थोक मूल्य सूचकांकों के आधार पर मुद्रास्फीति की दर नीची बनी हुई है। नीची क्या, यह तो नकारात्मक जोन में भी आ गई थी। कुछ खाद्य वस्तुओं में महंगाई की दर बहुत ज्यादा है, लेकिन कुल मिलाकर उपभोक्ता सूचकांकों पर आधारित मुद्रा स्फीति की दर भी कम ही है। इस माहौल में भारतीय रिजर्व बैंक पर पिछले एक साल से दबाव पड़ रहा था कि वह मुद्रा नीति की कठोरता को कम करे और बैंकिंग व्यवस्था की ब्याज दर को कम करने वाले निर्णयांे की घोषणा करे, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ब्याज दर में कटौती की मांग को लगातार नकार रहे थे। वे ऐसा कोई कदम नहीं उठाने चाहते थे, जिससे बाजार में कीमतें बढ़े, लेकिन लगातार बढ़ते दबाव के कारण और मुद्रास्फीति के गिरते आंकड़ों के कारण उन्होंने भी आखिरकार ब्याज दर कम होने देने का निर्णय कर ही लिया।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दर कम करने के उपायों की घोषणा के बाद बाजार में तेजी आई है। शेयर बाजार रिकाॅर्ड ऊंचाई को छूने के बाद लगातार कमजोर होने की प्रवृत्ति दिखा रहा था। शेयर सूचकांकों के उठापटक के बीच लग रहा था कि आने वाला समय शेयर बाजार के लिए मनहूस हो सकता है, लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अपनी मुद्रा नीति को थोड़ा मुलायम कर लेने के कारण शेयर बाजार को सहारा मिल रहा है, हालांकि चीन जैसी विदेशी अर्थव्यवस्थाओं द्वारा अपने संकट को हल करने के लिए उठाए जा रहे उपायों का भी विपरीत असर शेयर बाजार पर पड़ता है।
प्रधानमंत्री की प्रोजेक्ट ’ मेक इन इंडिया’ विदेशी निवेश को आकर्षित होने में सफल हो रहा है। यह भारत में निवेश माहौल के प्रति विदेशियों के बढ़ते विश्वास का सूचक है। हालांकि अभी भी भारत में निर्विघ्न निवेश के रास्ते में बहुत बाधाएं है, लेकिन निवेश माहौल के प्रति विदेशियों के बढ़ते विश्वास और विदेश निवेश के बढ़ने के कारण भारत के शेयर बाजार का भविष्य बेहतर है। त्यौहारों के इस माहौल में शेयर बाजारों में निवेश के खतरे ज्यादा नहीं है।
सोना भारतीयों के लिए विशेष आकर्षण की वस्तु रही है। त्यौहारों में इसकी रिकार्ड खरीददारी होती रही है। पिछले कुछ सालों से इसकी कीमतें बढ़ी हुई थीं। कीमतों के बढ़ने के कारण इसकी मांग भारत में कमजोर हो गई थी। निवेश के दूसरे उपकरण के उपलब्ध होने के कारण इसकी खरीद भी प्रभावित हुई थी। जब यह अपनी रिकार्ड कीमत से नीचे खिसकने लगा, तो इसकी मांग भारत में और भी कमजोर हो गई, क्योंकि डर लगा कि कहीं यह और भी सस्ता न हो जाय, लेकिन लगता है कि अब यह अपने सबसे नीचला स्तर प्राप्त कर चुका है और इसके और भी नीेचे जाने की संभावना बहुत कम है। जाहिर है, उत्सव के इस माहौल में सोने की चमक बाजार में फिर लौटने की संभावना है।
भारत का प्रोपर्टी बाजार पिछले दो साल से तबाह है। रियल इस्टेट कंपनियों की मांग थी कि भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दर घटाए और कम दर की होम लोन को संभव बनाए। भारतीय रिजर्व बैंक ने कुछ हद तक उनकी मांग मान ली है, लेकिन प्रोपर्टी बाजार की समस्या सिर्फ होम लोन की दर ही नहीं है। इसकी समस्या यह है कि इसमें बहुत ही तेजी आई थी और यह अपनी ही तेजी की शिकार हो गई है। महंगे महंगे फ्लैट बना लिए गए हैं आर उन कीमतों पर उनके ग्राहक ही नहीं हैं। जिन कीमतों पर ग्राहक उपलब्ध है, उन कीमतों पर प्रोपर्टी उपलब्ध नहीं है। बड़े बड़े शहरों और उनके उपनगरों मंे अधिक कीमतों वाले इतने मकान उपलब्ध हैं कि बिकने की वर्तमान गति के हिसाब से उनके स्टाॅक समाप्त होने मे 6 साल से भी ज्यादा लग जाएंगे।
प्रोपर्टी बाजार की यह कमजोरी देश की अर्थव्यवस्था के लिए अशुभ संकेत है, क्योंकि मकानों के निर्माण में 600 उद्योगों के उत्पादों का इस्तेमाल होता है। जाहिर है, उन 6 सौ उद्योगों में मकान निर्माण में रुकावट से मंदी आने का खतरा पैदा हो गया। वैसे अनेक उद्योग तो मंदी के शिकार हो भी गए हैं। मकान निर्माण रोजगार देने का भी एक बहुत बड़ा जरिया है। इसमें आई मंदी बेरोजगारी को भी बढ़ावा दे रही है, जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए शुभ नहीं है। इसलिए रियल इस्टेट और मकान निर्माण सेक्टर को लेकर हमारे नीति निर्माताओं को गंभीर चिंतन करना पड़ेगा कि इससे जुड़ी समस्या से कैसे निबटा जाय।
जहां तक उपभोक्ता बाजार की बात है, तो इसमें तो त्यौहारों के दौरान तेजी आ ही जाती है। पिछले साल कुछ कम तेजी आई थी और अनेक कारोबारी मंदी की शिकायत कर रहे थे। लेकिन इस बीच बाजार की हलचलें कुछ तेज हुई हैं। आॅनलाइन कारोबारी कंपनियों को मिल रहे रिकाॅर्ड आॅर्डर इस बात के संकेत हैं कि उपभोक्ता बाजार पिछले साल की तुलना में ज्यादा संपन्न है।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दर में कटौती किए जाने के कारण उपभोक्ता बाजार में भी तेजी आना स्वाभाविक है। उसके कारण देश की अर्थव्यवस्था मे ज्यादा कैश आ जाते हैं। चाहे तरीका जो हो उपभोक्ताओं की क्रयशक्ति बढ़ जाती है और बाजार को तो यही चाहिए। जाहिर है, तमाम कमियों के बावजूद इस बार बाजार में ज्यादा रौनक रहने की संभावना है। प्रोपर्टी बाजार को छोड़ दिया जाय, तो अन्य अनेक बाजार बेहतर स्थिति में अब आ गए हैं। (संवाद)
भारत
त्यौहारों के मौसम में बाजार के रंग
तेजी आ ही जाती है
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-10-21 11:37
देश की अर्थव्यवस्था की दूसरी छमाही शुरू हो गई है। यह दूसरी छमाही व्यापारिक आर्थिक गतिविधियों को व्यस्त सीजन होता है और इसकी व्यस्तता त्यौहारों के कारण बढ़ जाती है। जिनके धंधे में मंदी आ रही होती है, वे उम्मीद करते हैं कि उस मंदी की भरपाई इस छमाही की तेजी से पूरी कर लें। पर सवाल यह उठता है कि इस साल की दूसरी या अंतिम छमाही में बाजार का मूड क्या है? क्या यह कारोबारियों के लिए उत्साह का सौगात लेकर आया है या इसका संदेश कुछ और ही है?