इसका सबसे अच्छा उदाहरण भारत और बांग्लादेश को जोड़ने वाली रेलवे की एक परियोजना है। इस पर काफी विचार विमर्श हुए और उसके बाद दोनों देशों ने 2010 में ही इसे स्वीकृति दे दी थी। अब 2015 की अंतिम तिमाही चल रही है और अधिकारी यह स्वीकार कर रहे हैं कि इस परियोजना पर कोई काम नहीं हुआ, क्योंकि काम के लिए धन ही उपलब्ध नहीं कराए गए।
वही हाल 58 किलोमीटर लंबी एक अन्य रेल परियोजना का है। पश्चिम बंगाल के सेवोके और सिक्कम के रंगपो के बीच रेल लिंक तैयार किया जाना था। चीन अपने इलाके में रेल और रोड का काफी विस्तार और विकास कर रहा है। उसे ध्यान में रखते हुए ही इस परियोजना को स्वीकार किया गया था। चीन अपने इलाके में भारत की सीमा से लगे हुए अरबों डाॅलर खर्च कर रहा है। भारत उसका ध्यान में रखते हुए ही इस परियोजना पर ध्यान दे रहा था। लेकिन इस पर काम आगे नहीं बढ़ा।
जब मोदी की सरकार पिछले साल आई तो इसने भारत को नेपाल, बांग्लादेश और भूटान से जोड़ने के लिए एक क्षेत्रीय पहल की। भारत और बांग्लादेश के बीच अच्छे संबंध होने के कारण इस पर आसानी से सहमति बन गई, लेकिन जमीन पर वह काम नहीं हुआ है, जितनी चर्चा लोग किया करते हैं।
जहां तक पश्चिम बंगाल और सिक्कम के रेल लिंक की बात है, तो इस परियोजना के लिए जमीन का अधिग्रहण समस्या बना हुआ था। सच कहा जाय तो, 2011 से ही इसमे समस्या आ रही थी। इसका कारण उस साल ममता बनर्जी का प्रदेश की सत्ता में आ जाना था। उन्होंने जमीन के अधिग्रहण के मामले को ठंढे बस्ते में डाल दिया, जबकि रेल मंत्री के रूप में उन्होंने ही इस परियोजना को शुरू किया था।
इस परियोजना पर काम इस तथ्य के बावजूद रुका रहा कि यह रक्षा के मामले से वास्ता रखता है। अनेक सुरंग बनाए जाने हैं और अनेक पुल भी बनाए जाने हैं। इसके निर्माण में 33 अरब रूपये के खर्च का अनुमान था। अब विलंब के कारण खर्च और भी बढ़ जाएगा।
अनेक पर्यावरण संबंधित कठिनाइयों को पार करने के बाद इस परियोजना में थोड़ी प्रगति होती दिखाई दे रही है। अनेक समस्याओं पर अलग अलग विभागों में सहमति बन गई है। लेकिन सवाल तो खड़ा होता ही है कि जब चीन अपने क्षेत्र में उतनी तेजी से काम कर रहा है, तो फिर भारत लगभग वैसी ही प्राकृतिक परिस्थितियों का सामना करते हुए पिछड़ क्यों रहा है?
जहां तक भारत और बांग्लादेश के बीच के रेल लिंक की बात है, तो गौहाटी स्थित एक मीडिया रिपोर्ट का कहना है कि 2010 से ही कोलकाता और अगरतल्ला के बीच 517 करोड़ रुपये के लिंक पर काम रूका हुआ है। 2010 में ही भारत और बांग्लादेश के बीच इस लिंक की सहमति हो गई थी। भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बांग्लादेश दौरे में भी इस पर चर्चा हुई थी। (संवाद)
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"लुक इस्ट" परियोजनाएं ठप्प
घोषणाएं लाल फीताशाही की शिकार
आशीष बिश्वास - 2015-10-19 12:42
कोलकाताः "लुक इस्ट" नीति के तहत इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास से संबंधित अनेक परियोजनाओं की घोषणा हुई थीं और यह सारी परियोजनाएं पूर्वी एवं पूर्वाेत्तर प्रदेशों से संबंधित थीं। लेकिन लाल फीताशाही के कारण वे घोषणाएं कागजों मे बंद होकर रह गई हैं।