भूमि अधिग्रहण कानून पर उसका जो रवैया था, उसे समझा जा सकता है। इसका कारण यह है कि 2013 का कानून उसका लाया हुआ था और उस कानून को वह अपनी एक बड़ी उपलब्धि समझता है। उसे यह भी लग रहा था कि उस कानून के कारण वह 2014 वाला लोकसभा चुनाव जीत जाएगी, लेकिन वैसा हो नहीं पाया। खाद्य सुरक्षा कानून से भी उसने कुछ वैसी ही उम्मीद पाल रखी थी। लेकिन न तो भूमि अधिग्रहण कानून और न ही खाद्य सुरक्षा कानून उसके काम आया और उसे 2014 के लोकसभा चुनाव में हार का मुह देखना पड़ा। उसके बावजूद उसे लगता है ये कानून उसकी उपलब्धियां हैं और इन्हें कमजोर करने के किसी प्रयास का उसे विरोध करना चाहिए।

ल्ेकिन वस्तु सेवा कर का उसके द्वारा किया जा रहा विरोध समझ से परे लगता है। वह खुद इस कर व्यवस्था को लागू करने का प्रयास कर रही थी, लेकिन कुछ मसलों पर आम सहमति नहीं बन पाने के कारण अपने कार्यकाम में वह सफल नहीं हो पाई थी। इस कानून का विरोध कर और विदेशी निवेश का विरोध कर वह अपना नुकसान ही करती दिखाई देगी।

कांग्रेस एक अनुभवी पार्टी होने का सबूत नहीं दे पा रही है। वह बच्चों की तरह व्यवहार कर रही है। उसे भारतीय जनता पार्टी, वस्तु सेवा करे और विदेशी निवेश हासिल करने की पहल पर ज्यादा समझदार रुख अपनाना चाहिए था।

यह सच है कि जब कांग्रेस की सरकार थी, तो भारतीय जनता पार्टी ने उसके वस्तु सेवा कर के प्रस्ताव पर अड़ियल रुख अपनाया था। उसके विदेशी निवेश प्रस्तावों को भी वह नकार दिया करती थी। लेकिन कांग्रेस का इस मामले में भाजपा की नकल करने की जरूरत नहीं है। यह क्या बात हुई कि आपने मेरे साथ सहयोग नहीं किया, तो मैं आपके साथ सहयोग नहीं करूंगा। यह तो क्षुद्र मानसिकता है।

कांग्रेस को यह बात समझना होगा कि लोगों ने उसे दंडित इसलिए किया, क्योंकि भ्रष्टाचार के मसले पर उसने सही रवैया नहीं अपनाया और मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधार कार्यक्रमों मंे भी अड़ंगा लगाते रहने का काम किया।

अब यदि कांग्रेस उसी तरह नरेन्द्र मोदी के आर्थिक सुधार कार्यक्रमों मंे अड़ंगा लगाते रहने का काम करती है, तो इससे भी लोगों के बीच गलत संदेश जाएगा। लोग यही समझेंगे कि कांग्रेस ने अपनी गलतियों से कुछ भी नहीं सीखा है।

कांग्रेस के दोनों शीर्ष नेता कह रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी सरकार विकास के पर्दे के पीछे आरएसएस के एजेंडे को छिपाने का काम कर रही है। और इसी तर्क से वह सरकार के विकास तेज करने वाली नीतियों का भी विरोध कर रही है। लेकिन उसका यह रवैया गलत है। उसे सरकार के विकासकारी कदमों का समर्थन करना चाहिए और संघ पर सरकार द्वारा नरम रुख अपनाए जाने की निंदा करते रहनी चाहिए।

लेकिन मां और बेटे में से कोई भी सही राजनीति नहीं कर रहे हैं। वे सामान्यीकरण कर रहे हैं और बचकानी बातें कर रहे हैं। कांग्रेस को मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में सरकार के कमजोर बिन्दुओं को उजागर करना चाहिए, लेकिन उसने तो सरकार के मजबूत बिन्दुओं का विरोध करने की भी कसम खा रखी है।

बिहार में कांग्रेस के अधिकांश उम्मीदवारों की जीत ने पार्टी कार्यकत्र्तााओं और नेताओ के बीच में मां-बेटे की स्थिति मजबूत कर डाली है। लेकिन उसे समझना चाहिए कि वह न तो राहुल की जीत है और न ही सोनिया की ।सच तो यह है कि वह जीत लालू और नीतीश गठबंधन की जीत है। मां और बेटे का बिहार की यह कथित जीत के बाद की रणनीति बनाना अभी बाकी ळें (संवाद)