ट्रकों में भर भर के पत्थर अयोध्या पहुंच रहे हैं। राम मन्दिर निर्माण के संकेत इससे मिल रहे हैं। केन्द्रीय संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडु भी कह चुके हैं कि देश के सभी लोग अयोध्या में एक राम मंदिर बना देखना चाहते हैं।

क्या श्री राम जन्मभूमि न्यास को वेंकैया नायडु के उस बयान से इस बात का संकेत मिला है कि केन्द्र सरकार वहां मन्दिर निर्माण के लिए अपनी हरी झंडी दे चुकी है? सबसे दिलचस्प बात यह है कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के कार्यकाल में श्री राम जन्मभूमि न्यास और विश्व हिन्दू परिषद मंदिर निर्माण को लेकर शांत पड़े हुए थे, लेकिन अब वे दोनों सक्रिय हो गए हैं।

केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार के अभी दो साल भी पूरे नहीं हुए हैं, पर मंदिर निर्माण करने के उत्सुक लोग अभी से सक्रिय हो गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सत्ता संभालने के बाद कहा था कि वे चाहते हैं कि अलगाववादी मसलों को लोग एक दशक तक स्थगित रखें। सत्ता संभालने के बाद पन्द्रह अगस्त को लाल किले से भाषण करते हुए प्रधानमंत्री ने वैसा कहा था।

बहुत कम लोगों को उम्मीद थी नरेन्द्र मोदी के उस आवाहन को उनके समर्थक गंभीरता से लेंगे, लेकिन इतनी तो उम्मीद की ही जा रही थी कि आरएसएस अपने सहयोगी संगठनों से नरेन्द्र मोदी की बात को गंभीरता से लेने की अपील करेगा।

इसमें कोई शक नहीं कि यदि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की जीत का सिलसिला जारी रहता, तो संघ अपने समर्थकों को जरूर कहता कि अभी वे संयम से काम लें और नरेन्द्र मोदी की सरकार को अपना काम करने दें। पर दिल्ली के बाद बिहार की हार ने भारतीय जनता पार्टी और संघ को झटका दिया है और वे अपने मूल एजेंडे को मोदी सरकार के अस्तित्व काल में ही पूरा कर डालें।

यह साफ है कि एक और हार भाजपा को बर्दाश्त नहीं होगी। उसके बाद उसके अंदर उथल पुथल शुरू हो जाएगी। जहां तक अगले साल होने वाले चुनाव की बात है, तो पार्टी को उस साल पाने या खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी में पार्टी का कुछ है नहीं। असम में भी उसकी सरकार नहीं है, हालांकि लोकसभा में बेहतर प्रदर्शन के बाद वह वहां सरकार बनाने की उम्मीद कर रही है।

प्र भारतय जनता पार्टी की असली चुनौती उत्तर प्रदेश है। भारतीय जनता पार्टी वहां सत्ता में रह चुकी है। सबसे बड़ी बात है कि पिछले लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने भाजपा और सहयोगी अपना दल के 80 में से 73 उम्मीदवारों को जीत दिला दी थी। उसके बाद तो भारतीय जनता पार्टी उसे अपना गढ़ मानने लगी। पर लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा उपचुनावों में भारतीय जनता पार्टी मार खाती रही। पिछले विधानसभा चुनाव में जीती गई अनेक सीटों पर हुए उपचुनावों में भाजपा हार गईं। यही कारण है कि 2017 के चुनावी प्रदर्शन को लेकर भारतीय जनता पार्टी परेशान है।

बिहार में चुनाव जीतकर भाजपा उत्तर प्रदेश की जीत के लिए ज्यादा आशान्वित हो सकती थी, लेकिन वहां की हार ने उसके सारे गणित गड़बड़ा दिए। जब बिहार में नरेन्द्र मोदी भाजपा को नहीं जिता सकते, तो वे उत्तर प्रदेश में कैसे जिता सकते है- यह सवाल भाजपा नेता एक दूसरे से पूछ रहे हैं।

उधर दिल्ली मे आम आदमी पार्टी ने भाजपा की नाक में दम कर रखा है। अरुण जेटली पर वह भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है। उनके खिलाफ एक जांच आयोग का भी गठन किया गया है। उसे लेकर केन्द्र और दिल्ली सरकार के बीच काफी तू तू मैं मैं होने वाली है और इसमें भारतीय जनता पार्टी की मिट्टी पलीद होने की पूरी संभावना है।

यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी अब राम मन्दिर जैसे भावनात्मक मुद्दे का सहारा लेना चाहती है। यदि उत्तर प्रदेश में पार्टी की स्थिति खराब रही, तो इसका असर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है।

पर सवाल यह है कि क्या उत्तर प्रदेश में राम मन्दिर का कार्ड चल भी पाएगा या नहीं? (संवाद)