यता को नहीं जान रही थी। वे गुस्से में आए और कानून को अपने हाथ में लेने का निर्णय कर लिया और खुद अखलाक को दंडित करने के लिए उसके घर पद धावा बोल डाला।
यह घटना जिस जिला में घटी, वह बेहद ही संवेदनशील जिला है। एक अखबार में छपे एक लेख के अनुसार उसी दादरी जिले के एक गांव में बस इसी संदेह पर तीन लोगों की हत्या कर दी गई कि वे जानवरों की चोरी का काम करते थे। अखबार के अनुसार उस क्षेत्र में कट्टर हिन्दुओं का एक छोटा सा संगठन है, जो गायों की तस्करी और उनके बध के खिलाफ सक्रिय है।
दादरी की उस घटना के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने पीड़ित परिवार को 45 लाख की सहायता र्रािश दी। सरकार के उस निर्णय का भी मजाक उड़ाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि जब हिन्दु की उसी हालत में मौत होती है, तो उसे 40 हजार रुपये की सहायता भी नहीं मिलती, जबकि मुस्लिम होने के कारण अखलाक के परिवार को सरकार 45 लाख रुपये की सहायता दी जा रही है। ऐसा कहकर दोनों समुदायों के बीच दरार को और चैड़ा किया जा रहा है। जाहिर है कि सरकार के उस निर्णय ने दोनों समुदायों के बीच और भी नफरत पैदा करने का काम किया है।
प्रशासन यदि सतर्क रहता तो उस घटना को रोका जा सकता था। एक अखबार में छपी खबर के अनुसार उस दादरी जिले में ही कुछ दिन पहले तीन लोगों के पशु तस्कर होने के शक में हत्या कर दी गई थी। कुछ कट्टरवादी लोगों ने एक छोटा सा गिरोह बना लिया है, जिसका काम अफवाह फैलाना है। कहने को तो वह गिरोह पशु तस्करों और गौकशी करने वाले लोगों पर नजर रखने का काम करता है, लेकिन दरअसल उसका मकसद सांप्रदायिक तनाव बढ़ाना और सांप्रदायिक हिंसा को अंजाम देना है।
प्रशासन से उस गिरोह की गतिविधियां छिपी हुई नहीं थी। यह सच है कि प्रत्येक गली में पुलिस का पहरा नहीं बैठाया जा सकता और प्रत्येक मोड़ पर पुलिस चैकी स्थापित नहीं की जा सकती, लेकिन यदि उन तीन लोगों की हत्या की सघन जांच की जाती और अपराधियों को गिरफ्तार किया जाता, तो पुलिस गिरफ्त में अनेक अफवाह उड़ाने वाले लोग आ सकते थे और अखलाक की हत्या शायद तब नहीं हो पाती।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि सभी किस्म के राजनीतिज्ञों ने दादरी की उस घटना के बाद उसे अपना तीर्थ स्थल बना लिया। वे एक के बाद एक वहां जाकर अपनी हाजरी लगाने लगे। पीड़ित परिवार के लोगांे के साथ अपनी तस्वीरें खिंचाने लगे। मीडिया के लोग भाषण झाड़ने लगे, लेकिन किसी ने इस पर सवाल नहीं उठाया कि वहां उस घटना को रोकने के लिए प्रशासन ने कोई कदम क्यों नहीं उठाया था, जबकि उस तरह की घटना की आशंका पहले से ही बनी हुई थी। (संवाद)
दादरी के भूले हुए सबक
सबसे पहले प्रशासनिक विफलता को दुरुस्त करें
सुगतो हाजरा - 2015-10-10 10:47
दो समुदायों के बीच पनप रहे टकराव उस समय विस्फोटक रूप धारण कर लेते हैं जब प्रशासनिक व्यवस्था विफल हो जाती है और जिन संस्थाओं को हमने लोगों में सद्भाव बनाए रखने के लिए बनाया है, वे काम करना बंद कर देती हैं। और जब वे काम करना बंद कर देती हैं, तो उसी तरह की घटनाएं घटती हैं, जिन्हें हमने पिछले दिनों दादरी में देखा। वहां कुछ लोगों ने अफवाह फैलाई और फिर एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या कर दी गई।