कांग्रेस की जीत का कारण झारखंड मुक्ति मोर्चा के उस निर्णय को बताया जा रहा है, जिसके तहत मोर्चा ने वहां अपना उम्मीदवार खड़ा ही नहीं किया था। उम्मीदवार खड़ा नहीं करने का उसका निर्णय बिहार की तर्ज पर ही झारखंड में भी भाजपा के खिलाफ एक महागठबंधन बनाने का आधार तैयार करने के लिए था। उस जीत के बाद कांग्रेस को जितनी खुशी हो रही है, उससे भी ज्यादा खुशी झारखंड मुक्ति मोर्चा को हो रही है। इस जीत के बाद झामुमो के नेता कह रहे हैं कि 2014 के विधानसभा चुनाव के पहले गठबंधन के उनके प्रस्ताव को यदि कांग्रेस ने स्वीकार कर लिया होता, तो भाजपा की हार सुनिश्चित थी।

कांग्रेस के उम्मीदवार सुखदेव भगत थे। उनकी जीत हुई और उन्हें 73 हजार 8 सौ 59 वोट मिले, जबकि भाजपा समर्थित आजसू की नीरू शांति भगत को 50 हजार 5 सौ 71 वोट ही मिले और वह दूसरे स्थान पर रहीं। झारखंड विकास मोर्चा के बंधु तिर्के को 16 हजार 9 सौ 51 वोट मिले। विधानसभा क्षेत्र में करीब 21 फीसदी मुसलमान हैं। उनके लगभग सारे वोट कांग्रेस उम्मीदवार को ही मिले। पिछले आम चुनाव में इस सीट पर आजसू के उम्मीदवार कमल किशोर भगत की जीत हुई थी। 1993 के एक फिरौती मुकदमे में उन्हें 5 साल की सजा सुनाई गई थी और उसके कारण यह सीट खाली हो गई थी। इस सीट से भाजपा ने उनकी पत्नी को ही खड़ा किया था।

नतीजा निकलने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा के उपाध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि उन्होंने अपनी पार्टी का उम्मीदवार नहीं खड़ा किया था, क्योंकि वे सेक्युलर वोटों का बंटवारा नहीं चाहते थे, लेकिन वे कांग्रेस से जिस तरह के व्यवहार की उम्मीद कर रहे थे, उसने वैसा नहीं किया।

इसमें कोई शक नहीं कि झारखंड में सरकार से लोगों का मोह तेजी से भंग हो रहा है और वहां की जनता में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ रोष है। मुख्यमंत्री रघुबर दास पूरे प्रदेश को एक थाली में रखकर कार्पोरेट को सौंप रहे हैं। वे झारखंड को खरीद रहे हैं और आवासीय कम्पलेक्स बनाए जा रहे हैं। वहां उस तरह का विकास हो रहा है, जिससे झारखंड के गरीब लोगों का नुकसान ही होना है। इसके कारण वहां के गरीब आदिवासी रघुबर दास की सरकार से डरे हुए हैं। (संवाद)