यह खेल दक्षिण तमिलनाडु में खेला जाता है। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। लेकिन अब यह खेल राजनीति का खेल भी बन गया है। उसकों फिर से शुरू करवाने की मांग की जा रही है और इसके लिए केन्द्र सरकार पर दबाव डाला जा रहा है, ताकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निरस्त करने के लिए संसद द्वारा कानून बनाया जा सके। केन्द्र भी उस दबाव में आता दिखाई दे रहा है और उस खेल के दुबारा शुरू होने की संभावना भी बनती दिखाई दे रही है।
भारतीय जनता पार्टी इस खेल पर अपना खुद का आकलन भी कर रही है। उसे लगता है कि खेल को प्रोमोट कर प्रदेश में वह अपने पांव जमा सकती है। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इशारा किया था कि बैलों और सांढ़ों को शामिल करने वाले अनेक खेल देश के भिन्न भागों में सदियों से खेले जा रहे हैं और वे हमारी संस्कृति के हिस्सा हैं। हमें उन्हें जारी रखना चाहिए, लेकिन इसके साथ इसका भी ख्याल रखना चाहिए कि जानवरों के साथ क्रूरता नहीं बरती जाय।
पिछले साल अगस्त महीने में मुख्यमंत्री जयललिता ने शुरुआत की। उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा कि इस खेल को दुबारा शुरू करने का आधार तैयार किया जाय। उन्होंने दबाव बनाए रखा और अपने सांसदो से कहा कि संसद के शीत सत्र में इसके लिए आवाज उठाई जाय। डीएमके के सांसदों ने भी इस मसले को उठाया। जयललिता ने पिछले महीने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर कहा कि पोंगल के दौरान जलकट्टु खेल को संभव बनाने के लिए एक अध्यादेश जारी किया जाय।
इस खेल में डीएमके भी पीछे नहीं है। इसके कोषाध्यक्ष एम के स्टालिन ने केन्द्र और राज्य सरकारों पर आरोप लगाते हुए उन्हें धमकी दे डाली कि यदि जलकट्टु खेल को संभव बनाने के लिए कोई कानूनी इंतजाम नहीं किया गया, तो वे पार्टी अध्यक्ष करुणानिधि से इजाजत लेने के बाद दोनों सरकारों के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत कर देंगे।
पीएमके संस्थापक एस रामदास भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि वे आगामी पोंगल पर्व के दौराज जलीकट्टु को संभव बनाने के लिए अध्यादेश लेकर आएं। उनके पुत्र अम्बुमनि रामोदास ने इस सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात भी की है। अन्य द्रविड़ पार्टियां भी खेल को फिर से शुरू करवाने की मांग कर रही है। सीपीआई और काग्रेस भी उनके सुर में सुर मिला रही हैं। मदुरै में इसके लिए विरोध मार्च निकालने का फैसला भी कुछ पार्टियों ने किया है।
जलीकट्टु में बैल की सींग में पुरस्कार के पैसे बांध दिए जाते हैं। भाग लेने वाले लोगों को कहा जाता है कि वे बैल पर कब्जा करके पुरस्कार के वे पैसे प्राप्त कर लें, लेकिन बैलों को कब्जे में लेने के पहले उनपर काफी अत्याचार किया जाता है। यही कारण है कि पशुओं पर अत्याचार रोकने की चाह रखने वाले कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस खेल पर रोक लगाने की मांग की थी और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देकर उस पर रोक लगा भी दी है। लेकिन वोटों के खातिर उस खेल को फिर शुरू करवाने का खेल शुरू हो गया है। (संवाद)
तमिलनाडु में वोट और सांड़ की लड़ाई
जलीकट्टु बनी लड़ाई का हथियार
कल्याणी शंकर - 2016-01-01 10:59
जलीकट्टु तमिलनाडु के गांवों का एक लोकप्रिय त्यौहार है। वह एक बार फिर मीडिया की सुर्खियों में है, लेकिन इस बार इसका कारण राजनैतिक है। बाढ़ से त्रस्त तमिलनाडु में जनजीवन अभी तक सामान्य नहीं हुआ है, लेकिन वे लोग जलीकट्टु के लिए आपस में भिड़ गए हैं। जलीकट्टु स्पैनिश बुल फाइट का भारतीय संस्करण है। तमिलनाडु का चुनाव नजदीक है और स्वाभाविक है कि वहां की पार्टियां वोटों पर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं और उसके कारण जलीकट्टु को लेकर फिर विवाद खड़ा हो गया है।