प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों संसद में कहा कि लोकतंत्र में सहमति की ताकत बहुत बड़ी होती है। लेकिन यह सहमति ही है, तो वस्तु सेवा कर विधेयक के लिए बन नहीं पा रही है और एक अच्छा कानून मूर्त रूप प्राप्त नहीं कर पा रहा है।

सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस क्यों इस मसले पर राजनीति कर रही है? वह इसे राज्यसभा से पारित होने नहीं दे रही है। इस विधेयक को पारित कराने के लिए दो तिहाई बहुमत की जरूरत है और सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पास कुल 240 राज्यसभा सदस्यों में से मात्र 66 सदस्य ही हैं। अकेले कांग्रेस के राज्यसभा सदस्यों की संख्या 68 है। सरकार तृणमूल कांग्रेस के 12 सदस्यों का समर्थन भी हासिल कर सकती हैं। बसपा के 10 सदस्य उसके साथ हैं। 12 सदस्यों वाला जनता दल(यू) भी इसका समर्थन कर रहा है। बीजू जनता दल के पास 6 राज्यसभा सांसद है और वह भी इसका समर्थन कर रहा है। शायद जयललिता की पार्टी के 12 राज्यसभा सांसद भी इस विधेयक का समर्थन कर दें, लेकिन इसके बावजूद इस विधेयक को दो तिहाई सदस्यों का समर्थन हासिल नहीं होता। कांग्रेस का समर्थन जरूरी है और इसके लिए ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री आवास में बातचीत के लिए बुलाया था।

इधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विपक्ष के प्रति कुछ नरम हुए हैं। बिहार चुनाव में हार और कुछ विधेयक पारित करवाने की विवशता के कारण उनके रवैये में बदलाव आया है। इसलिए अब वे कांग्रेस पर हमला नहीं कर रहे, बल्कि कांग्रेस को खुश रखने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की प्रशंसा करने का कोई मौका नहीं खोते। संविधान दिवस मनाए जाने के उपलक्ष्य में संसद मंे हुई चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने जवाहरलाल की बहुत प्रशंसा की। उन्होंने अपने भाषण में सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को उद्धृत भी किया। दोनों के प्रति प्रशंसा के भाव दिखाए। इस तरह उन्होंने दोनों को खुश रखने की कोशिश की।

सरकार इस बात को लेकर खुश हुई कि सोनिया गांधी वस्तु सेवा कर विधेयक को लेकर खुला मन रखती हैं और मनमोहन सिंह तो इसका समर्थन ही करते हैं। सोनिया ने मांग की कि शराब और तंबाकू को वस्तु सेवा कर का हिस्सा बनाया जाय, क्योंकि कुछ कांग्रेसी राज्य सरकारें ऐसा ही चाहती हैं। डर है कि कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों को इन दोनों पदार्थो को वस्तु सेवा कर सूची से बाहर रखने पर नुकसान हो सकता है। कांग्रेस की मांग यह भी है कि वस्तु सेवा कर की ऊपरी सीमा तय कर दी जाय। वह इस सीमा को 20 फीसदी तक देखना चाहती है। कांग्रेस अतिरिक्त लेवी की समाप्ति भी चाहती है, जिसके तहत एक राज्य से दूसरे राज्य मे माल ले जाने पर एक प्रतिशत कर का प्रावधान है। यह प्रावधान महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु जैसे औद्योगिक राज्यों की मांग पर किया गया है, जिन्हें लगता है कि वस्तु सेवा कर के प्रावधान से उन्हें नुकसान होगा। कांग्रेस की इस मांग को तो मानने के लिए केन्द्र सरकार तैयार दिखाई पड़ रही है, लेकिन वस्तु सेवा कर की ऊपरी सीमा को संविधान द्वारा तय कर दिऐ जाने के पक्ष मंे वह नहीं है। वह इसपर कानून बनाकर इसकी सीमा तय करने के पक्ष में है। इसका कारण यह है कि साधारण कानूनों को जरूरत पड़ने पर आसानी से बदला जा सकता है, लेकिन संवैधानिक संशोधन करना कठिन काम होता है। लग रहा है कि इस मसले पर कांग्रेस अपना रुख नरम कर रही है। (संवाद)