लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर नरेन्द्र मोदी द्वारा अपनाई गई नीति के कारण निवेश माहौल को नुकसान पहुंचा है और अंतरराष्ट्रीय निवेश क्रेडिट एजेंसी मूडीज को यह कहना पड़ा कि नरेन्द्र मोदी को अपनी पार्टी के सदस्यों को काबू में रखना चाहिए, ताकि देशी और विदेशी निवेशकों के बीच भारत अपनी विश्वसनीयता बनाए रखे। उसने चेतावनी दी कि निवेशक पहले से ही भारत को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं। हालांकि मूडीज की उस चेतावनी के बाद भारत सरकार ने नोटिस जारी किया कि भारत में किसी तरह की असहिष्णुता का माहौल नहीं है। लेकिन इससे यह तो पता चलता ही है कि मूडीज की चेतावनी का नोटिस लेने के लिए भारत सरकार को मजबूर होना पड़ा।
इस साल के पहले महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी भारत को सलाह दी थी। उस समय बराक भारत में ही थे। वे 26 जनवरी के आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किए गए थे। भारत से जाते जाते उन्होंने कहा था कि यदि भारत सफलता चाहता है, तो उसे धार्मिक आधार पर बंटने से बचना होगा। उन्होंने अगले महीने फरवरी में अमेरिका जाकर भी यही कहा था। इसे अनेक लोगों ने बराक ओबामा द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चेतावनी के रूप में देखा।
असहिष्णुता और अर्थव्यवस्था में क्या संबंध है? सबसे पहली बात तो यह है कि असहिष्णुता से देश में अशांति फैलने का खतरा है और इसके कारण विकास कार्यो का प्रभावित होना स्वाभाविक है। यदि विकास कार्य प्रभावित होंगे, तो देश का आर्थिक विकास भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेगा। दूसरी बात यह है कि यदि निवेशको को लगा कि देश में अशांत माहौल बनने की संभावना है तो वे निवेश करेंगे ही नहीं। इसके अलावा असहिष्णुता से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेशों में भी छवि खराब होगी।
नरेन्द्र मोदी की सरकार के 18 महीने होने वाले हैं। उन्हें अब अपने मंत्रियों के कामों की भी समीक्षा करनी होगी। खासकर जिन मंत्रियों के पास आर्थिक मंत्रालय हैं, उनकी ओर खास ध्यान देना होगा। जो मंत्री सही ढंग से काम नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें हटाकर उनकी जगह नये लोगों को लाना होगा।
इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आर्थिक सुधार कार्यक्रमों पर सर्वसहमति बनाने की कोशिश भी करनी होगी। उन्हें खासकर कांग्रेस को विश्वास में लेना होगा। अनेक आर्थिक मसलों पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस का रवैया लगभग एक जैसा ही है, लेकिन राजनैतिक कारणों से आर्थिक कानूनों पर दोनों के बीच 36 का आंकड़ा बन जाता है। इससे देश को बहुत नुकसान हो रहा है। यदि कांग्रेस के साथ भारतीय जनता पार्टी ने तालमेल बैठा लिया, तो फिर अन्य विपक्षी दलों को मनाने में सरकार को दिक्कत नहीं होगी। (संवाद)
प्रधानमंत्री मोदी को बिहार से आगे देखना चाहिए
निवेशकों की चिंता को उन्हें दूर करना चाहिए
कल्याणी शंकर - 2015-11-06 10:46
बिहार चुनाव के बाद नरेन्द्र मोदी को आगे देखते हुए अपने सुधार कार्यक्रमों को पूरा करने में लग जाना होगा। अगर उन्होंने वैसा नहीं किया, तो विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए उनके द्वारा किए जा रहे सारे प्रयास व्यर्थ चले जाएंगे। इसमें कोई शक नहीं है कि चुनाव जीतना नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी के लिए बेहद जरूरी है। दिल्ली चुनाव में हार का स्वाद चखने के बाद तो बिहार का चुनाव जीतना नरेन्द्र मोदी के लिए बहुत जरूरी हो जाता है, ताकि वे साबित कर सकें कि उनके नाम का जादू अभी समाप्त नहीं हुआ है। यही कारण है कि उन्होंने बिहार में दो दर्जन से भी ज्यादा चुनावी रैलियों को संबोधित किया। इससे पता चलता है कि वे बिहार चुनाव को कितना महत्व दे रहे थे। मीडिया द्वारा बिहार चुनाव को इतना उछाला गया कि इसने दुनिया भर के ध्यान को आकर्षित कर रखा था। नरेन्द्र मोदी के लिए बिहार का चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके द्वारा उनकी पार्टी राज्यसभा में अपनी सदस्य-संख्या बढ़ा सकती है।