सत्ता में आने के बाद नरेन्द्र मोदी ने एक काम तो यह किया कि उन्होंने सेंट्रल पूल से राज्यों को मिलने वाले टैक्स की राशि को बढ़ा दिया। देखने से यह बहुत अच्छा कदम लगता है। इससे केन्द्र का राज्यों के प्रति उदारता दिखाई पड़ती है। यदि राज्य को ज्यादा पैसा मिलता है, तो इससे उसके पास अपने हिसाब से खर्च करने की ज्यादा गुंजायश रह जाती है। लेकिन केन्द्र ने सिर्फ इतना किया होता, तब तो कोई बात नहीं थी, पर उन्होंने और भी कदम उठाए। एक कदम तो केन्द्र द्वारा राज्यों में चलाई जा रही योजनाओं के खर्च में भारी कटौती थी। केन्द्र ने तो अनेक योजनाओं मे पैसे देने भी बंद कर दिए। जाहिर है यदि उन योजनाओं को चलाना हो तो राज्य सरकारों को अपने पास उपलब्ध संसाधनों का ही इस्तेमाल करना होगा। तब इसके लिए उन्हें केन्द्र से मिल अतिरिक्त राशि का इस्तेमाल पहले केन्द्र द्वारा वित्तपोषित योजनाओं को चलाने के लिए ही करना होगा।

यानी केन्द्र ने राज्य सरकार को अतिरिक्त राजस्व देकर योजनाओं के नाम पर दिए जा रहे पहले से संसाधनो को रोक डाला। अब इससे किस राज्य को कितना फायदा हुआ और किस राज्य को कितना नुकसान हुआ और किसे न तो नुकसाना हुआ और न ही फायदा हुआ, यह तो अलग अलग राज्यों के आकलन के द्वारा ही पता चलेगा, लेकिन इतना तो तय है कि केन्द्र की वह दरियादिली दरियादिली थी ही नहीं।

केन्द्र सरकार द्वारा संघवाद और विकेन्द्रीकरण की बात महज जुबानी जमा खर्च है। इसके पीछे कोई गंभीरता नहीं। यदि कोई गंभीरता होती, तो उसे राज्यों को टैक्स वसूलने का ज्यादा अधिकार देना चाहिए। अभी तो तमाम अधिकार केन्द्र के पास ही है। राज्यों के लिए भी टैक्स वसूलने का काम वही करता है और वसूलने के बाद जब उसे राज्यो को वही पैसे वापस करने की बात सामने आती है, तो वह एक दाता के रूप में सामने आता है। मानो केन्द्र दानी हो और राज्य भीखारी हो। वह बार बार याद दिलाता है कि देखों हम तुमको क्या दे रहे हैं।

सवाल उठता है कि केन्द्र राज्यों को राजस्व खुद वसूलने का अधिकार क्यों नहीं दे देता? इसका कारण यह है कि यदि राज्य अपने लिए राजस्व खुद वसूलेंगे, तो फिर केन्द्र सरकार के पास बुलेट ट्रेन जैसी योजना के लिए पैसे कहां से आएगा। जाहिर है, केन्द्र सरकार की विलासिता राज्यों को ज्यादा राजस्व वसूलने के अधिकार देने से समाप्त होती है।

अब तो जीएसटी के द्वारा राज्यो के पास जो थोड़ा बहुत राजस्व वसूली का अधिकार बचा हुआ है, उसे भी छीना जा रहा है। केन्द्र की मोदी सरकार जीएसटी को किसी भी कीमत पर अमल में लाना चाहती है। कांग्रेस अभी अड़चनें लगा रही है, लेकिन वह भी तैयार हो जाएगी। इसका कारण यह है कि केन्द्र की मजबूत सत्ता की पक्षधर कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियां हैं।

राज्यों के लिए कर वसूलकर केन्द्र सरकार उन्हें फिर वापस करता है, लेकिन कभी कभी वह सेस लगा देता है, जिसे अपने पास रख लेता है। अभी उसे स्वच्छता पर सेस लगाया है। उसकी सारी राशि केन्द्र सरकार के पास रह जाएगी। उससे वह देश की गलियों की सफाई करेगा। सफाई का काम स्थानीय निकायो का होता है, लेकिन अब केन्द्र सरकार ने उसका जिम्मा खुद ले रखा है। यह आश्चर्यजनक है, लेकिन सच है। नरेन्द्र मोदी के सहयोगी संघवाद का यह नमूना है। (संवाद)