जब भारतीय जनता पार्टी 1998 में सत्ता में थी, तो उसने समस्याओं के हल के लिए गंभीर बातचीत की थी। बातचीत के लिए इधर बैठकें होती थीं और उधर कुछ न कुछ पाकिस्तान की ओर से खुराफात होती थी। भारत के साथ इधर पाकिस्तान बातचीत कर रहा था और उधर पाकिस्तान करगिल की पहाड़ियों पर कब्जा कर रहा था। उसने करगिल के एक हिस्से पर कब्जा भी कर लिया था। हालांकि उसका कहना था कि उस कब्जे में पाक सेना का हाथ नहीं था और वह नन- स्टेट खिलाड़ियों की करतूत थी, पर बात में जो तथ्य सामने आए, उनसे पता चल गए कि वह पाकिस्तान की सैनिक कार्रवाई थी। करगिल की अपनी जमीन को वापस लेने और घुसपैठियों को बाहर करने के लिए भारत की सेना को बड़ी कुर्बानियां देनी पड़ी थीं। जाहिर है, करगिल वाजपेयाी सरकार की बहुत बड़ी विफलता थी और उसमें भारत ने अपना चेहरा भले बचाया हो, लेकिन उसमें उसकी नाक तो कट ही गई थी।
वाजपेयी सरकार के कार्यकाल मंे ही संसद पर हमले हुए। वह भारत की प्रभुसत्ता पर हमला था। पाकिस्तान उस हमले से भी इनकार करता है और कहता है कि उसमें उसकी सरकार का कोई हाथ नहीं था, लेकिन सच्चाई नहीं छुपती और यह जाहिर हो गया कि पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादियो की उस करतूत के पीछे पाक की सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ था। मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान जब पाकिस्तान से अच्छे सबंध बनाने के लिए बातचीत का सिलसिला चल रहा था, तो उस समय मुंबई में हमला हुआ। वह अभूतपूर्व हमला था और हमले में भारत को भारी नुकसान हुआ। उस हमले के तार पाकिस्तान से जुड़े थे और बाद में यह बात सामने आई कि आतंकवादियों को पाकिस्तान में सैन्य प्रशिक्षण दिया गया था। उसके मास्टरमाइंड की पहचान हुई और तब भारत ने पाकिस्तान से बातचती करने से इनकार कर दिया था।
सत्ता संभालते के साथ ही भारत ने अपने पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध बनाने की कोशिशें तेज कर कर दी। शपथग्रहण समारोह में ही नरेन्द्र मोदी ने अपना इरादा साफ कर दिया। पाक के साथ बातचीत होने वाला था, लेकिन उस बातचीत को यह कहते हुए रद्द कर दिया गया कि पाकिसतान ने भारत से अपनी द्विपक्षीय बातचीत के पहले कश्मीर के अलगाववादियों से क्यों बात की। भारत का आरोप था कि ऐसा कर पाकिस्तान इस बातचीत को त्रिपक्षीय बातचीत बना रहा था। बातचीत न करने की शपथ के साथ साथ भारत और पाकिस्तान के बीच अनौपचारिक रूप से बातचीत भी चलती रहती थी। यह तथ्य भी सामने आया। रूस में भारत और पाकिस्तान ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के स्तर पर बातचीत चलाने के एक सझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कश्मीर के मसले को साफ साफ तरीके से शामिल नहीं किया। पाकिस्तान जाकर वहां के प्रघानमंत्री नवाज शरीफ ने उसे मानने से इनकार कर दिया और कश्मीर को भी बातचीत का हिस्सा बनाने की मांग कर दी। भारत की ओर से पाकिस्तान के उस रवैये का विरोध किया गया, लेकिन परदे के पीछे उच्च स्तर की बातचीत चलती रही। परोक्ष बातचीत में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियो के निजी संबंध इतने अच्छे हुए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाजशरीफ को जन्मदिन की बधाई देने और उनकी नातिन की शादी में हिस्सा लेने पाकिस्तान पहुंच गए। लगा कि दोनों देशों के बीच होने वाली बातचीत किसी अच्छे निष्कर्य पर पहुंच ही जाएगी।
लेकिन इसकी बीच पठानकोट हो गया। इतिहास एक बार फिर दुहराया गया और भारत के एक प्रमुख सैन्य प्रतिष्ठान पर पाकिस्तान का अघोषित हमला हो गया। अब सवाल यह है कि इस अघोषित युद्ध का जवाब भारत किस तरह दे? क्या वह युद्ध का जवाब युद्ध से दे या वार्ता से? देश का एक बड़ा तबका पाकिस्तान से होने वाली बातचीत को रद्द करने की मांग कर रहा है और सरकार के लिए कोई निर्णय लेना मुश्किल हो रहा है। लगता है कि सरकार में दो मतों के लोग हैं। कुछ बातचीत चाहते हैं, तो ज्यादातर लोग बातचीत के खिलाफ हैं।
सवाल उठता है कि भारत को क्या बातचीत बंद कर देनी चाहिए? इसके पहले भीबात ने कई बार बातचीत बंद की है, लेकिन बंद बातचीत उसे फिर शुरू करनी पड़ती है। बंद बातचीत शुरू होने केे लिए अभिशप्त है और शुरू हुई बातचीत में पाकिस्तान की ओर से की गई युद्धक कार्रवाई उसे बंद करा देती है। लोग कहते हैं कि पाकिस्तान सरकार जब भारत से अच्छे रिश्ते बनाने की कोशिश करती है, पाकिस्तान स्थित उसके विरोधी तत्व उस प्रयास में पलीता लगा देते हैं। लेकिन इस लेखक का मानना है कि बातचीत और बातचीत में बिघ्न की रणनीति सरकार ही बनाती है। यह पाकिस्तान की चाल है। युद्ध की कार्रवाई आमतौर पर तनाव के माहौल में होती है, लेकिन पाकिस्तान के रणनीतिकार तनाव करने का माहौल बनाते हैं और उसी माहौल में एक घाव भारत को दे देते हैं। इसलिए पाकिस्तान की ओर से किसी मुगालते में भारत को नहीं रहना चाहिए। पाकिस्तान बातचीत ही शुरू इसीलिए करता है, ताकि वह एक और घाव भारत को दे सके।
बात करने की घोषणा और बात बंद करने की घोषणा के क्रम भारत की पाक नीति को मजाक बना देते हैं। इसलिए भारत को अंतिम तौर पर निर्णय करना चाहिए कि उसे बात करनी है या नहीं करनी है। संवादहीनता से कुछ हासिल नही होता है, इसलिए अच्छा रहेगा कि भारत पाकिस्तान से बातचीत की नीति पर ही अमल करे, भले उस बातचीत से कोई हल नहीं निकले। वह यह मानकर बातचीत करे कि वह बातचीत सिर्फ बातचीत करने के लिए कर रहा है। इससे उस एक फायदा हो तय होगा कि उसका मजाक नहीं उड़ेगा। और उसी बातचीत के बीच भारत अपनी पाकिस्तान नीति तैयार करता रहे कि इस समस्या का हल वह कैसे कर सकता है। उस पाकिस्तान के खिलाफ बातचीत से परे समस्या का समाधान खोजना पड़ेगा, अन्यथा वह बार बार जख्म खाता रहेगा। (संवाद)
पठानकोट हमले के सबक
बातचीत से भारत-पाक समस्या का हल नहीं
उपेन्द्र प्रसाद - 2016-01-07 12:01
पठानकोट सैनिक हवाई अड्डे पर हुए आतंकवादी हमले के बाद एक सवाल यह खड़ा हो गया है कि भारत को पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को सामान्य करने के लिए बातचीत करनी चाहिए या नहीं। सत्ताधारी भाजपा जब कभी विपक्ष में होती है, तो उसके नेता कहते हैं कि बातचीत बंद कर पाक को करारा जवाब देना चाहिए। हालांकि सच यह भी है कि सत्ताा में आने के बाद वे बातचीत के लिए बेकरार हो जाते हैं।