एक कहावत है कि सफलता के अनेक बाप होते हैं, लेकिन विफलता की कोई मां नहीं होती। कहावत को सही साबित करते हुए बिहार की उस जीत का श्रेय कांग्रेस के अंदर के लोग राहुल गांधी को देने लग गए हैं। अब कांग्रेस के महासचिव सीपी जोशी, जो बिहार प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी भी हैं, कह रहे हैं कि पार्टी के युवा लोग चाहते हैं कि राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया जाय। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ए के एंटोनी भी उनका सुर में सुर मिला रहे हैं। आने वाले दिनों में अन्य अनेक कांग्रेस नेता उसी तरह की आवाज निकालने वाले हैं। कांग्रेस के चापलूस नेता कह रहे हैं कि भले ही नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का चेहरा बना कर चुनाव लड़ा जा रहा था, लेकिन जीत राहुल गांधी के कारण वहां महागठबंधन को मिली। उनका कहना है कि लालू यादव नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाने के लिए ना नुकुर कर रहे थे, लेकिन राहुल गांधी ने उन्हें श्री कुमार को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाने के लिए मजबूर कर दिया। यही कारण है कि बिहार में गठबंधन की जीत का श्रेय राहुल गांधी को ही दिया जाना चाहिए।
इसमें कोई शक नहीं है कि राहुल के समर्थक एक सही समय का इंतजार कर रहे थे, ताकि वे अपने नेता को पार्टी अध्यक्ष बनाने के लिए अपनी आवाज तेज कर सकें। उन्हें लगता है कि अब वह समय आ गया है। पार्टी ने कर्नाटक में 2013 का चुनाव जीता था। उसके बाद उसे हार ही हार मिल रही थी। हार की श्रृंखला के बीच पहली बार उसे जीत के दर्शन हुए हैं।
इसलिए कांग्रेसियों को लग रहा है कि अब पार्टी के बुरे दिन बीत चुके हैं। पार्टी के कार्यकत्र्ताओं के हौसले बुलंद हैं। हालांकि पार्टी महागठबंधन में एक जूनियर घटक थी। उसे लड़ने के लिए सिर्फ 41 सीटें ही मिली थीं। उसे 27 सीटों पर सफलता मिल गई। इसके बाद 1990 में उसने बिहार में अपनी जो साख उसने गंवाई थी, वह उसे वापस मिल गई है।
कांग्रेस के पुराने नेता राहुल गांधी के इस समय अध्यक्ष बनाए जाने का विरोध करते रहते हैं। लेकिन बिहार की जीत का सेहरा राहुल के सिर पर बांधने के बाद अब विरोध करना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा। आगामी साल 5 राज्यो मंे विधानसभा के चुनाव होने हैं। उनमें कांग्रेस की हालत खराब हो, उसके पहले ही वे चाहेंगे कि राहुल को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया जाय।
अगले साल जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, उनमें से कर्नाटक और असम में कांग्रेस की सरकार है। तमिलनाडु में तो वह पिछले 5 दशक से सत्ता से बाहर है और पश्चिम बंगाल में भी 1977 के बाद से वह विपक्ष मंे ही है। ममता बनर्जी के साथ गठबंघन में कुछ समय के लिए उसके कुछ विधायक मंत्री थे। तमिलनाडु में कांग्रेस वहां की दो प्रमुख पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ती रही है, लेकिन दोनों में से किसी ने भी उसे सरकार में अपना सहयोगी नहीं बनाया।
बिहार मे गठबंधन की जूनियर पार्टनर बनकर कांग्रेस ने चुनाव जीता। अब उसे यह निर्णय करना है कि क्या वह अन्य राज्यों में भी क्या जूनियर पार्टनर बनने के लिए तैयार है? कांग्रेस को अब यह स्वीकार करना होगा कि भले ही उसकी उपस्थिति राष्ट्रीय स्तर पर है, लेकिन अधिकांश राज्यो में वह प्रमुख पार्टी बनकर चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है। (संवाद)
बिहार के चुनावी नतीजों ने कांग्रेस में जान फूंकी
राहुल को आगे आकर पार्टी का नेतृत्व करना चाहिए
कल्याणी शंकर - 2015-11-13 17:48
बैठे बैठाए कांग्रेस को बिहार विधानसभा चुनाव में 27 सीटें मिल गईं। इसके बाद कांग्रेस के अंदर उन्हें अध्यक्ष का पद दिए जाने की चर्चा एक बार फिर तेज हो गई है। बिहार में कांग्रेस को भी उम्मीद नहीं थी कि उसे इतनी सारी सीटों पर जीत हासिल होगी। 1990 के चुनाव के बाद बिहार में कांग्रेस को उतनी सारी सीटें कभी नहीं मिली थीं। 1995 में उसे वहां 29 सीटें जरूर मिली थीं, लेकिन उनमें वर्तमान झारखंड में मिली सीटें भी शामिल थीं। यदि उन सीटों को निकाल दिया जाय, तो 1995 में उसे वर्तमान बिहार से 27 से भी कम सीटें मिली थीं।