लेकिन इस बीच केजरीवाल ने एक के बाद एक बड़े विवाद पैदा किए और उनके विरोधियों ने भी उन्हें विवादों में घेर कर रखने की कोशिश की। उनके स्वास्थ्य पर विवाद हुआ। उनकी अपनी पार्टी के अंदर उनको लेकर विवाद हुआ। दिल्ली के उपराज्यपाल के साथ उनका विवाद हुआ। केन्द्र सरकार के साथ तो उनका विवाद होना ही था। यह निश्चय ही दुर्भाग्यपूर्ण था, क्योंकि उन्हें दिल्ली की जनता की ओर से उतना बड़ा जनादेश काम करने के लिए मिला था, विवाद करने के लिए नहीं।

उनका कार्यकाल बहुत अच्छा नहीं रहा, लेकिन अपने कार्यकाल का पहला साल वे एक बहुत की अच्छे काम के साथ पूरा कर रहे हैं। वह काम है दिल्ली के पर्यावरण से संबंधित। दिल्ली में पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए उन्होंने सम और विषम नंबरों का प्रयोग किया है, जिसके तहत निजी चैपहिया गाड़ियों के दिल्ली सड़कों पर दौड़ने पर नियंत्रण लगाया गया। सम संख्या वाले तारीख के दिन सम संख्या वाले चैपहिया निजी वाहन ही चल रहे थे और विषम संख्या वाले तारीखों के दिन विषम संख्या वाले वाहन ही।

उनके इस प्रयोग पर अनेक लोग अंगुलियां उठा रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद उनके इस प्रयोग का लोगों का भारी समर्थन मिल रहा है। खुद सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इसका समर्थन कर रहे हैं। अपने कार्यकाल के पहले साल में केजरीवाल ने गरीब लोगों के अपने वोट बैंक को बचाने की कोशिश भी की है। उन्होंने डिमोलिशन ड्राइव को रोका है और अवैध कालोनियो को समयबद्ध तरीके से नियमित करने की दिशा में भी प्रयास किए हैं। उन्होंने यह घोषणा भी की है कि झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को स्थाई मकान दिया जाएगा।

केजरीवाल का एक प्रमुख चुनावी वादा बिजली को सस्ता करना था। उन्होंने वैसा कर दिखाया। उन्होंने 20 हजार लीटर पानी प्रति कनेक्शन प्रति महीने मुफ्त देने का वायदा भी किया था। उन्होंने इसे भी संभव बना दिया। यानी उसने दो सबसे बड़े अपने वायदे को पूरा कर दिया। हालांकि इसके कारण दिल्ली सरकार को भारी सब्सिडी का भुगतान करना पड़ रहा है।

दिल्ली सरकार ने लोकपाल बिल भी पास किया है, लेकिन उसे बहुत कमजोर कर दिया गया है। जिस तरह के कानून का वायदा केजरीवाल कर रहे थे, उस तरह का कानून उन्होंने नहीं बनाया है। इसके लिए उन्हें अपने विरोधियों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्होने दिल्ली में फ्री वाइफाइ देने का वायदा किया था, उसकी शुरुआत उन्होंने सीमित रूप में कर दी है, लेकिन उस दिशा में अभी बहुत कुछ करना बाकी है। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ 1301 का हेल्पलाइन फिर जारी कर दिया है।

शिक्षा व्यवस्था को साफ करने की भी उन्होंने कोशिश की है। नर्सरी में नामांकन के लिए जो प्रबंधन कोटा था, उसे उन्होंने समाप्त कर दिया है। शिक्षा व्यवस्था में सुधार लाने के लिए उन्होंने अनेक कानून भी बनाए हैं।

लेकिन इन उपलब्धियों के साथ साथ विवादों की भी कमी नहीं रही है। वे अभी भी विपक्ष के नेता के रूप में ही व्यवहार कर रहे हैं, जबकि वे मुख्यमंत्री बन चुके हैं। वे उपराज्यपाल से नौकरशाहों के पदस्थापन और तबादला के मसले पर लगातार लड़ते दिखाई देते हैं, जिसके कारण राज्य और केन्द्र के बीच में विवाद खड़ा होता रहता है। अनेक मामले तो अदालत तक जा पहुंचे हैं।
केजरीवाल ने मीडिया को भी नहीं छोड़ा। उसके खिलाफ उन्होंने कुछ आदेश जारी कर दिए। यह तो अच्छा था कि सुप्रीम कोर्ट ने उन आदेशों को निरस्त कर दिया, नही ंतो मीडिया क साथ उनका बड़ा टकराव होने वाला था। उस आदेश के तहत मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियो के खिलाफ चरित्रहनन करने वाले मीडिया पर्सन और संस्थान के खिलाफ मुकदमा करने का प्रावधान था।

केजरीवाल की नौकरशाहो से भी नहीं पट रही है।

अभी हाल ही में केजरीवाल वित्तमंत्री अरुण जेटली के खिलाफ भी भिड़ गए हैं। अपने प्रधान सचिव के दफ्तर पर सीबीआई के छापे के बाद उन्होंने सीधे उसका संबंध डीडीसीए के भ्रष्टाचार से जोड़ दिया, जिसके अध्यक्ष जेटली लंबे समय तक रह चुके हैं।

इन सबके बावजूद केजरीवाल सरकार ने कुछ ठोस पहल भी की है। वे पंजाब चुनाव पर अब ध्यान दे रहे हैं। वे नीतीश कुमार और ममता बनर्जी से भी अपने संबंध अच्छे करने में लगे हुए हैं। उनकी नजर प्रधानमंत्री बनने पर भी लगी हुई है। (संवाद)