इस समस्या के लिए वे जो हल बताते है, वे बहुत ही उथले हैं। उनमें से कोई समस्या की तह में जाना नहीं चाहते और यही कारण है कि यह संकट लगातार गहराता जा रहा है। वर्तमान मुख्यमंत्री रघुबर दास भी इसका अपवाद नहीं हैं। पिछले 14 जनवरी को उन्होंने जो कहा, उससे यही पता चलता है कि वे भी पुराने रास्ते पर ही चलने में दिलचस्पी रखते हैं। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार जल संरक्षण के महत्व को समझती है और इसके लिए वे एक नीति फ्रेमवर्क बनाने पर काम कर रही है।
मुख्यमंत्री दास की यह टिप्पणी उस समय आई, जब झारखंड हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर एक आदेश जारी किया। वह याचिका प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में पानी की कमी और सूखे जैसी हालत को लेकर थी। याचिका की सुनवाई करते हुए अदालत ने पानी के गिरते स्तर पर प्रदेश सरकार से रिपोर्ट मांगी। राज्य की राजधानी में भी जल का स्तर तेजी से गिर रहा है। अदालत ने राज्य सरकार से कहा है कि वह 17 फरवरी तक यह बताए कि इस संकट से जूझने के लिए उसके पास कौन सी कार्ययोजना है। उसे लघुकालीन के साथ साथ दीर्घकालीन योजनाओं के बारे में भी पूछा गया है।
सचाई तो यह है कि मुख्यमंत्री ने जो कहा है, उसका संबंध जजों द्वारा पूछे गए सवालो से नहीं है। इससे यह पता चलता है कि इस संकट के कारणों के बारे में पता नहीं है। उनकी प्रतिक्रिया सिर्फ इस संकट की भयावहता को कम करके देखती है। दूरदराज इलाके में, जहां आदिवासी लोग रहते हैं, वहां के कुएं सूख चुके हैं।
यह बहुत ही आश्चर्य की बात है कि झारखंड ऐसा राज्य जहां नदियों की संख्या अनेक है और छोटे छोटे नद तो अनगिनत हैं और जहां तहां तालाबों की कमी भी नहीं है, भारी जलसंकट के दौर से गुजर रहा है। जहां कुएं सूख गए हैं, वहां गहरे बोरिंग करवाए जा रहे हैं। तमिलनाडु के नम्बर प्लेट वाले ट्रकों में लगी मशीनों से बोरिंग हो रहे हैं और गांव व कस्बे वालों से को इसके लिए भारी रकम भुगतान करनी पड़ रही है।
2010-11 के प्रदेश आर्थिक सर्वे में कहा गया था कि प्रदेश में सिंचाई जल का कठिन संकट चल रहा है और जलस्तर लगातार गिरता जा रहा है। उसमे कहा गया था कि मिट्टी की आद्रता लगातार समाप्त होती जा रही है और सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है। कहा गया था कि पानी प्राकृतिक रूप से दुबारा रिचार्ज नहीं होता और कृत्रिम रिचार्जिंग की व्यवस्था नहीं है, इसके कारण जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है।
मार्च 2011 में जमीन के नीचे पानी की उपलब्धता का एक सर्वेक्षण करवाया गया था। उसमें कहा गया था कि 6 प्रखंडों में पानी का जमकर दोहन किया जा रहा है। कांके में भी पानी का स्तर बहुत नीचे चला गया है, जबकि वह राजधानी रांची को पानी की आपूर्ति करता है।
जमीन के नीचे जलस्तर का आकलन करके बताया गया है कि यदि समस्या का समाधान अभी से नहीं निकाला गया, तो आने वाले समय में प्रदेश के सभी शहरों में पानी का भारी संकट पैदा हो जाएगा। (संवाद)
झारखंड का मानव निर्मित जल संकट
रियल इस्टेट वालों का लोभ समस्या को गंभीर बना रहा है
अरुण श्रीवास्तव - 2016-01-21 20:05
पिछले 10 सालों से झारखंड भीषण जल संकट के दौर से गुजर रहा है। सत्ताधारी आभिजात्य वर्ग और राजनीतिज्ञ बस एक ही रट लगा रहे हैं कि जल संरक्षण के तरीकों को अपना कर इस समस्या का समाधान निकाल लिया जाएगा। हो सकता हो, वह सही हों, लेकिन इन लोगों के पास समस्या के हल के लिए कोई दृष्टि नहीं है।