इस समय पाकिस्तान में धार्मिक- राजनैतिक संकट चल रहा है। यह संकट अकाली दल की अपनी राजनीति का नतीजा है। अकाली दल की राजनीति 2017 के चुनाव में फिर से सत्ता हासिल करने को लेकर सीमित है। लेकिन जो कुछ हो रहा है, उसके कारण अकाली दल का समर्थन आधार ही कमजोर हो रहा है। प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे ने डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम सिंह इन्सां के लिए माफी का जुगाड़ कर दिया। गौरतलब है कि राम रहीम ईश निंदा के आरोपों का सामना कर रहे थे। उनके खिलाफ सिख समुदाय में इस बात को लेकर नाराजगी थी कि उन्होंने सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह का ड्रेस पहनकर अपने आपको उनके जैसा दिखाने की कोशिश की थी। इसे गुरु के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाला माना गया। सिख पंथ ने उसके लिए राम रहीम को तनखैया घोषित कर दिया।
राम रहीम सिंह के अनुयाइयो की संख्या भी बहुत ज्यादा है। मालवा अकाली दल का गढ़ माना जाता है और वहां राम रहीम के अनुयाई अच्छी खासी संख्या में हैं। उनका समर्थन पाने के लिए बादल परिवार ने राम रहीम को माफी दिलवा दी। लेकिन इसके कारण सिखों के धामिक संगठनो में बवाल खड़ा हो गया है और वे बादल पिता पुत्र का भी विरोध करने लगे हैं। सच कहा जाय तो इस घटना ने सत्तारूढ़ अकाली दल में ही दरार पैदा कर दी हैं।
इससे भी ज्यादा खतरानक घटना, जो अकाली दल के लिए समस्या का कारण बन गई है, वह गुरु ग्रंथ साहेब के सम्मान को ठेस लगाने से संबंधित है। उसकी अनेक घटनाएं घटीं। प्रशासन को तुंरत चैकस होकर उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी, जो उन घटनाओ में शामिल थे। लेकिन समय रहते कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। दोषियों को नहीं पकड़ा गया। इससे लोगों का गुस्सा भड़का। उन्हें लगा कि पुलिस का इस्तेमाल कर सत्ताधारी दल अपने राजनैतिक विरोधियों को तो तुरंत ठिकाने लगा देता है, लेकिन गुरु ग्रंथ साहिब की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने वाले लोगांे तक कानून के हाथ नहीं पहुंच पाते हैं। यही कारण है कि लोगों का असंतोष बहुत तेजी से भड़का और इस असंतोष की आग में अकाली दल की प्रतिष्ठा भी जलने लगी।
इन्हीं घटनाओं की पृष्ठभूमि में 10 नवंबर को गरम तबकों द्वारा आयोजित सरबत खालसा और 21 नवंबर को अकाली दल द्वारा 23 नंवबर को आयोजित सद्भावना यात्रा को देखा जाना चाहिए। सरबत खालसा अमृतसर के पास आयोजित किया गया था, जबकि सद्भावना यात्रा भटिंडा में हुई थी।
दोनो रैलियों में उपस्थित लोगों की संख्या बहुत ज्यादा थी। लेकिन दोनों से दो तरह के परस्पर विरोधी संदेश निकले हैं। सरबत खालसा में लोग भारी संख्या में अपने आप उपस्थित हो गए, जबकि भटिंडा की रैली में लोगों को इंतजाम करके लाया गया। एक अंग्रेजी अखबार के अनुसार, भटिंडा में मनरेगा श्रमिकों को भारी संख्या में लाया गया था। उनके लिए गाड़ियों के इंतजाम किए गए थे। लोगों को जुटाने के लिए सरकारी मशीनरी का जबर्दस्त दुरुपयोग किया गया था।
प्रदेश की राजनीति उथल पुथल के दौर से गुजर रही है और इस दौर में कांग्रेस की ओर से सत्तारूढ़ दल को जबर्दस्त चुनौती मिल रही है। (संवाद)
भारत: पंजाब
अकाली दल अनदेखी कर रहा है बवंडर को
कांग्रेस दे रही है बड़ी चुनौती
बी के चम - 2015-12-02 09:40
पिछले कुछ दिनों के दौरान पंजाब में घटी घटनाओं ने कुछ ऐसे सवाल खड़े कर दिए हैं, जो आने वाले दिनों में प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करेंगे। इस समय तो प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व वाला शिरोमणि अकाली ने रक्षा की आक्रामक नीति अपना रखी है। पर सवाल उठता है कि उसने पिछले दिनों जो राजनैतिक जमीन खोई है, क्या उसे फिर से वापस पा सकेगा? अकाली दल सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहा है। उसके प्रशासन से भी लोग नाखुश हैं। कुप्रशासन के कारण अकाली दल के अपने समर्थक असंतुष्ट हैं। सिख किसान अकाली दल के मुख्य आधार हैं और उस आधार में ही सरकार के खिलाफ आक्रोश देखा जा सकता है।