केन्द्र सरकार की कैबिनेट के एक प्रस्ताव से इसका गठन हुआ है, जिसके तहत इसे केन्द्र और राज्य सरकारों को सलाह देने का अधिकार दिया गया है, लेकिन अपने पूर्ववर्ती योजना आयोग की तरह यह धन और कोष से संबंधित अधिकार नहीं रखता।
योजना आयोग भी केन्द्र और राज्य सरकारो को सलाह देता था, लेकिन सलाह देने के साथ साथ उसके पास एक डंडा भी था, जिससे वह अपनी सलाह मनवा भी सकता था। वह डंडा था उसकी वित्तीय ताकत। योजना आयोग पंचवर्षीय योजना तैयार करता था। वह वार्षिक योजनाएं भी तैयार करता था। योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए वह रोडमैप तैयार करता था और यदि सरकारें उस रोडमैप के अनुसार काम न करे, तो वह योजना राशि को रोक लेने की क्षमता रखता था।
कहा जा रहा है कि नीति आयोग का काम सहयोगी संघवाद को बढ़ावा देना है। वह थिंक टैंक की तरह काम करता है। सरकारों को सलाह देता है। योजनाओं के अमल की समीक्षा करता है। उसे योजना आयोग का उत्तराधिकारी भी कहा जा रहा है। 12वीं योजना आयोग का कार्यकाल 2017 में समाप्त होगा। तब तक के लिए उस योजनाकाल में नीति आयोग योजना आयोग की भूमिका निभाता रहेगा।
सहयोगी संघवाद को बढ़ावा देने के लिए और इस बात को रेखांकित करने के लिए कि मजबूत राज्य मिलकर ही मजबूत राष्ट्र बना सकते हैं, नीति आयोग ने मुख्यमंत्रियों की तीन उपसमितियां बनाईं, जिनमें कम से कम 10 मुख्यमंत्री रखे गए। उन समितियों को स्वच्छ भारत अभियान, कौशल विकास और केन्द्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों पर विचार करने का जिम्मा दिया गया।
केन्द्र द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों की बढ़ती संख्या को देखकर उन्हें कम करने और उन्हें तर्कसंगत बनाने की मांग बहुत दिनों से उठ रही थीं। योजना आयोग ने भी उस मांग पर विचार किया था और सोच विचार कर उसने उस तरह के कार्यक्रमों की संख्या 147 से घटाकर 66 कर दी थी। अब इन योजनाओं की पहचान और क्रियान्यन में राज्यों को ज्यादा से ज्यादा भूमिका दी जा रही है, ताकि वे अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर अपने लिए कार्यक्रमों की प्राथमिकता तय कर सकें। केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं में एक छोटा खर्च राज्य सरकारों को भी करना पड़ता है, लेकिन अनेक राज्य वे खर्च जुटा नहीं पाते हैं।
नीति आयोग की पहली वर्षगांठ पर सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि यह नई संस्था अपनी उपसमितियों द्वारा की गई सिफारिशों को कैसे अमल करा पाएंगी? जब कभी भी किसी योजना के लिए राज्य को केन्द्र से धन की जरूरत पड़ेगी, तो राज्य सरकारें संबंधित केन्द्रीय मंत्रालयों से बात करेगी, लेकिन उन मंत्रालयों के पास राज्यों के साथ बात कर उनसे सौदेबाजी का अनुभव ही नहीं है। कुछ राज्य अपने दावे पर बढ़ चढ़कर बात करने में माहिर है। उनके लिए धन प्राप्त करने का एक स्रोत वित्त मंत्रालय है, लेकिन वित्त मंत्रालय हमेशा राजकोषीय घाटे के दबाव में रहता है। कुछ विशेष श्रेणी प्राप्त राज्य पहले योजना आयोग से बात कर सहायता राशि प्राप्त कर लेते थे, लेकिन अब बदली हुई परिस्थिति में वे कहां जाएंगे? (संवाद)
नीति आयोग की भूमिका पर अभी भी सवाल
सिफारिशें सिर्फ कागज पर ही हैं
दीपक राजदान - 2016-01-05 16:36
नई दिल्लीः एक जनवरी, 2015 को योजना आयोग बदलकर नीति आयोग हो गया। इसकी भूमिका भारत सरकार के थिंक टैंक की रह गई। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि यदि यह अपनी सलाह को प्रभावी करने के लिए कोष का आबंटन नहीं कर सकता, तो फिर इसकी कोई ठोस भूमिका ही कहां रह जाती है?