समुद्रीपानी का खारापन दूर करने की इस प्रक्रिया को डिसैलिनेशन अथवा विलवणीकरण कहा जाता है। लवणविहीन यह पानी मीठा पानी कहलाता है जो मानव-उपयोग के और सिंचाई के काम आता है। सागर में उतरने वाले अनेक जहाजों और पनडुब्बियों में मुख्यत: यही पानी इस्तेमाल होता है। खारापन दूर करने के बारे में आज जो रुचि दिखाई दे रही है, उसका मुख्य उद्देश्य इसकी प्रक्रिया की कम खर्चीली (किफायती) पद्धति की खोज है ताकि सीमित मात्रा में ताजा पेयजल पाने वाले क्षेत्र के लोगों को पीने योग्य पानी मुहैया कराया जा सके। व्यापक स्तर पर खारापन दूर करने के काम में बिजली का बहुत खर्च होता है। इसके साथ ही विशिष्ट और महंगे बुनियादी ढांचे की भी आवश्यकता है। इस सब कारणों से नदियों और भूमिगत जल की शुद्धिकरण प्रणाली की तुलना में यह प्रणाली महंगी साबित होती है। धरती विज्ञान मंत्रालय ने अपने राष्ट्रीय सागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) के माध्यम से विलवणीकरण (खारापन दूर करना) का तकनीकी और आर्थिक रूप से व्यावहारिक समाधान खोजने का काफी प्रयास किया है। निम्न तापमान तापीय विलवणीकरण (एलटीटीडी) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो जलीय निकायों के बीच तापमान के उतार-चढा़व से पहले गर्म पानी को कम दाब पर वाष्पीकृत और फिर निकली भाप को ठंडे पानी से द्रवीकृत किया जाता है ताकि मीठा पानी प्राप्त किया जा सके। गहरे सागर में अलग-अलग स्तर पर (गहराई) में अलग-अलग तापमान होता है, अत: दो अलग-अलग तापमान वाले जलीय निकायों की स्थिति वहां सहज रूप से विद्यमान रहती है। तट पर स्थित ताप विद्युत संयंत्र से द्रवीकरण के फलस्वरूप भारी मात्रा में निकलने वाला पानी पास के सागर में समाकर एक वैकल्पिक परिदृश्य उपस्थित करता है। एलटीटीडी प्रक्रिया की सरलता के कारण उत्पादित जल की गुणवत्ता को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इससे या तो अच्छी गुणवत्ता वाला पेयजल अथवा स्थित की मांग के अनुसार वाष्पित (बॉयलर) के लायक पानी प्राप्त हो सकता है।

निम्न तापमान तापीय विलवणीकरण (एलटीटीडी)

एलटीटीडी संयंत्र के लिए जो प्रमुख घटक चाहिए होते हैं, वे हैं- वाष्पीकरण चैम्बर, द्रवीकारक, गर्म और ठंडा पानी निकालने के लिए पंप और पाइपलाइन तथा संयंत्र को निम्न वातावरण दबाव पर बनाए रखने के लिए वैक्यूम पंप। इस प्रक्रिया का एक सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसे दो जलीय निकायों के बीच 8-10 डिग्री सैलसियस के तापमान के उतार-चढा़व की दर (ग्रेडियन्ट) पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। विश्व के अनेक स्थानों, विशेषकर पश्चिम एशिया में बहुत तेजी से प्रवाहित पानी से आसवन वाली प्रणाली का उपयोग होता है, परन्तु कोई भी स्थापित संयंत्र 8 डिग्री सेलसियस जैसे कम तापमान पर काम नहीं करता। भारत में तमिलनाडु के उत्तरी चेन्नई ताप विद्युत संयंत्र में यही प्रणाली अपनाई गई है।

पारम्परिक विलवणीकरण प्रक्रिया

पानी का खारापन दूर करने की जो आम तौर पर प्रचलित प्रक्रिया है, वह है रिवर्स आस्मोसिस अर्थात विपरीत विसारण। झिल्ली से छन कर विपरीत दिशा में पानी प्रवाहित करने की यह सबसे लोकप्रिय विधा है। उच्च दाब पर पानी को एक रंध्रवान झिल्ली से प्रवाहित किया जाता है। जब पानी उच्च दाब वाले क्षेत्र से 0.5-1.5 एनएम के आकार के रंध्रों से होकर गुजरता हुआ निम्न दाब वाले क्षेत्र में जाता है तो अधुलित ठोस पदार्थ अपशिष्ट के रूप में पीछे छूट जाते हैं। पिछले 20 वर्षों में इस प्रक्रिया की खामियों को दूर कर उसे पर्याप्त रूप से सुधारा गया है। परन्तु, बिजली की ज्यादा खपत और सांद्र नमकीन घोल का निपटान, इस प्रक्रिया की दो सबसे बड़ी खामियां हैं। बहुस्तरीय पऊलैश विलवणीकरण (एमएसएफ) झटके से तेज बहाव के जरिए खारापन दूर करने की प्रक्रिया है जो एलटीटीडी प्रक्रिया के समान ही, परन्तु उच्चतर तापमान अंतर पर काम करती है। पानी को तेज गति से कई चरणों में झटके से प्रवाहित किया जाता है। अधिकांश एमएसएफ संयंत्र 60-80 डिग्री सेलसियस तापमान के बीच इनलेट फीडवाटर (अन्तर्मार्ग से पानी की पूर्ति) का इस्तेमाल करते हैं। बहु-प्रभावी विलवणीकरण (मल्टी इफेक्ट डिसैलिनेशन (एमईडी) में, बिजली घरों में भाप से निकलने वाली ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। प्राथमिक स्रोत के रूप में भाप का उपयोग भारतीय संदर्भ में इस प्रक्रिया को खर्चीला बना देता है।

निम्नतापमान तापीय विलवणीकरण

राष्ट्रीय सागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी-नियोटे) ने 2004 में एलटीटीडी अनुप्रयोगों के साथ काम करना शुरू किया और अनेक प्रकार के संयंत्रों की स्थापना की। ये हैं-- प्रयोगशाला स्तर का 5 एम3 दिन क्षमता का मॉडल (2004), लक्षद्वीप के कवरत्ती द्वीप पर भूमि स्थित 100 एम-3 दिन का मॉडल (2005) और चेन्नई समुद्र तट से परे बजरे (नौका) पर निर्मित 1000 एम 3 दिन क्षमता (2007) वाले मार्गदर्शी प्रायोगिग संयंत्र।

लक्षद्वीप द्वीपसमूह पर एलटीटीडी

नियोट ने एक लाख लीटर प्रतिदिन पेयजल उत्पादन करने वाला भूमि आधारित प्रदर्शन संयंत्र मई 2005 में स्थापित किया था। द्वीप के पास सागर तल की गहराई ऐसी थी कि तट से केवल 600 मीटर की दूरी पर ही गहराई 350 मीटर तक पहुंच गई थी। तापमान में 15 प्रतिशत के ग्रेडियंट का इस्तेमाल किया गया। 630 मिलीमीटर व्यास वाले 600 मीटर लम्बे उच्च घनत्व वाले पालीथीन (एचडीपीई) पाइपों का इस्तेमाल 350 मीटर की गहराई से ठंडा पानी निकालने के लिए किया गया। तभी से ये संयंत्र निर्बाध रूप से काम कर रहा है और तीन वर्षों से 10 हजार की स्थानीय आबादी की जरूरतों को पूरा कर रहा है। उत्पादित मीठे जल में समुद्री खारापन (लवणीयता) 35000 पीपीएम (पार्ट पर मिलियन) से घटकर 280 पीपीएम रह गया था। मीठे जल में स्वीकार्य लवणीयता सीमा 2000 पीपीएम तक है। संयंत्र द्वारा मीठे जल की आपूर्ति के बाद से उपभोक्ताओं में जलजनित बीमारियों के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट आई है। नियोट इसी प्रकार के संयंत्र लक्षद्वीप के तीन अन्य द्वीपों, अगाती, मिनिकॉय और अंद्रोथ पर लगाने की तैयारी में है।

बजरे (नौका) पर निर्मित एलटीटीडी संयंत्र

जमीन पर बने एलटीटीडी संयंत्र के लिए नियोट ने चेन्नई के समुद्र तट से करीब 40 किलोमीटर दूर एक बजरे पर 1000 एम3 दिन (10 लाख लीटर प्रतिदिन) की क्षमता वाला विलवणीकरण संयंत्र खड़ा किया है। उससे उत्पादित जल का उपयोग तटवर्ती भूभाग के लोग कर सकेंगे। सतह पर जल के 180 डिग्री सेलसियस के तापमान और 550 मीटर की गहराई पर जल के 28 डिग्री सेल्सियस के तापमान के ग्रेडियन्ट का उपयोग किया गया। संयंत्र ने अप्रैल 2007 में काम करना शुरू कर दिया था और कुछ हपऊतों तक समुद्री प्रयोग किये जाते रहे। बाद में संयंत्र को विखंडित कर दिया गया।

बिजली घरों में एलटीटीडी का अनुप्रयोग

एलटीटीडी के इन संयंत्रों से देखा जा सकता है कि मीठे पानी के उत्पादन के लिए तापमान में अंतर और शून्य का स्तर पर्याप्त होना चाहिए। तापीय बिजली घर अपने कंडेंसरों (द्रवीकरण यंत्रों) से गर्म पानी छोड़ते हैं। इस प्रक्रिया में अत्यधिक ऊर्जा के हस्तांतरण की जरूरत होती है और इसमें कूलिंग टावर्स अथवा खुली ताप विसर्जक नलिकाएं भी आम तौर पर शामिल होती हैं। इससे पहले कि कंडेंसर पानी को वापस करे, उसे स्वीकार्य तापमान पर वापस आसपास के वातावरण में छोड़ दिया जाता है। फलस्वरूप ताप बिजलीघरों से होने वाले जल प्रदूषण आज तक गंभीर समस्या बनी हुई है। कंडेंसर द्वारा अस्वीकृत पानी के ताप के उपयोग का कोई बेहतर और कार्यक्षम रास्ता निकल सके तो कूलिंग टावर्स पर कम भार पड़ेगा, जिससे तापीय प्रदूषण भी कम होगा। एलटीटीडी की एक विशेषता यह है कि गर्म पानी से मीठा पानी बनाते समय यह गर्म पानी के ताप को ठंडे पानी को हस्तांतरित कर देता है। अत: इस पहलू को ताप बिजलीघरों में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे कंडेंसर द्वारा अस्वीकृत पानी को ठंडा करने और मीठे पानी के उत्पादन का दोहरा लाभ उठाया जा सकता है। करीब 8-10 डिग्री सेल्सियस का मामूली ग्रेडियंट, जोकि आम तौर पर अधिकांश बिजलीघरों में पाया जाता है, इस सिद्धान्त को अमल में लाने के लिए पर्याप्त होगा।

आगे की योजना

लक्ष्यद्वीप में पेयजल:- एलटीटीडी की यह प्रौद्योगिकी पिछले चार वर्षों में स्थापित हो चुकी है। धरती विज्ञान मंत्रालय का लक्ष्य दिसम्बर, 2010 तक लक्षद्वीप के दस प्रमुख आबाद द्वीपों में एक लाख लीटर प्रतिदिन की क्षमता वाले ऐसे संयंत्र स्थापित करने का है।

समुद्री तट पर ताप बिजलीघरों में मीठा पानी

एनसीटीपीएस में महज 8 से 10 डिग्री सिल्सियस ग्रेडियंट वाले एलटीटीडी संयंत्र की सफलता ने इसके उपयोग का एक और रास्ता सुझाया है। चूंकि अधिकाश बिजलीघर 8 से 10 डिग्री सेल्सियस पर कंडेंसर अस्वीकृत पानी सतही तापमान पर समुद्री जल में छोड़ते हैं, उपलब्ध तापमान अंतर में कोई भी वृद्धि अथवा बिजली घरों से अतिरिक्त वाष्प का प्रावधान एलटीटीडी की कार्यक्षमता को बढा़ देगा, जिसका नतीजा यह होगा कि अधिक मीठा पानी उत्पादित होगा। यदि डिजाइन तैयार करते समय ही इस बात पर अमल किया जाए तो बिजली की खपत में भी कुछ कमी लाई जा सकती है। देशभर में नए-नए बिजलीघर लगाए जा रहे हैं। इनमें से अनेक तटीय क्षेत्रों में हैं। अत: यदि एलटीटीडी प्रौद्योगिकी का उपयोग इन बिजली घरों में किया जाए तो बॉयलरों को बढिय़ा किस्म का मीठा पानी प्रदान करने में यह उपयोगी सिद्ध हो सकती है, साथ ही तापीय प्रदूषण में भी कमी आ सकेगी। #