2014 के लोकसभा चुनाव के बाद उस साल जहां कहीं भी आम चुनाव हुए भारतीय जनता पार्टी को सफलता मिली। हरियाणा में वह कोई ताकत थी ही नहीं, लेकिन उसकी वहां सरकार बन गई। महाराष्ट्र में वह शिवसेना के साथ चुनाव लड़ा करती थी, लेकिन 2014 में उसने वहां शिवसेना का साथ छोड़कर चुनाव लड़ा और उसने अपूर्व सफलता प्राप्त की। झारखंड में भी उसने अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ वहां सरकार बना ली।

ल्ेकिन 2015 में हुए दो महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों में उसे हार का मुह देखना पड़ा। दिल्ली की हार तो उसके लिए बहुत ही शर्मनाक थी। उसे 70 में से मात्र 3 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में उसने सभी सातों सीटों पर भारी मतों से जीत हासिल की थी। अरविंद केजरीवाल के सामने दिल्ली विधानसभा में नरेन्द्र मोदी बहुत ही हल्के साबित हुए।

बिहार की हार तो दिल्ली से भी ज्यादा मारक थी। इसका कारण यह है कि बिहार में उसकी स्थिति बहुत अच्छी थी। लालू और नीतीश के गठबंधन के बावजूद भाजपा भारी दिख रही थी, क्योंकि लालू का समर्थक वर्ग नीतीश के नेतृत्व को पचा नहीं पा रहा था और नीतीश समर्थक वर्ग उनकी लालू के साथ को पसंद नहीं कर रहे थे। उस विरोधाभास के बावजूद वहां भारतीय जनता पार्टी ने करारी हार प्राप्त की, जबकि नरेन्द्र मोदी ने अपना सबकुछ वहां दांव पर लगा दिया था। वे आरक्षण छीनने की कोशिश पर अपनी जान की बाजी लगाने की घोषणा भी कर रहे थे। उसके बावजूद उनकी पार्टी और सहयोगियों की करारी हार हुई।

2016 में 5 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। क्या उन चुनावों मंे मोदी का जादू बरकरार रहेगा या वह उतरता हुआ दिखाई पड़ेगा। यह सच है कि चुनाव में जाने वाले राज्यों में से किसी में भी भाजपा की सरकार नहीं है, लेकिन पिछले लाकसभा चुनावो ंमें भाजपा को उन राज्यों में पहले से ज्यादा मत मिले थे। पश्चिम बंगाल में तो भाजपा का मत प्रतिशत बढ़कर 17 पहुंच गया था, भले ही उसे दो सीटें प्राप्त हुई थीं। 17 फीसदी मत किसी भी राजनैतिक दल के लिए कम नहीं होता। उसे आधार बनाकर वह दल आगे जीतने की उम्मीद कर सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पश्चिम बंगाल में भाजपा अपने मत प्रतिशत को बढ़ा पाती है या नहीं। वेसे वहां उसकी सरकार बनने की दूर दूर तक कोई संभावना नहीं है और ममता बनर्जी की सरकार वहां बनना लगभग तय है। मोदी के जादू की कसौटी वहां भाजपा द्वारा पाए गए मतों ेका प्रतिशत ही होगा।

पुदुचेरी में भाजपा की नहीं, लेकिन उसकी एक सहयोगी क्षेत्रीय पार्टी की सरकार है। उस सरकार के फिर से बनने या न बनने में भाजपा का शायद कोई योगदान न हो, लेकिन फिर भी नरेन्द्र मोदी के बारे में सवाल तो उठेंगे ही कि उन्होंने एनडीए की सरकार को फिर से सत्ता दिलाने में मदद की या नहीं।

तमिलनाडु में मुख्य मुकाबला वहां की क्षेत्रीय पार्टियों के बीच ही होता रहा है। पिछले चार दशक से कांग्रेस वहां हाशिए पर चली गई है और क्षेत्रीय पार्टियों में से किसी एक के साथ गठबंधन कर ही वहां लोकसभा और विधानसभा में सीटें हासिल कर पाती हैं। भारतीय जनता पार्टी की पहुंच वहां नहीं थी, लेकिन अपने उत्कर्ष काल में भाजपा भी एकाध सीटों पर जीत हासिल कर लेती है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी वहां की राजनीति में स्थाई प्रवेश कर पाएगी या नहीं- यह देखना दिलचस्प होगा। मोदी का जादू इस कसौटी पर कसा जाएगा कि भाजपा का प्रदर्शन कांग्रेस से बेहतर होता है या नहीं।

केरल में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं। वहां पिछले 4 दशक से एक परंपरा बना गई है कि दो में से एक मोर्चा बारी बारी से सत्ता में आता है। एक बार सीपीएम के नेतृत्व वाला एलडीएफ सत्ता में आता है, तो उसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूडीएफ सत्ता में आता है। इस बार सरकार में यूडीएफ है और बारी एलडीएफ की सरकार बनाने की है। दोनों के बीच भारतीय जनता पार्टी किस तरह का प्रदर्शन करेगी, इस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। भाजपा ने कभी भी केरल से लोकसभा चुनाव में जीत हासिल नहीं की है और न ही विधानसभा में केई जीत हासिल की है। नरेेन्द्र मोदी के जादू के बल पर पिछले लोकसभा चुनाव में उसके वोटों की संख्या बढ़ गई है और उस बढ़े हुए वोटों को आधार बनाकर भाजपा वहां खाता खोलने की उम्मीद पाल रही है। यदि पार्टी इसमें सफल होती है, तो माना जाएगा कि मोदी का जादू सफल रहा। वैसे पार्टी वहां के जातीय अंतर्विरोंधो का लाभ उठाने की कोशिश भी कर रही है।

भाजपा 2016 में यदि किसी राज्य मंे सरकार बनाने की सोच सकती है, तो वह है असम। मोदी के जादू की असली परीक्षा असम में ही होगी। मोदी के जादू ने भाजपा को वहां 2014 में 7 लोकसभा सीटें दिलवा दी थीं। वहां असम गण परिषद ढलान की ओर है और उसका समर्थक आधार भाजपा की ओर मुखातिब है। पिछले 15 सालों से वहां कांग्रेस की सरकार है और इसलिए परिवर्तन कामी लोगों का मूड भी भाजपा की ओर हो सकता है। यही कारण है कि वहां का चुनाव भारीतय जनता पार्टी के लिए आसान लगता था। लेकिन आसान तो बिहार का चुनाव भी था, लेकिन वहां उसे मुह की खानी पड़ीं थी।

क्या असम के लोग मोदी को इस बार भी उसी तरह अपने दिल में बसा कर भाजपा को वोट डालेंगे, जैसा उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों में दिया था? यह तभी संभव हो सकेगा, जब मोदी का जादू लोगों के सिर पर चढ़कर बोलेगा। वैसे मोदी सरकार के मंत्रियों के ऊपर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोप और भ्रष्टाचार के मामलों में मोदी सरकार द्वारा नहीं की जा रही कार्रवाई उनके जादू के प्रभावित जरूर कर रहा है। (संवाद)