मनमोहन सिंह सरकार ने भी ठप्प पड़ी बातचीत को शुरू करने की कोशिश की थी। लेकिन उसका भी वही हश्र हुआ, जो उसके पहले के प्रयासों का हुआ था। भारत के तीन जवानों की हत्या कर दी गई और बातचीत शुरू भी नहीं हो सकी। यह तीन साल पहले की बात है।
अतीत में जब कभी भी दोनों देशों के बीच गंभीर बातचीत की पहल होती है और कश्मीर समस्या को सुलझाने की कोशिश होती है, तो उस कोशिश को या तो उग्रवादी तत्व नाकाम कर देते हैं या पाकिस्तान का सैनिक सत्ता प्रतिष्ठान कोशिश को विफल कर देता है।
2007 में कश्मीर समस्या पर दोनों देशों के बीच सहमति होने वाली थी, पर उसी समय परवेज मुशर्रफ सत्ता से बाहर हो गए और फिर पाकिस्तानी सैनिक प्रतिष्ठान ने उस समस्या के हल में कोई रुचि नहीं दिखाई। यह सच है कि कश्मीर जैसे मसले पर पूर्ण समाधान की उम्मीद अभी भी नहीं की जा सकती, लेकिन अन्य अनेक मसलों पर सहमति तो स्थापित की ही जा सकती है।
भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत जितने दिनों तक चले, लेकिन एक बात तय है कि न तो पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीरी हिस्से को भारत को सौंपेगा और न ही भारत अपने इलाके के कश्मीर पर से अपना दावा छोड़ेगा। कश्मीर मसले पर 5 साल का युद्ध हो चुका है, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला है। भारत और पाकिस्तान के अधिकार क्षेत्र में आने वाले इलाकों के स्वतंत्र देश बनने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता। दोनों देशों में से कोई भी वहां कश्मीरियों के सेल्फ रूल के लिए सहमत नहीं हो सकते।
ते सवाल उठता है कि कश्मीर समस्या का समाधान क्या है? एक समाधान तो यही हो सकता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा को हम अंतरराष्ट्रीय सीमा में तब्दील कर दें। यानी जो हिस्सा भारत के इलाके में है, वह भारत का हो जाय और जो पाकिस्तान के कब्जे में है, उसे पाकिस्तान का मान लिया जाय।
इसके अलावा कश्मीर समस्या का कोई दूसरा समाधान हो ही नहीं सकता, लेकिन न तो भारत और न ही कश्मीर इस समाधान को स्वीकार करने को तैयार होगा। ज्यादा से ज्यादा भारत और पाकिस्तान यही कर सकते हैं कि वे अपने अपने देश के लोगों को कश्मीर मसले पर सच्चाई को स्वीकार करने के लिए तैयार करें। उग्रवाद चाहे जितना मजबूत हो, वह बहुत लंबा नहीं खिंच सकता है। यही पाकिस्तान आधारित उग्रवादियों के लिए भी सच है, जो कश्मीर में उग्रवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।
एक अन्य समाधान यह हो सकता है कि भारत और पाकिस्तान कश्मीर मसले को फिलहाल किनारे रख दें और अपने संबंधों को अन्य क्षेत्रों में मजबूत करने की कोशिश करें। यदि इन मसलों पर सहमति बनती गई और दोनो के रिश्ते मजबूत होते गए, तो दोनों देशों के लोगों के बीच भी विश्वास का माहौल बनेगा और दोनों देश के लोग कश्मीर को तूल देना कम कर देंगे। उसके बाद वे कश्मीर को दोनों देशों के बीच मूल समस्या के रूप में समझने से बाज आने लगेंगे।
इस समय जो भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत का माहौल बना है, उसमे सबसे अच्छी बात यह है कि पाकिस्तान ने अब इस बात को स्वीकार कर लिया है कि आतंकवाद की समस्या पर उसे भारत को संतुष्ट करना ही होगा। भारत ने भी थोड़ी नरमी दिखाते हुए कहा 26 नवंबर 2008 की घटना के लिए जिम्मेदार भारत में रह रहे आतंकवादियों को जेल में डालने को तूल नहीं दिया है। (संवाद)
कश्मीर के हल के लिए व्यावहारिक होना पड़ेगा
सुषमा की इस्लामाबाद वार्ता से उम्मीदें बढ़ीं
हरिहर स्वरूप - 2015-12-14 12:22
भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत जब भी शुरू हो अथव बातचीत जब भी टूट जाय, दोनों परिस्थितियों में कश्मीर मुख्य समस्या होती है। इस बार भी भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की इस्लामाबाद यात्रा के बाद जब दोनों पक्षों के बीच व्यापक बातचीत होने की घोषणा हुई, तब भी बातचीत के मूल में कश्मीर मसला ही है।