अमित शाह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बहुत करीबी व्यक्ति हैं। इसके कारण ही उन्हें अध्यक्ष का यह पद मिला था। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी सफलता मिली थी। वहां की कुल 80 में से 73 सीटों पर उसे जीत हासिल हुई थी। अमित शाह ही उत्तर प्रदेश के प्रभारी थे। इस जीत का बहुत बड़ा श्रेय उन्हें ही मिला। उन्हें राजनाथ सिंह द्वारा अध्यक्ष पद खाली होने के बाद उस पद पर बैठाने का एक बड़ा कारण उत्तर प्रदेश की वह सफलता भी थी।

पूरे तीन साल के लिए अमित शाह को अध्यक्ष का यह पद मिला है। आगामी 2019 के अप्रैल महीने में लोकसभा का चुनाव होना है और अमित शाह को कार्यकाल उसी साल के जनवरी महीने में पूरा हो जाएगा। जाहिर है लोकसभा चुनाव के पहले होने वाले तमाम चुनावों में पार्टी की अध्यक्षता भार अमित शाह ही संभाल रहे होंगे।

लोकसभा चुनाव के बाद हुए हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों में भाजपा को एक के बाद एक जीत दर्ज हासिल हुई। उसके कारण अमित शाह का कद बढ़ा। वे सभी चुनाव 2014 में ही हुए थे, लेकिन उसके बाद हुए दिल्ली और बिहार विधानसभा के चुनाव में भाजपा की हार हुई। उन हारों के बाद अमित शाह के अध्यक्ष पद पर बने रहने को लेकर सवाल उठाए जाने लगे थे। लेकिन अंत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें ही अध्यक्ष पद पर कायम रखने में सफलता पाई। आरएसएस भी इसके लिए तैयार हो गया, क्योंकि माना गया कि अमित शाह का कार्यकाल भाजपा के लिए सफलता और विफलता का मिश्रित काल रहा था।

2016 में भी अनेक राज्यों मंे विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। वहां भी अमित शाह की कुशलता की परीक्षा होगी, लेकिन इस साल होने वाले चुनावों मंे भाजपा का दांव पर कुछ भी नहीं लगा है। जिन राज्यों मे चुनाव होने जा रहे हैं, उनमें से कहीं भी भाजपा सत्ता में नहीं है। जाहिर है, उसक पास खोने के लिए कुछ नहीं है। पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में यदि उसे कुछ सीटें मिल गईं, तो वही अमित शाह की उपलब्धि मानी जाएगी। असम एक ऐसा प्रदेश है, जहां भारतीय जनता पार्टी बेहतर करने की उम्मीद कर रही है। वहां उसे लोकसभा चुनाव में अच्छी सफलता मिली थी और उसे देखते हुए पार्टी को लग रहा था कि वह वहां सरकार भी बना सकती है। फिलहाल वहां भाजपा की हारजीत उस पर नहीं, बल्कि विरोधी पार्टियों पर निर्भर करती है कि वे पार्टियां कौन सी रणनीति अपनाते हैं।

2017 का चुनाव अमित शाह के लिए सबसे ज्यादा चुनौती भरा होगा, क्योंकि उस साल पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव होने हैं। पंजाब मे तो भाजपा सरकार मे भी है। वहां सरकार से बाहर होना पार्टी की हार मानी जाएगी, हालांकि हारजीत का दारोमदार अकाली दल पर निर्भर करता है, जिसके कनिष्ठ पार्टनर के रूप में वहां भाजपा सत्ता में है।

अमित शाह की असली परीक्षा उत्तर प्रदेश में होगी। वहां भारतीय जनता पार्टी 15 सालों से सत्ता से बाहर है और विधानसभा में पार्टी तीसरे नंबर पर है, लेकिन लोकसभा मे उसे अभूतपूर्व सफलता मिली थी। उस सफलता को दुहराना तो लगभग असंभव है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी यह जरूर चाहेगी कि वहां किसी तरह उसकी सरकार बन जाएगा। वैसे लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में हुए चुनावों मे भाजपा एक के बाद एक हारती ही जा रही है। (संवाद)