यही कारण है कि किसी बच्चे को उसकी मातृभाषा मे शिक्षा देना बहुत ही जरूरी है। यदि उसे उसकी मातृभाषा में शिक्षा दी जाती है, तो वह छात्र आसानी से पढ़ पाएगा और उसे क्या पढ़ाया जाता है, उसे भी आसानी से समझ जाएगा। शोध से भी यही पता चला है कि किसी भी बच्चे की मातृभाषा उसकी शुरुआती शिक्षा के लिए सबसे अच्छा माध्यम है। यूनेस्को ने एक शोध के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि प्राथमिक परीक्षा बच्चे को उसकी मातृभाषा में ही उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
अधिकांश विकसित देशों में प्राथमिक शिक्षा का माध्यम वहां की मातृभाषा ही है। शिक्षा किसी देश के विकास की कुंजी है और इसलिए भारत सरकार ने 2009 में शिक्षा के अधिकार का कानून बनाया है। उसके तहत 6 से 14 साल के बच्चे के लिए शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया है। भारत दुनिया का ऐसा 135वां देश बन गया है, जहां शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया है।
शिक्षा मातृभाषा में ही हो, इसे अन अनेक अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी स्वीकार किया है। यदि किसी इलाके में भाषाई अल्पसंख्यक रह रहा हो, तो उस अल्पसंख्यक को भी अपनी भाषा में शिक्षा के अधिकार को स्वीकार किया गया है।
लेकिन ओडिसा में शिक्षा के अधिकार का हनन किया जा रहा है। इस समय पश्चिम ओडिसा में ओड़िया प्राथमिक शिक्षा का माध्यम है, लेकिन ओड़िया पश्चिमी ओडिसा के लोगों की मातृभाषा नहीं है। उनकी मातृभाषा कोसली है। पर पश्चिमी ओडिसा के लोगों को उनकी मातृभाषा कोसली में प्राथमिक शिक्षा नहीं दी जा रही है। वहां के बच्चे अपनी मातृभाषा में शिक्षा पाने के अपने अधिकार से वंचित कर दिए गए हैं। इसके कारण इस क्षेत्र का विकास भी बाधित हो रहा है।
ओडिसा की कुल जनसंख्या 4 करोड़़ 20 लाख है, जिसमें कोसलभाषी लोगों की संख्या 2 करोड़ है। यानी ओडिसा के दो करोड़ लोग अपने दैनिक जीवन में कोसली ही बोलते हैं। ये पश्चिमी ओडिसा के 10 जिलों में रहते हैं। इन 10 जिलांे की अपनी खास सांस्कृतिक पहचान है। यहां के लोगों के लिए यह सिर्फ एक भाषा नहीं है, बल्कि उनके लिए यह एक जीवन शैली है।
पश्चिम ओडिसा में पूरी ओडिसा की 40 से 50 फीसदी की आबादी वास करती है। यहां ओड़िया भाषा का इस्तेमाल दैनिक कामकाज में लोगों के द्वारा नहीं किया जाता। लेकिन पढ़ाई की भाषा ओड़िया ही है और इसके कारण स्कूल से बिना पढ़ाई पूरी किए निकलने वाले छात्रों की संख्या बहुत ही ज्यादा है। खासकर ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में तो समय से पहले स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या बहुत ही ज्यादा है। यही कारण है कि इस क्षेत्र की साक्षरता दर बहुत ही कम है। यही कारण है कि इस इलाके के में कोसली को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाया जाना चाहिए। (संवाद)
मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा क्यों नहीं?
पश्चिमी उड़ीसा में कोसली पढ़ाई की उपेक्षा
साकेत श्रीभूषण साहू - 2015-11-06 10:44
शिक्षा के माध्यम का मतलब वह भाषा होती है, जिसे कक्षा में पढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यदि कोई छात्र उस भाषा से परिचित नहीं है, जिस भाषा में उसे कक्षा में पढ़ाया जाना है, तो निश्चय ही वह भाषा उसके लिए एक विदेशी भाषा है। यही कारण है कि यदि वह छात्र पढ़ाई को समझ नहीं पाता है, तो वह स्वाभाविक ही है। किसी विदेशी भाषा में किसी बच्चे को पढ़ाने का मतलब है कि उसे बिना तैराकी सिखाए गहरे पानी में उतार देना।