बहिष्कार की अपील तो इस बार भी की गई थी, लेकिन इस बार कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। कहीं भी बम नहीं फटे । रेल संपत्तियों को कहीं कोई नुकसान नहीं हुआ। कहीं किसी पर हमला भी नहीं हुआ। इस तरह से इस बार का गणतंत्र दिवस असम और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए शांतिपूर्ण रहा। यह हमारे लिए संतोष की बात है।

क्या इसका मतलब यह तो नहीं कि उल्फा के नेता अब कमजोर हो चुके हैं और लोगों के बीच में उनकी साख भी अब पहले वाली नहीं रही? उल्फा के चेयरमैन अरविंद राजखोवा जेल में हैं। हथियारबंद दस्ते का प्रमुख परेश बरुआ अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर है और राजखोवा द्वारा केन्द्र सरकार से किसी प्रकार की बातचीत का विरोध कर रहा है।

परेश बरुआ की धमकियों के कारण 26 जनवरी को फिर किसी अनहोनी की आशंका थी, लेकिन वह आशंका गलत साबित हुई। तो इसका क्या यह मतलब निकाला जाय कि परेश बरुआ भी बातचीत के द्वारा समस्या को हल किए जाने के पक्ष में है और उसकी घमकी महज बातचीत के द्वारा ज्यादा से ज्यादा हासिल किए जाने की रणनीति भर है?

सामान्य धारणा बन रही है कि अब असम के लोग हिंसा और आतंकवाद से आजिज आ चुके हैं और राज्य में शंति चाहते हैं। उल्फा के तोर तरीके अब उन्हें पसंद नहीं हैं। इसके कारण वे अब उल्फा को प्रश्रय देने के हक में नहीं हैं। लोगों का समर्थन खोकर उल्फा अपनी गतिविधियों का जारी नहीं रख सकता। इसलिए वह अब बातचीत के द्वारा वह समस्या का हल निकालना चाहता है।

इसका एक उदाहरण देखने को तब मिला, जब मृणाल हजारिका ने जेल में बंद राजखोवा से मिलने के बाद बताया कि श्री राजखोवा उल्फा के अन्य नेताओं के साथ बातचीत कर रहे हैं और केन्द्र सरकार से अपनी भावी बातचीत की रणनीति तैयार करने में जुटे हुए हैं। मृणाल हजारिका खुद बातचीत के पक्षधर हैं। वे उल्फा के बटालियन 28 के कमांडर रह चुके हैं। उन्होेंने परेश बरुआ के आदेश के खिलाफ जाकर जून 2008 में एकतरफा सीजफायर की घोषणा की थी।

मृणाल हजारिका ने राजखोवा से मिलने के बाद बातचीत के प्रति उल्फा की इच्छा का इजहार किया और यह भी कहा कि बातचीत शुरू होने से पहले राजखोवा को मुक्त कर दिया जाना चाहिएष् क्योंकि किसी के हाथ में हथकड़ी लगाकर उससे बातचीत करने का कोई मतलब नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा कि बातचीत के पहले किसी तरह की कोई शर्त नहीं लगाई जानी चाहिए। उनका इशारा केन्द्र सरकार की उस शर्त की ओर है, जिसके तहत संप्रभुता के अलावा किसी भी मुद्दे पर बातचीत के लिए केन्द्र अपने आपको तैयार बता रहा है।

श्री हजारिका ने कहा कि वे चाहेगे कि बातचीत में परेश बरुआ भी शामिल रहें। लेकिन उनके शामिल होने के इंतजार में समय जाया नहीं किया जाय। यदि परेश बरुआ शामिल होते हांे, तो बहुत अच्छा और नहीं आते हों तब भी बातचीत होनी चाहिए। जाहिर है अब उल्फा के साथ केन्द्र सरकार की निर्णायक वार्ता जल्द शुरू होने के संकेत मिल रहे हैं।(संवाद)