दिलीप सिंह भूरिया के निधन से यह सीट खाली हुई थी। यहां से भाजपा ने उनकी बेटी निर्मल भूरिया को अपना उम्मीदवार बनाया था। लेकिन सुश्री भूरिया कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया से 82 हजार से भी ज्यादा मतों से चुनाव हार गईं। डेढ़ साल के अंदर ही यह सीट भाजपा के हाथ से निकल गई।

रतलाम लोकसभा के साथ साथ देवास विधानसभा सीट के लिए भी चुनाव हुए थे। उस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार इस बार भी विजयी रहे, लेकिन इस बार जीत का अंतर पिछली बार से कम था। पिछली बार भाजपा के उम्मीदवार की जीत लगभग 50 हजार मतों से हुई थी, जबकि इस बार जीत का अंतर सिर्फ 30 हजार ही रहा। देवास में जीत हमेशा पूर्व राजपरिवार के किसी सदस्य की ही होती है। यही कारण है कि इस जीत को भाजपा की जीत कम और राजपरिवार की जीत ज्यादा कहा जाएगा।

रतलाम क्षेत्र की हार मुख्यमंत्री चौहान के लिए कितना बड़ा झटका है, यह इससे पता चलता है कि यहां की जीत को वे कितना जरूरी समझते थे। उन्होंने अपनी पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए अपनी सारी ताकत झोंक दी थी। उन्होंने 15 दिन लगातार चुनाव प्रचार किया और कुल 52 चुनावी सभाओं को संबोधित किया। मंत्रियों के बेड़े यहां पूरी तौर पर उतार दिए गए थे। पैसे को पानी की तरह बहाया गया। लेकिन इसके बावजूद भाजपा उम्मीदवार की हार हुई।

पेटलाबाद के धमाके से यहां के लोगों के बीच चौहान सरकार के खिलाफ नाराजगी थी। गौरतलब हो कि पेटलाबाद में ही भारी धमाके हुए थे, जिसमें 90 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे। उस धमाके का मुख्य आरोपी अभी भी गिरफ्तार नहीं किया जा सका है। इसके कारण जनता की नाराजगी और भी बढ़ गई है।

जनता की नाराजगी को दूर करने की पूरी कोशिश मुख्यमंत्री ने की। क्षेत्र के विकास के लिए 2000 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की गई। उसके बावजूद उनकी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।

शिवराज सिंह चौहान जब से प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, तब से ही लगातार उपचुनाव जीतने का रिकार्ड भाजपा के पास है। इसके पहले सिर्फ एक ही उपचुनाव भाजपा हारी है। रतलाम के साथ अब हारे हुए उपचुनाव की संख्या दो हो गई है।

हार के लिए अनेक कारण बताए जा रहे हैं। एक कारण तो प्रबंधन पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया जाना है। वे प्रबंधक क्षेत्र से बाहर के लोग थे। वे चुनाव अभियान पर पूरी तरह से हावी थे और स्थानीय नेताओं और कार्यकत्र्ताओं को वे कोई महत्व नहीं दे रहे थे। उन्हें लग रहा था कि मीडिया और मनी की ताकत से वे चुनाव जीत जाएंगे। उनके रवैये से भाजपा के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता आहत हुए, जिसका असर मतदान पर पड़ा।

दूसरी तरफ कांग्रेस के उम्मीदवार ने जमीन पर काम किया और लोगों तक सीधी पहुंच बनाने और उनसे संवाद करने में सफलता पाई।

जहां रतलाम की हार से मुख्यमंत्री चौहान की प्रतिष्ठा को भारी झटका लगा है, वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव की बाहबाही हो रही है। लगातार कांग्रेस की हार के कारण अरुण यादव की राजनैतिक प्रतिष्ठा को चोट पहुंच रही थी। इस जीत ने उनके और उनके समर्थकों के पस्त हौसलों को बुलंद कर दिया है। (संवाद)