बहस को समाप्त करते हुए राजनाथ सिंह ने जो भाषण दिए, वह इस पूरे दो दिनो की बहस में सुनने लायक एक मात्र भाषण था, लेकिन बहस की मांग करने वालों ने खुद इस भाषण का बहिष्कार कर दिया। वैसे गृहमंत्री राजनाथ सिंह के भाषण को भी बहुत उत्कृष्ण भाषण नहीं कहा जा सकता है, लेकिन जब उनके पहले बोलने वाले वक्ताओं के भाषण ही मरे मरे जैसे हों, तो फिर उनके भाषण से उससे ज्यादा उम्मीद की भी नहीं जा सकती थी।

राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में यह आरोप लगाया कि देश में यदि किसी पार्टी को असहिष्णुता का ज्यादा शिकार होना पड़ा है, तो खुद उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी है और यदि किसी नेता को हाल के दिनों मंे असहिष्णुता का शिकार होना पड़ा है, तो वे नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी हैं। राजनैतिक पार्टियां एक दूसरे पर राजनैतिक हमले करती रहती हैं। एक दूसरे की विचारधाराओं की आलोचना भी करती रहती हैं। इसलिए वे एक दूसरे के प्रति असहिष्णु बनी रहती हैं। इसलिए भाजपा असहिष्णुता की शिकार रही है अथवा नहीं, इसमें दो मत हो सकते हैं, पर इसमें दो मत नहीं हो सकता कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले कुछ सालों मंे असहिष्णुता के सबसे बड़े शिकार रहे हैं।

बहस के दौरान यह भी सवाल उठा कि भारत सहिष्णु देश है या असहिष्णु। इस पर बहुत अच्छी बहस हो सकती थी, लेकिन बहस का स्तर इतना गिरा हुआ था और बहस करने वाले राजनैतिक स्कोर हासिल करने में इस कदर व्यस्त थे कि इस मुद्दे पर भी सही तरीके से चर्चा नहीं हो सकी। सच कहा जाय, तो भारत की सहिष्णुता और असहिष्णुता एक समाज शास्त्रीय मुद्दा है और इस पर बहस करने के लिए एक पैनी सामाजिक दृष्टि चाहिए, पर दुर्भाग्य देश की बढ़ती साक्षरता दर के साथ हमारे राजनेताओं की बौद्धिकता का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है।

कोई भी देश या समाज सभी मामले में सहिष्णु या सभी मामले में असहिष्णु नहीं हो सकता। हमें कुछ मामले में सहिष्णु होना चाहिए और कुछ मामले में पूरी तरह असहिष्णु। हमे अपराध और भ्रष्टाचार के मामले में अहिष्णु होना चाहिए और दूसरे के विचारों के प्रति सहिष्णु। आज देश में असहिष्णुता को लेकर जो बहस छिड़ी हुई है, वह वैचारिक सहिष्णुतो को लेकर ही है।

इसमें कोई दो मत नहीं कि हमारा समाज वैचारिक सहिष्णुता का पक्षधर रहा है। हमारे देश मे किसी एक विचारधारा का राज कभी नहीं रहा, बल्कि अनेक विचारधाराएं रही हैं। उनके मानने वालों मंे आपसी प्रतिस्पर्धा भी रही है और अपनी विचारधारा को श्रेष्ठ मानने और मनाने की होड़ भी रही है। कभी विचारधाराओं में जंग हुई होगी और उसके कारण समाज में कटुता भी रही होगी और हिंसा भी हुई होगी, लेकिन आज तमाम वैचारिक विविधताओं के बावजूद सभी विचारधाराओं के प्रति सहिष्णुता का माहौल है। यही कारण है कि अलग अलग विचारधाराएं यहां पनप रही हैं। हम विदेशी विचारधाराओं के पनपने के रास्ते में भी रोड़ा नही अड़ाते। यही कारण है कि जब पारसी विचारधारा को दुनिया में कहीं जगह नहीं मिल रही थी, तो उसे भारत में आश्रय मिला। ईसाई विचारधारा भी बहुत पहले भारत आ गई थी। इस्लाम मत के लोग भी पश्चिमी समुद्री तट पर भारत पर मुस्लिम आक्रमण के पहले से ही बसने लगे थे। भारत की अपनी स्वदेशी विधारधाराओं की संख्या भी अनेक हैं। धाराओं की भी उपधाराएं हैं। ईश्वरवादी दर्शन भी है, तो अनीश्वरवादी दर्शन भी है। एकेश्वरवाद से लेकर 33 कोटि देवताओं के अस्तित्व वाले विचार भी हमारे देश में हैं। लंबे समय तक अनीश्वरवादी बौद्ध शासकों का साम्राज्य हमारे देश में रहा है, लेकिन उस समय भी बौद्धेत्तर विचारधारा हमारे देश में बनी हुई थी। कहते हैं कि एक समय शाक्त और वैष्णव विचारधारा के प्रति हमारे देश में भीषण संघर्ष हुए, लेकिन कालक्रम में उनमें सामंजस्य हो गया है और जो शैव हैं, वे भी विष्णु की पूजा करते हैं और जो वैष्णव हैं, वे भी शिव की भक्ति करते हैं।

भारत की वैचारिक सहिष्णुता का आधार यह सोच है कि कोई अपनी विचारधारा को किसी अन्य के ऊपर नहीं थोपेगा। सत्य एक है और विद्वान इसे अलग अलग तरीके से बताते हैं। यह वैचारिक असहिष्णुता का सूत्र वाक्य है, लेकिन समस्या तब आती है, जब कोई कहता है कि सिर्फ हम सही हैं और बाकी सब गलत है। लेकिन भारत की जमीन में सभी विचारधाराओं को बनाए रखने की उर्वराशक्ति है और यही कारण है कि यह वैचारिक रूप से असहिष्णु न तो है और न ही हो सकता है। एक ही परिवार में ऐसे सदस्य भी रहते हैं, जो ईश्वर को नहीं मानते और ऐसे भी रहते हैं, जो दिन रात ईश्वर की ही पूजा करते रहते हैं, लेकिन इसके कारण वह परिवार नहीं टूटता।

हां, भारत में असहिष्णुता भी है और वह है जातीय असहिष्णुता। भारत में जातियों की संख्या हजारों नहीं, तो सैंकड़ों मे जरूर है। सामाजिक संरचना में जातियां राजनैतिक सत्ता से कितनी दूर रही हैं, अथवा कितना नजदीक रही हैं, उसी के आधार पर उनके बीच सोपानिक विषमता बन गई है और सामंतीयुग में यदि कोई जाति सोपान पर ऊपर चढ़ने की कोशिश किया करती थी, तो उसका विरोध होता था। उसी का हैंगओवर आज भी है। उस हैंगओवर के कारण ही जातीय असहिष्णुता विद्यमान है।

राजनाथ सिंह ने पते की बात बताई कि नरेन्द्र मोदी असहिष्णुता के सबसे ज्यादा शिकार होने वाले नेता हैं। इसमें सच्चाई है, लेकिन वे क्यों इस तरह के शिकार हैं, इसका कारण उन्होंने नहीं बताया है। वे यह कहने में चूक गए कि नरेन्द्र मोदी जातीय असहिष्णुता के शिकार हैं। इसके कारण ही नीतीश कुमार जैसे नेता भाजपा को तो सेकुलर मानते हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी को कम्युनंल। पुरस्कार वापसी अभियान इसलिए चल रहा है, क्योंकि अभी भी भद्रलोक एक चाय बेचने वाले के बेटा को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार करने की सहिष्णुता दिखाने को तैयार नहीं ळें (संवाद)