2015 में भारतीय जनता पार्टी को दो करारी हारों का सामना करना पड़ा। पहले दिल्ली में उसका सूफड़ा साफ हो गया, तो उसके बाद बिहार में मिली उसकी हार कोई कम शर्मनाक नहीं थी। बिहार में भाजपा की हुई पराजय से भाजपा विरोधी पार्टियों में नया उत्साह आया है और वे कोशिश करेंगे कि 2016 में होने वाले चुनावों मे भी भाजपा की हार का सिलसिला बरकरार रहे। वे इसके लिए आपस में गठबंघन करने की कोशिश करने में पूरा जोर लगा देंगे।
अगले साल 5 राज्यों मे चुनाव होने जा रहे हैं। वे राज्य हैं- पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुदुचेरी, केरल और असम। कांग्रेस असम और केरल में सत्ता में है। अन्य तीन राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकारें है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का एक बार फिर सत्ता में आना लगभग तय है। इसका कारण वहां के विपक्ष का कमजोर और विभाजित होना है। ममता बनर्जी लगातार कोशिश कर रही है कि विपक्ष को विभाजित रखा जाय। कांग्रेस के साथ तृणमूल कांग्रेस के गठबंधन की संभावना भी बन रही है। अन्य पार्टियों मे ममता बनर्जी की बराबरी करने वाला कोई नेता नहीं है। यही कारण है कि वहां के चुनाव के नतीजे अभी से साफ दिखाई पड़ रहे हैं।
तमिलनाडु में भी जयललिता की वापसी लगभग तय लग रही थी, लेकिन पिछले दिनों की बरसात ने अब स्थिति अनिश्चित कर दी है। जयललिता के सामने भी विपक्ष कमजोर है। हालांकि बरसात के बाद आई बाढ़ का फायदा उठाने की कोशिश सभी विपक्षी पार्टियां कर रही हैं। कांग्रेस की स्थिति तो बहुत खराब है और वह यहां लगभग समाप्त हो गई है, जबकि भारतीय जनता पार्टी अपनी स्थिति बेहतर करने की कोशिश कर रही है। अनिश्चिय भरी स्थिति में भी जयललिता की स्थिति अच्छी लग रही है।
पुदुचेरी के मुख्यमंत्री एन रंगास्वामी आल इंडिया एनआर कांग्रेस के हैं। उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई और आज सत्ता में हैं। वे इस समय एनडीए का हिस्सा हैं।
जहां तक असम और केरल की बात है, तो वहां कांग्रेस शायद अपनी सत्ता बरकरार नहीं रख पाए। असम में एक कमजोर मुख्यमंत्री तरुण गोगाई चैथी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए कोशिश करते दिखाई पडे़ंगे। उनके खिलाफ वहां माहौल है। वहां अभी भाजपा और कांग्रेस दोनों असम गण परिषद को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही हैं। वहां भारतीय जनता पार्टी अभी बेहतर स्थिति में दिखाई पड़ रही है। केरल में इस बार एलडीएफ के सरकार में आने की बारी है, क्योंकि पिछले कई दशक से यूडीएफ और एलडीएफ के बारी बारी से सत्ता में आने का सिलसिला चल रहा है। लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी भी केन्द्र में अपनी स्थिति बेहतर करने की कोशिश कर रही है।
अगले साल राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बन सकते हैं। वे अभी से ही कांग्रेस के लिए बड़े बड़े निर्णय ले रहे हैं। बिहार चुनाव में सफलता पाने के बाद पार्टी में नया उत्साह है। असम और केरल में हारने के बाद पार्टी का उत्साह एक बार फिर ठंढा पड़ सकता है।
जहां तक भारतीय जनता पार्टी का मामला है, तो वहां भी संगठनात्मक चुनाव चल रहे हैं। जनवरी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होना है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अमित शाह फिर से अध्यक्ष बनते हैं या नहीं। (संवाद)
2016 मोदी सरकार के लिए बहुत ही कठिन साल होगा
पांच राज्यों के चुनाव बहुत ही निर्णायक होंगे
कल्याणी शंकर - 2015-12-26 10:53
अगला साल नरेन्द्र मोदी के लिए कैसा रहेगा? यह साल मोदी सरकार के लिए निर्णायक साल होगा। उसे एक साथ कई मोर्चे पर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। यह साल इस बात का निर्णय करेगा कि मोदी का जादू वास्तव में काम कर रहा है या पूरी तरह से उतर गया है। भाजपा के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य पार्टियों के लिए भी नये साल में चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है।