केजरीवाल तो यह कह रहे हैं कि उनके दफ्तर पर छापा उसी फाइल के कारण पड़ा, क्योंकि उसमें भ्रष्टाचार के कारनामों का जिक्र है और उस भ्रष्टाचार में वित्तमंत्री अरुण जेटली भी फंस रहे हैं। गौरतलब हो कि अरुण जेटली देश के क्रिकेट प्रशासन से भी जुड़े हुए हैं और लंबे समय तक दिल्ली जिला क्रिकेट एसोसिएशन (डीडीसीए) के अध्यक्ष रहे हैं। उसके भ्रष्टाचार की जांच के लिए केजरीवाल सरकार ने एक कमिटी का गठन किया था। उस कमिटी में बिहार से भाजपा सांसद किरती झा आजाद और बिशन सिंह वेदी थे। उस रिपोर्ट पर केजरीवाल आगे की कार्रवाई करना चाहते हैं और उसमें अरुण जेटली के फंसने का खतरा है।
तो क्या अरुण जेटली ने केजरीवाल के दफ्तर में यह छापा अपने स्वार्थ के कारण मरवाया? लेकिन सीबीआई तो उनके मंत्रालय को रिपोर्ट नहीं करती। वह तो प्रधानमंत्री के तहत काम करती है। तो क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इशारे पर छापेमारी हुई? इसकी दूर दूर तक कोई संभावना नहीं है, लेकिन फिर भी छापे पड़े। तो इसका मतलब यही है कि अरुण जेटली की सत्ता अपने मंत्रालय से बाहर तक फैली हुई है। प्रधानमंत्री के बाद यदि सरकार के अंदर किसी का सबसे ज्यादा धाक है, तो वह अरुण जेटली की है। लगता है कि प्रधानमंत्री ने सरकार चलाने का सारा जिम्मा अरुण जेटली को दे रखा है और वे खुद विदेशों से अच्छे सबंध बनाने और वहां से निवेश लाने के काम में लगे हुए हैं। इसके कारण ही अरुण जेटली के हाथ मे पीएमओ और सीबीआई के अधिकारियों को भी वश में करने की ताकत है।
पर क्या यह छापा सिर्फ अरुण जेटली को बचाने के लिए ही मारा गया है या इसके पीछे और भी दूसरी मंशा है? कहीं सरकार को पैरालाइज करने का उद्देश्य तो इसमें शामिल नहीं है? खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि इससे प्रभावित हो रही है। अरविंद केजरीवाल ने जिस तरह का निजी हमला प्रधानमंत्री पर किया है, उसका जवाब मोदी के बचाव में दिए जा रहे भाजपा नेताओं के बयानों से नहीं हो सकता। देश आज भ्रष्टाचार को लेकर बहुत संवेदनशील है। इसके कारण ही केन्द्र में मोदी की सरकार बनी है और इसके कारण ही अरविंद केजरीवाल दिल्ली में मुख्यमंत्री हैं। और इस छापेमारी से देश भर में यह साफ संदेश जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार भ्रष्ट राजनेताओं के खिलाफ तो कोई कारवाई नहीं कर रही है, बल्कि उसे बदनाम करने की कोशिश कर रही है, जो ईमानदारी से काम कर रहा है।
इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे कि व्यापक घोटाले में मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव को जांच एजेंसियों ने दोषी पाया और उनके खिलाफ मुकदमा भी किया, लेकिन राज्यपाल पद पर बैठा होने के कारण हाई कोर्ट ने उस मुकदमे को खारिज कर दिया, क्योकि राज्यपाल के पद पर बैठे व्यक्ति को संवैधानिक सुरक्षा मिली हुई है। नरेन्द्र मोदी सरकार को चाहिए था कि वे रामनरेश यादव को राज्यपाल के पद से हटाएं और उन्हें मिल रही सांवैधानिक सुरक्षा को समाप्त करें, पर उन्होंने कोई कारवाई नहीं की, जबकि उस केजरीवाल के दफ्तर पर छापा मार दिया, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई छोटा- सा आरोप भी नहीं है।
इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अरुण जेटली पर आंख मुूुदकर विश्वास करते हैं। सरकार चलाने के लिए ही नहीं, बल्कि पार्टी चलाने में भी जेटली की भूमिका अहम है और उनके कारण नरेन्द्र मोदी को लगातार फजीहत का सामना करना पड़ रहा है। यह भी किसी से छिपा हुआ तथ्य नहीं है कि अरुण जेटली के राजीव शुक्ला जैसे बदनाम कांग्रेसी नेताओं से निजी संबंध है और जबतक सरकार में जेटली की तूती बोलती है, तब तक भ्रष्ट कांग्रेसियों के खिलाफ सरकार एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकती, क्योंकि जेटली उन भ्रष्ट नेताओं के लिए सुरक्षा कवच का काम कर रहे हैं। नेशनल हेराल्ड मामले में जो कार्रवाई हुई है, वह सुब्रह्मण्यम स्वामी के कारण हुई है, सरकार के कारण नहीं। सच तो यह है कि सरकार ने तो उस मामले मे बाप बेटे को क्लीन चिट दे दी थी। वह तो स्वामी थे, जिन्होंने प्रवर्तन निदेशालय से दुबारा जांच करवाई। यहां गौरतलब यह है कि जिस प्रवर्तन निदेशालय ने सोनिया राहुल को क्लीन चिट दी थी, वह अरुण जेटली के वित्त मंत्रालय के अंदर ही आता है।
दिल्ली और बिहार चुनावों मंे भाजपा की शर्मनाक हार के लिए भी अरुण जेटली ही जिम्मेदार हैं। किरण बेदी को उन्होंने ही भाजपा नेताओ के ऊपर थोपा था। वैसे दिल्ली में हार तो होनी ही थी, लेकिन उसकी सूफड़ा साफ अरुण जेटली के कारण ही हुआ। बिहार में भी हार की पृष्ठभूमि अरुण जेटली ने ही तैयार किया था। जाति जनगणना के आंकड़े नहीं जारी करने का फरमान उन्होंने ही जारी किया था और जाति जनगणना का मजाक उड़ाते हुए उन्होंने ही कहा था कि 44 लाख जातियों और उपजातियों के होने की बात सामने आ रही है। गौरतलब हो कि लालू यादव ने जाति जनगणना के मसले पर एक सफल बिहार बंद का आयोजन किया था और बंद ने भाजपा की जीत के दरवाजे भी वहां बंद करने शुरू कर दिए थे।
प्रधानमंत्री को अब विदेशी यात्राओं को छोड़कर प्रधानमंत्री की भूमिका में लौट आना चाहिए। बहुत उम्मीदों ने से लोगों ने उनका प्रधानमंत्री बनाया था। लोगों ने उन्हें वोट दिया था किसी और को नहीं। उन्हें भ्रष्टाचार और महंगाई मिटाने के लिए वोट दिया था। इन्हें मिटाने या कम करने का जिम्मा उन्हें खुद उठाना पड़ेगा। (संवाद)
केजरीवाल के दफ्तर पर छापा
नरेन्द्र मोदी को ले डूबेंगे अरुण जेटली
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-12-17 18:42
केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के दफ्तर पर सीबीआई का छापा एक अभूतपूर्व घटना है। हालांकि सीबीआई और र्केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली कह रहे हैं कि छापा मुख्यमंत्री केजरीवाल के दफ्तर में नहीं, बल्कि उनके प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार के दफ्तर में मारा गया, लेकिन जो ब्यौरा केजरीवाल ने दिया है और जिसका खंडन नहीं किया जा सका है, उसके अनुसार मुख्यमंत्री केजरीवाल के दफ्तर पर भी छापेमारी हुई है। बकौल मंत्री गोपाल राय जिस कमरे में मुख्यमंत्री की फाइलें रखी जाती हैं, उस कमरे में भी छापेमारी हुई और बकौल केजरीवाल सीबीआई ने उस कमरे में पड़ी दिल्ली जिला क्रिकेट एसोसिएशन के भ्रष्टाचार से जुड़ी फाइल को देखा।